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महाराष्ट्र में आदिवासी समुदाय मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं

महाराष्ट्र के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में मेंटल हेल्थ एक उपेक्षित और गंभीर समस्या बनती जा रही है. इन इलाकों में बड़ी संख्या में लोग मानसिक बीमारी को अशुभ, जादू-टोना या दुर्भाग्य से जोड़कर देखते हैं.

महाराष्ट्र के आदिवासी समुदायों में मेंटल हेल्थ यानि मानसिक स्वास्थ्य एक बड़ा और अनदेखा संकट बना हुआ है. इन इलाकों में मानसिक बीमारियां न केवल गलत समझी जाती हैं बल्कि इलाज तक पहुंच भी अत्यंत सीमित है, जिससे हालात और गंभीर हो जाते हैं.

शिक्षा की कमी, गरीबी, सरकारी सेवाओं की अनुपलब्धता और सामाजिक उपेक्षा इन समस्याओं को और बढ़ा रही है.

हाल ही में सोसाइटी फॉर एजुकेशन, एक्शन एंड रिसर्च इन कम्युनिटी हेल्थ (Search) द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में हर दस में से तीन आदिवासी चिंता (anxiety) या अवसाद (depression) जैसी मानसिक स्वास्थ्य जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है.

10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर प्रकाशित हुई यह स्टडी राज्य के सबसे दूरदराज के ज़िलों में से एक में छिपे हुए मानसिक स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करता है.

आदिवासी क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य के हालात

महाराष्ट्र के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में मेंटल हेल्थ एक उपेक्षित और गंभीर समस्या बनती जा रही है. इन इलाकों में बड़ी संख्या में लोग मानसिक बीमारी को अशुभ, जादू-टोना या दुर्भाग्य से जोड़कर देखते हैं, जिससे उचित चिकित्सा देखभाल की कमी हो जाती है.

अक्सर लोग अपने रोग का इलाज पारंपरिक साधनों और तांत्रिक विधियों से करना पसंद करते हैं.

मानसिक बीमारी को समझने का स्तर भी सीमित है, जिसके चलते सामाजिक कलंक और दुश्वारियां और बढ़ जाती हैं.

सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां

इन आदिवासी समुदायों के सामने रोज़मर्रा की कई चुनौतियां मौजूद हैं, जैसे – भोजन, पानी और आवास की कमी. ये सब भी मेंटल हेल्थ को प्रभावित करती हैं.

इसके अलावा इनके लिए सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना भी कठिन है क्योंकि कई लोगों के पास जरूरी दस्तावेज़, जैसे – आधार और पैन कार्ड नही हैं.

इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था की कमी, बेरोज़गारी और पारिवारिक कलह जैसे कारण भी मानसिक स्वास्थ्य संकट को बढ़ाते हैं.

इसके साथ ही सरकार की ओर से मानसिक स्वास्थ्य के लिए कोई ठोस और नियमित व्यवस्था इन क्षेत्रों में नहीं है.

हालांकि, कुछ गैर-सरकारी संस्थाएं और सामुदायिक कार्यकर्ता अब इन क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और देखभाल के लिए काम कर रहे हैं. इन्हें स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे समुदाय के भीतर जाकर लोगों को मदद, परामर्श और दवाइयां उपलब्ध करवा सकें.

लेकिन अभी भी मुश्किलें बनी हुई हैं, जिनकी जड़ चिकित्सा प्रणालियों के प्रति गहरे अविश्वास और महंगे इलाज को शोषण के रूप में देखने की धारणा में है. मानसिक बीमारी की समझ भी सीमित है.

मेंटल हेल्थ का महिलाओं और बच्चों पर प्रभाव

महिलाओं और बच्चों में डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी और मिर्गी जैसी बीमारियां आम हो गई हैं.

शिक्षा तक सीमित पहुंच और घरेलू हिंसा की वजह से भी महिलाओं की मानसिक हालत प्रभावित होती है. लड़के की चाहत में कई गर्भधारण और मातृ एवं शिशु देखभाल में कमी इन चीजों को और बढ़ावा देती है.

इस सबके कारण बच्चों की एक ऐसी पीढ़ी बनती है जो कुपोषित और असहाय होकर बड़ी होती है, जिससे शुरू से ही मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है.

मेंटल हेल्थ क्या है?

हम क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं और किन कार्यों को करते हैं ये हमारा दिमाग तय करता है. हमारा दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है, तो ये तय है कि मेंटल हेल्थ बिगड़ी हुई है.

आज मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स का सामना लगभग हर इंसान कर रहा है लेकिन, शारीरिक स्वास्थ्य की तुलना में मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स ज्यादातर लोग कम जानकारी के आभाव में अनदेखा कर देते हैं.

उन्हें लगता है कि दिखने वाले ये लक्षण किसी आम बीमारी के होंगे और बाद में ये ही लक्षण एक गंभीर मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स का रूप ले लेते हैं. एंग्जाइटी, डिप्रैशन सबसे ज्यादा कॉमन मेंटल हेल्थ से जुड़ी बीमारियां हैं.

दरअसल, शारीरिक समस्याएं दिख या महसूस हो जाती हैं तो हम इनका इलाज करवा लेते हैं. लेकिन हम बिगड़ी हुई मेंटल हेल्थ पर बहुत कम ध्यान देते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी ये बात कह चुका है कि इस दुनिया में हर 8 में से 1 व्यक्ति मानसिक रोगी होता है.

भारत में मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स की संख्‍या इसीलिए ज्यादा बढ़ रही है क्‍योंकि लोग मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स (Mental Health Problems) को कम आंकते हैं.

मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम को कैसे पहचाने ?

मेंटल हेल्थ के सही न होने पर व्यक्ति को एंग्जायटी डिसऑर्डर हो सकता है, जिसमें उसे हर समय घबराहट या डर महसूस होता है. इस कंडीशन में पैनिक अटैक भी आ सकता है. बिगड़ी हुई मेंटल हेल्थ का सबसे बड़ा लक्षण डिप्रेशन है.

इसकी शुरुआत स्ट्रेस से होती है और एक समय पर इंसान डिप्रेशन का शिकार बन जाता है. इससे बाहर आना आसान नहीं है और ये हमें दुनिया से अलग भी कर सकता है.

मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स के लक्षण

*नींद और भूख में बदलाव- अगर आप मेंटल हेल्थ परेशानी से गुजर रहे हैं तो आपकी नींद में कमी आ सकती है या भूख कम हो जाती है या ज्यादा लगने लगती है.

*मूड में बदलाव आ जाना- आप अपनी भावनाओ पर नियंत्रण नहीं रख पाते जिसकी वजह से आपके मूड बदलते हैं और आप जल्दी उदास फील करते है.

*काम को ठीक तरीके से न कर पाना- कोई भी काम को मन से न करना, मेंटल हेल्थ का मुख्य लक्षण होता हैं.

*सोचने और समझने कि शक्ति कम होना- जब दिमाग ही स्वस्थ नहीं होता तो किसी भी काम को पूरा करने कि क्षमता खो बैठते है और किसी भी समस्या को समझना और सुलझाना कठिन हो जाता हैं.

*उदासीनता और असामान्य व्यवहार- किसी भी गतिविधि मे भाग लेने कि इच्छा न होना. अजीब तरीके का व्यवहार करना.

*घबराहट और डर लगना- दूसरों से डर लगना और किसी भी स्थिति में खुद को असहज पाना.

इनमे से एक या दो लक्षण अकेले मानसिक बीमारी कि वजह नहीं हो सकती. अगर कोई शख्स एक समय में कई लक्षणों को अनुभव कर रहा हो तो इसके लिए मानसिक चिकित्सक को दिखाना चाहिए.

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