तमिलनाडु के चेन्नई में अब यह पता लगाने की कोशिश शुरू हुई है कि क्या आदिवासी लोग जो जड़ी-बूटियाँ साँप के काटने पर इस्तेमाल करते हैं, वे सच में काम करती हैं या नहीं.
यह काम चेन्नई सर्प उद्यान ट्रस्ट और मद्रास यूनिवर्सिटी के विज्ञान विभाग के लोग मिलकर कर रहे हैं.
इस काम के लिए सरकार ने उन्हें 30 लाख रुपये भी दिए हैं. यह पूरा काम तीन साल तक चलेगा.
भारत में हर साल हज़ारों लोग साँप के काटने से मर जाते हैं, खासकर गाँवों और जंगलों में जहाँ अस्पताल या दवाइयाँ आसानी से नहीं मिलतीं.
ऐसे में लोग पारंपरिक इलाज यानी दादी-नानी और बुज़ुर्गों से सीखा हुआ तरीका अपनाते हैं.
कई बार ये इलाज जड़ी-बूटियों से होता है. लेकिन किसी को यह ठीक से नहीं पता कि ये जड़ी-बूटियाँ सच में असर करती हैं या नहीं.
इसलिए अब वैज्ञानिक ये जानने की कोशिश कर रहे हैं कि इन जड़ी-बूटियों में कौन-कौन सी चीज़ें होती हैं और क्या वे साँप के ज़हर को रोक सकती हैं.
तमिलनाडु की इरुला जनजाति के लोग इस तरह के इलाज के लिए काफी मशहूर हैं. ये लोग कई सालों से साँप पकड़ने का काम भी करते हैं और उन्हें जड़ी-बूटियों के बारे में काफी जानकारी होती है.
उनका कहना है कि जब किसी को साँप काटता है, तो वे कुछ खास जड़ी-बूटियों को पीसकर मरीज को देते हैं.
ये कौन-सी जड़ी-बूटियाँ होंगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस तरह के साँप ने काटा है. वे इलाज देने से पहले मरीज की नब्ज और हालत भी चेक करते हैं.
ये लोग इस इलाज के बारे में बाहर के लोगों को ज़्यादा जानकारी नहीं देते क्योंकि यह उनके परिवार का पारंपरिक और खास ज्ञान है.
अब वैज्ञानिक इन जड़ी-बूटियों को ध्यान से इकट्ठा करेंगे और लैब में इनका परीक्षण करेंगे. वे देखेंगे कि इनमें क्या-क्या रसायन हैं और क्या ये साँप के ज़हर को खत्म कर सकते हैं.
पहले इन जड़ी-बूटियों को लैब में छोटे-छोटे परीक्षणों में परखा जाएगा और फिर जानवरों पर भी इसका असर देखा जाएगा.
अगर सबकुछ ठीक रहा तो आगे चलकर इन्हें इंसानों पर इस्तेमाल करने की कोशिश की जा सकती है.
यह काम इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि भारत में हर जगह एंटी-वेनिन दवा (जो साँप के ज़हर को खत्म करती है) तुरंत नहीं मिलती.
और जो दवा मिलती है, वह सिर्फ कुछ ही साँपों के ज़हर पर काम करती है.
लेकिन जंगलों में और भी कई तरह के साँप होते हैं, जिनके लिए खास दवाइयाँ नहीं हैं.
इसलिए अगर ये पारंपरिक जड़ी-बूटियाँ काम कर गईं, तो यह इलाज बहुत काम का हो सकता है, खासकर उन इलाकों में जहाँ डॉक्टर और अस्पताल दूर होते हैं.
भारत के आदिवासी लोगों के पास जंगलों और पेड़ों की दवाओं का बहुत पुराना और गहरा ज्ञान है.
वे यह सब अपने अनुभव से जानते हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने बच्चों को सिखाते आए हैं.
यह ज्ञान किताबों में नहीं लिखा होता, लेकिन बहुत फायदेमंद होता है.