HomeAdivasi Dailyथार महोत्सव: जनजातियों की रंगीन धरोहर

थार महोत्सव: जनजातियों की रंगीन धरोहर

थार की रेत में बसे इन समुदायों की कहानियाँ सुनना, उनके गीतों को महसूस करना और उनकी संस्कृति को अपनाना ही इस महोत्सव का असली उद्देश्य है.

राजस्थान के बाड़मेर जिले में 8 अक्टूबर 2025 से शुरू हुआ थार महोत्सव इन दिनों लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

यह दो दिवसीय उत्सव 8 और 9 अक्टूबर को आयोजित हो रहा है.

इसका आयोजन जिला प्रशासन की देखरेख में हो रहा है. इसका उद्देश्य थार रेगीस्तान की अनोखी सांस्कृतिक विरासत, विशेष रूप से वहाँ की जनजातियों की कला, जीवनशैली और परंपराओं को सामने लाना है.

महोत्सव की शुरुआत 8 अक्टूबर को सुबह गांधी चौक से शोभायात्रा के साथ हुई, जिसमें ऊँट, घोड़े, पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में सजे कलाकार, ढोल-नगाड़ों की धुन और लोक कलाकारों की टोली शामिल थी.

इस शोभायात्रा ने शहर के अलग-अलग हिस्सों से होते हुए लोगों को थार की सांस्कृतिक समृद्धता से जोड़ा. इसके बाद हेरिटेज वॉक, हस्तशिल्प प्रदर्शनी, और सांस्कृतिक संध्या जैसे कार्यक्रम हुए.

लेकिन इस आयोजन की असली पहचान वे जनजातियाँ हैं जो सदियों से थार के सूखे और कठिन इलाके में अपने विशिष्ट जीवन के साथ जीवित हैं.

इन समुदायों में प्रमुख नाम हैं — बिष्णोई, कालबेलिया, और मंगनियार.

बिष्णोई जनजाति पर्यावरण संरक्षण की मिसाल है.

उनके समुदाय में पेड़ों की रक्षा और जीवों को बचाना धर्म का हिस्सा है.

इतिहास में ऐसी घटनाएँ दर्ज हैं जहाँ बिष्णोई लोगों ने पेड़ बचाने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए.

थार में यह जनजाति आज भी पर्यावरण और वन्य जीवन की रक्षा को प्राथमिकता देती है.

कालबेलिया समुदाय पहले साँप पकड़ने का कार्य करता था, लेकिन अब यह अपनी नृत्य कला के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है.

इनके नृत्य में शरीर की लचक और घूमने की कला साँप की चाल जैसी लगती है.

महिलाएँ काले रंग की पोशाक में, चाँदी के गहनों के साथ जब नाचती हैं, तो हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है.

मंगनियार समुदाय का जीवन संगीत से जुड़ा है.

ये लोक गायक पीढ़ी-दर-पीढ़ी राजस्थानी गीतों को सँजोते आए हैं.

वे पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे कामायचा, खड़ताल, और ढोलक के साथ गायन करते हैं.

इनके गीतों में जीवन, मौसम, प्रेम और विरह की झलक मिलती है.

इन जनजातियों की जीवनशैली कठिन है — रेगिस्तान की जलवायु, पानी की कमी, सीमित संसाधन और आज के बदलते समय की चुनौतियाँ.

फिर भी इन समुदायों ने अपनी संस्कृति को जीवित रखा है — उनकी झोपड़ियाँ, पहनावे, खानपान, लोककला और बोलियाँ आज भी मूल रूप में देखी जा सकती हैं.

थार महोत्सव के माध्यम से इन जनजातियों को न केवल एक मंच मिलता है, बल्कि यह आम लोगों को उनके करीब लाने का मौका भी देता है.

यह महोत्सव स्थानीय लोगों, पर्यटकों और छात्रों के लिए थार की असली आत्मा को महसूस करने का अवसर है.

आज 9 अक्टूबर को महोत्सव का अंतिम दिन है.

शाम को होने वाली सांस्कृतिक संध्या में मंगनियारों का गायन, कालबेलिया नृत्य और अन्य लोक प्रस्तुतियाँ होंगी.

उम्मीद है कि इस आयोजन से न केवल इन जनजातियों की कला को पहचान मिलेगी, बल्कि उनका सम्मान भी बढ़ेगा.

थार की रेत में बसे इन समुदायों की कहानियाँ सुनना, उनके गीतों को महसूस करना और उनकी संस्कृति को अपनाना ही इस महोत्सव का असली उद्देश्य है.

Image credit-: Amar ujala

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