HomeAdivasi Dailyक्या नई भर्ती गाइडलाइंस से सुलझेगा EMRS का भाषा संबंधी विवाद?

क्या नई भर्ती गाइडलाइंस से सुलझेगा EMRS का भाषा संबंधी विवाद?

नए नियमों से उम्मीदवारों को राहत का दावा, लेकिन क्या इससे भाषा की असली चुनौती खत्म होगी ?

केंद्र सरकार ने एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) में भर्ती से जुड़ी नई गाइडलाइन जारी की है. सरकार दावा कर रही है कि इन स्कूलों में शिक्षक और गैर-शिक्षक पदों पर भर्ती के लिए हिंदी की अनिवार्यता को पहले से आसान किया गया है.

यह बदलाव जनजातीय मामलों के मंत्रालय की समीक्षा के बाद किया गया है. जनजातीय मंत्रालय का कहना है कि ये बदलाव विभिन्न राज्यों और भाषाई पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को समान अवसर दने के लिए किया गया है.

भाषा के नए नियम

नई भर्ती गाइडलाइन के अनुसार, प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (TGT) पद के लिए लिखित परीक्षा में भाषा दक्षता का एक खंड शामिल होगा.

इस हिस्से में अंग्रेज़ी, हिंदी और उम्मीदवार द्वारा चुनी गई किसी क्षेत्रीय या अनुसूचित भाषा में कुल 30 अंकों का टेस्ट होगा.

ये भाग सिर्फ़ पास होने के लिए ज़रूरी होगा यानी ये क्वालिफाइंग होगा. इस भाग में पास होने के लिए उम्मीदवारों को इन तीनों भाषाओं में मिलाकर न्यूनतम 12 अंक लाने होंगे.

पहले की तरह अब केवल हिंदी में पास होना ज़रूरी नहीं है. यानी अगर कोई उम्मीदवार क्षेत्रीय भाषा चुनता है, तो हिंदी में कम अंक होने पर भी वह अयोग्य नहीं माना जाएगा.

क्या यह बदलाव वास्तव में राहत देगा?

हिंदी की अनिवार्यता को हटाना क्षेत्रीय भाषा के उम्मीदवारों के लिए एक सकारात्मक कदम है. लेकिन इससे एकलव्य मॉडल स्कूल्स में आ रही भाषा संबंधी समस्या का खत्म होना मुमकिन नहीं लगता.

ऐसा इसलिए क्योंकि नए नियम में पास होने के लिए कुल 12 अंकों की ज़रूरत है. यानी कि अभी भी उन शिक्षकों के भर्ती होने की संभावना है जिन्हें क्षेत्रीय भाषा का ज्ञान नहीं है.

देखा जाए तो ये परीक्षा पर निर्भर करेगा कि किस भाषा से कितने प्रश्न आते हैं. अगर तीनों भाषाओं से दस – दस प्रश्न पूछे गए तो सिर्फ हिंदी और अंग्रेज़ी का ज्ञान होने पर भी उम्मीदवार परीक्षा के इस हिस्से में पास हो जाएंगे.

यह राहत सिर्फ टीजीटी (TGT) और महिला स्टाफ नर्स के लिए है.

पोस्ट ग्रेजुएट टीचर (PGT) के लिए हिंदी में योग्यता पहले की तरह ज़रूरी रहेगी. पीजीटी आमतौर पर कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों को पढ़ाते हैं. यानी ये नियम केवल कुछ आदिवासी भाषियों तक लाभ पहुंचा पाएंगे.

जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि उद्देश्य यह है कि किसी एक भाषा में कमी उम्मीदवार की राह में रुकावट न बने.

उनका कहना है कि परीक्षा अंग्रेजी और हिंदी दोनों में आयोजित होगी ताकि सभी को समान अवसर मिल सके.

हाल ही में आदिवासी कार्य मंत्रालय और राज्य स्तरीय जनजातीय विभागों की राष्ट्रीय सम्मेलन में इस मुद्दे पर चर्चा हुई.

आंध्र प्रदेश ने भाषा योग्यता को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर की.

बिहार और तमिलनाडु ने अभी तक राष्ट्रीय शिक्षा सोसायटी फॉर ट्राइबल स्टूडेंट्स (NESTS) के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. इसलिए इन राज्यों में भर्ती की प्रक्रिया अभी भी राज्य सरकारों के हाथ में है.

ईएमआरएस योजना का सफर

ईएमआरएस स्कूलों की शुरुआत 1997-98 में हुई थी.

इनका मकसद दूर-दराज इलाकों में रहने वाले आदिवासी छात्रों को कक्षा 6 से 12 तक की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और छात्रावास सुविधा देना है. यह सुविधा नवोदय विद्यालयों जैसी है.

2018-19 में इस योजना को बदला गया और इसे केंद्र सरकार की केंद्रीय क्षेत्र योजना बनाया गया.

अब हर उस ब्लॉक में एक ईएमआरएस खोलने का प्रावधान है, जहां 50% से ज्यादा जनजातीय आबादी और कम से कम 20,000 आदिवासी लोग रहते हैं.

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