कई सदियों तक ओडिशा के मलकानगिरी जिले में रहने वाले बोंडा जनजाति के लोग, जो एक विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) है, आधुनिक बैंकिंग की दुनिया से पूरी तरह अनजान थे.
उनके लिए पैसा सिर्फ़ एक साधन था, जिससे वे साप्ताहिक बाज़ार में वन उत्पादों या अनाज बेचकर नमक, तेल या कपड़ा खरीद सकें. बैंक जाना या बैंक खाता चलाना उनके लिए कल्पना से भी परे था.
लेकिन अब यह तस्वीर बदल रही है…खैरपूत ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले बोंडा पहाड़ियों के कई पुरुष और महिलाएं खड़ी ढलानों से कई मील चलकर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (SBI) की शाखा तक रहे हैं.
पासबुक लेकर वे अपनी कमाई जमा करते हैं और अपने खातों में सीधे जमा हुई सरकारी सहायता निकालते हैं.
एक बोंडा महिला ने कहा, “पहले मैंने कभी बैंक के अंदर कदम भी नहीं रखा था. अब मैं अपना पैसा जमा कर सकती हूं और ज़रूरत पड़ने पर निकाल सकती हूं.”
हाल ही में महिला ने SBI शाखा से 3,000 रुपये निकाले.
आदिवासियों के लिए बैंकिंग सिर्फ़ पैसे से जुड़ी बात नहीं है बल्कि यह उनकी इज़्ज़त से भी जुड़ी है.
बोंडा जनजाति की एक और महिला मुस्कान किरसाणी कहती हैं, “पहले मैं अपनी कमाई घर पर रखती थी और कभी-कभी बिना मेरे जाने ही पैसे खर्च हो जाते थे. अब मेरे पास पासबुक है तो मुझे लगता है कि मेरी बचत बैंक में सुरक्षित है.”
एसबीआई (खैरपूत) के ब्रांच मैनेजर नसरुद्दीन अहमद के मुताबिक, लगभग 900 बोंडा लोगों ने बचत खाते खोले हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ बोंडा महिलाओं ने छोटे-छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए महिला स्व-सहायता समूह (SHG) बनाकर लोन भी लिया है. साथ ही उन्हें सरकार की विभिन्न बैंकिंग से संबंधित योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी जा रही है.
स्थानीय कार्यकर्ता जगन्नाथ माझी ने इस कदम को एक महत्वपूर्ण मोड़ बताया.
उन्होंने कहा, “पहले उन्हें (बोंडा जनजाति को) बैंक के बारे में कुछ नहीं पता था. आज वे अपनी आय जमा करते हैं और सरकारी लाभ सीधे अपने खाते में पाते हैं. वह दिन दूर नहीं जब वे अपने हक के लिए मजबूती से मांग करेंगे.”
ओडिशा के सबसे पुराने जनजातियों में से एक बोंडा जनजाति दो समूहों में बंटी है – लोअर बोंडा और अपर बोंडा.
लोअर बोंडा जनजाति पहाड़ी की तलहटी में रहती है. जबकि अपर बोंडा जनजाति खैरपूत ब्लॉक के मुदुलिपड़ा और आंद्रहाल पंचायत के अंतर्गत 130 वर्ग किमी में फैले 32 गांवों में रहती है.