ओडिशा के कोरापुट जिले के आदिवासी लोगों ने इस बार दुर्गा पूजा को बहुत खास तरीके से मनाया. यहाँ के लोगों ने देवी दुर्गा की पूजा फूलों से सजाकर की.
यह सजावट आम फूलों से नहीं, बल्कि अपने गाँवों और जंगलों में पाए जाने वाले रंग-बिरंगे फूलों से की गई थी.
यह पूजा सिर्फ भगवान की भक्ति नहीं थी, बल्कि अपने पुराने रीति-रिवाज और परंपराओं को ज़िंदा रखने का एक सुंदर तरीका भी था.
कोरापुट के लोग अपने देवी-देवताओं की पूजा बड़े सादे और प्राकृतिक तरीकों से करते हैं. वे बाजार से महंगे फूल या सजावटी सामान नहीं लाते.
वे वही चीज़ें इस्तेमाल करते हैं, जो उनके आसपास के खेतों, जंगलों और पहाड़ियों में मिलती हैं.
इस बार की पूजा में आदिवासी समाज ने मिलकर काम किया. महिलाएं खेतों और जंगलों से फूल चुनकर लाईं.
उन्होंने फूलों को रंगों के हिसाब से छांटा और सुंदर-सुंदर डिजाइन बनाए. पुरुषों ने इन फूलों को पंडालों की छत, दीवार और दरवाज़ों पर सजाया.
देवी की मूर्ति के चारों ओर भी फूलों की सुंदर माला और पंखुड़ियाँ लगाई गईं.
यह पूरा काम कई दिन पहले से शुरू हो जाता है. फूलों को तोड़ना, उन्हें संभालकर रखना, सुखाना और सजावट की तैयारी करना, ये सब काम लोग बहुत मेहनत और प्यार से करते हैं.
इस पूजा में हर उम्र के लोग शामिल होते हैं. बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी को कोई न कोई ज़िम्मेदारी दी जाती है.
इस फूलों की पूजा में एक खास बात यह है कि यहाँ के लोग सिर्फ पूजा नहीं करते, वे नाचते-गाते भी हैं. महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हैं और पुरुष ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते हैं.
बच्चे लोककथाएँ सुनते हैं और रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर खुशियाँ मनाते हैं. यह समय उनके लिए सिर्फ त्योहार का नहीं, बल्कि पूरे गाँव के साथ मिलकर खुशियाँ मनाने का होता है.
कोरापुट के लोग मानते हैं कि फूलों से की गई पूजा ज्यादा पवित्र होती है. वे फूलों को भगवान का सबसे प्यारा तोहफा मानते हैं.
यही वजह है कि वे बाजार की चीज़ों की जगह अपने खेत और जंगल से आए फूलों को इस्तेमाल करते हैं. इससे उनकी संस्कृति और प्रकृति से जुड़ाव भी बना रहता है.
आज जब बड़े शहरों में पूजा पंडालों को लाइट और प्लास्टिक की चीज़ों से सजाया जाता है, तब कोरापुट के आदिवासी समाज की यह सादा और सुंदर पूजा हमें सिखाती है कि कम में भी सुंदरता हो सकती है.
यह परंपरा हमें प्रकृति से जुड़ना सिखाती है और यह भी बताती है कि हमारी संस्कृति कितनी अनोखी और अमूल्य है.
इस तरह कोरापुट के आदिवासियों की यह पूजा न सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि एक सजीव संस्कृति की झलक भी है.
फूलों की यह पूजा हमें सिखाती है कि सादगी में भी भक्ति और सुंदरता छिपी होती है.