कर्नाटक राज्य में कई छोटे-छोटे आदिवासी समुदायों ने अब सरकार से एक बड़ी मांग की है.
उनका कहना है कि आदिवासी समाज के अंदर ही कुछ जातियाँ बहुत आगे बढ़ गई हैं, जबकि बाकी छोटी जातियाँ पीछे रह गई हैं.
इसलिए अब ये लोग चाहते हैं कि सरकार आदिवासियों के लिए जो आरक्षण है, उसे जातियों के बीच बराबर बांटे. इस मांग को “आंतरिक आरक्षण” कहा जा रहा है.
ये मांग तब तेज हुई जब अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के बीच आरक्षण को बेहतर तरीके से बाँट सकती हैं.
कोर्ट ने यह भी कहा था कि सरकार को अगर लगता है कि कुछ जातियाँ ज्यादा पिछड़ी हैं, तो उन्हें ज्यादा मदद मिलनी चाहिए.
इस फैसले के बाद कर्नाटक के कई छोटे जनजातीय समुदायों ने सरकार से बात की.
इनमें सोलिगा (Soliga), इरुलिगा (Iruliga), हक्कीपिक्की (Hakkipikki), सिद्धी (Siddi), कोरगा (Koraga), और जेनू कुरुबा (Jenu Kuruba) जैसी जातियाँ शामिल हैं.
इन समुदायों का कहना है कि ये बहुत छोटे और गरीब हैं.
इनके बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, नौकरी नहीं मिलती और सरकारी योजनाओं का फायदा भी बहुत कम मिलता है.
इन लोगों ने राज्य के समाज कल्याण मंत्री एचसी महादेवप्पा, कानून मंत्री एचके पाटिल और मुख्य सचिव शालिनी रजनीश से मुलाकात की.
उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय के अंदर एक बड़ी जाति – वाल्मीकि-नायक – ज़्यादा तरक्की कर चुकी है और वही लोग आरक्षण का ज़्यादातर फायदा ले रहे हैं.
कर्नाटक में करीब 42 लाख आदिवासी हैं. इन आदिवासियों के लिए सरकार ने कुल 7% आरक्षण तय किया है.
लेकिन इनमें से भी सबसे ज़्यादा फायदा वल्मिकी-नायक जाति को मिल रहा है, जिसकी आबादी 33 लाख के करीब है.
जबकि बाकी 49 आदिवासी जातियाँ मिलाकर केवल 9.5 लाख लोग हैं, और इनको बहुत कम फायदा मिल रहा है.
इन छोटी जातियों का कहना है कि जब आरक्षण की मदद मिलती है, तब भी उन्हें उसका कुछ हिस्सा ही मिलता है, जबकि एक ही जाति बार-बार नौकरी, शिक्षा और राजनीति में आगे बढ़ती जा रही है.
15 विधानसभा सीटें और 2 लोकसभा सीटें भी वल्मिकी-नायक नेताओं के पास हैं. इससे बाकी जातियों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा.
इसीलिए अब इन समुदायों की मांग है कि सरकार एक नया सर्वे करे. उस सर्वे में देखा जाए कि कौन-सी जातियाँ ज़्यादा गरीब और ज़्यादा पिछड़ी हैं.
उसके बाद हर जाति को उनकी हालत के अनुसार आरक्षण दिया जाए.
हालांकि, सरकार ने इस मांग को सुना और कहा कि वे इस मामले को समाज कल्याण विभाग को भेज देंगे और इस पर विचार करेंगे.
लेकिन इस मांग का विरोध भी हो रहा है.
वल्मिकी-नायक समाज के कुछ नेताओं ने कहा कि इस तरह की जाति के आधार पर आरक्षण देने से समाज में फूट पड़ सकती है.
वे मानते हैं कि आरक्षण वर्ग (class) के आधार पर मिलना चाहिए, जाति (caste) के नहीं.
कांग्रेस के नेता और वल्मिकी समाज से आने वाले वीएस उग्रप्पा ने कहा कि संविधान के अनुसार आरक्षण सिर्फ सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया जा सकता है, न कि किसी जाति विशेष को.
उनका डर है कि अगर हर जाति को अलग से आरक्षण दिया गया तो आदिवासी समाज में एकता खत्म हो जाएगी.
फिर भी, छोटे आदिवासी समुदाय अपनी मांग पर डटे हुए हैं.
उनका कहना है कि जब तक हर किसी को बराबरी से मौका नहीं मिलेगा, तब तक असली न्याय नहीं होगा.
वे चाहते हैं कि अब सरकार उनकी हालत को समझे और सही कदम उठाए.
इस मुद्दे का असर सिर्फ कर्नाटक तक सीमित नहीं है.
अगर कर्नाटक में यह मांग पूरी होती है, तो देश के और भी राज्य जैसे झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश आदि में भी ऐसी मांग उठ सकती है.
इसलिए आने वाले समय में देखना होगा कि सरकार क्या फैसला लेती है.