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तेलंगाना: ग्रामीण गर्भवती महिला को कीचड़ भरे रास्ते से अस्पताल ले जाने को मजबूर

इन घटनाओं से साफ है कि देश के कई आदिवासी और दूर-दराज के इलाकों में आज भी सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं की गंभीर कमी है, जिससे गर्भवती महिलाओं की जान जोखिम में पड़ जाती है.

तेलंगाना राज्य के भद्राद्री कोठागुडेम जिले से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है.

यहां एक आदिवासी गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने के लिए तीन किलोमीटर तक पैदल डोली में बिठाकर ले जाना पड़ा, क्योंकि गांव का रास्ता पूरी तरह से कीचड़ और पानी से भरा हुआ था.

रास्ता इतना खराब था कि कोई गाड़ी अंदर तक नहीं आ सकी.

यह घटना सोंदरैया नगर गांव की है, जहाँ 22 साल की महिला प्याडम जोगी को अचानक प्रसव पीड़ा (डिलीवरी का दर्द) शुरू हो गया.

गांव में कोई अस्पताल नहीं है और रास्ता भी पक्का नहीं है.

बारिश की वजह से पूरा रास्ता कीचड़ से भर गया था. ऐसे में कोई वाहन गांव तक नहीं आ पाया.

महिला की हालत बिगड़ रही थी, इसलिए गांव के लोगों ने मिलकर एक कपड़े और लकड़ी की मदद से डोली बनाई और उसे कंधे पर उठाकर 3 किलोमीटर दूर तय कर पक्की सड़क तक ले गए.

वहाँ से उसे एक गाड़ी में बैठाकर मनुगुरु के सरकारी अस्पताल पहुँचाया गया.

अस्पताल में महिला ने एक बेटे को जन्म दिया. डॉक्टरों ने बताया कि मां और बच्चा दोनों ठीक हैं. यह सुनकर गांव के लोगों ने थोड़ी राहत की सांस ली.

यह पहली बार नहीं है जब इस इलाके में ऐसा हुआ है.

हर साल बारिश के मौसम में गांव का रास्ता खराब हो जाता है और मरीजों को इसी तरह डोली या स्ट्रेचर में उठाकर ले जाना पड़ता है.

गांव वाले कई बार अधिकारियों से शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई पक्का रास्ता अब तक नहीं बना.

सरकार की तरफ से आदिवासी इलाकों के लिए एक खास योजना भी चलाई जाती है, जिसे  ITDA (Integrated Tribal Development Agency) कहा जाता है.

इसका काम है आदिवासी लोगों को अच्छी सड़कें, स्कूल, अस्पताल और साफ पानी जैसी सुविधाएं देना. लेकिन गांव वालों का कहना है कि सिर्फ कागजों पर योजनाएं बनती हैं, ज़मीन पर कुछ नहीं होता.

गांव के लोगों का कहना है कि अगर समय पर एंबुलेंस आती या पक्का रास्ता होता, तो महिला को इतनी परेशानी नहीं होती.

उन्होंने सरकार से मांग की है कि जल्द से जल्द उनके गांव में पक्की सड़क बनाई जाए, ताकि किसी और महिला या मरीज को इस तरह की परेशानी न उठानी पड़े.

ऐसी घटनाएं केवल तेलंगाना तक सीमित नहीं हैं.

इसी महीने  गुजरात के छोटा उदेपुर जिले में एक आदिवासी महिला को पांच किलोमीटर तक कपड़े की डोली में ले जाया गया, लेकिन समय पर इलाज न मिलने से उसकी मौत हो गई.

झारखंड के पलामू में एक गर्भवती महिला को बाढ़ से भरी नदी पार कर लकड़ी की खाट पर अस्पताल ले जाया गया.

तेलंगाना के संघारेड्डी जिले में भी एक महिला को दो किलोमीटर तक कंधों पर उठाकर ले जाया गया, और रास्ते में ही उसने बच्चे को जन्म दिया.

आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिले में भी एक आदिवासी महिला को सड़क न होने के कारण डोली में लाया गया और उसने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया.

इन घटनाओं से साफ है कि देश के कई आदिवासी और दूर-दराज के इलाकों में आज भी सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं की गंभीर कमी है, जिससे गर्भवती महिलाओं की जान जोखिम में पड़ जाती है.

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