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मेलघाट में कुपोषण से बच्चों की मौत का सिलसिला क्यों नहीं थमता है

मेलघाट में आदिवासी बच्चों की कुपोषण से मौत एक अनसुलझा मुद्दा क्यों बना हुआ है. इस मामले में हाईकोर्ट की दखल भी बेअकर साबित हो रहा है.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 12 नवंबर को महाराष्ट्र और केंद्र सरकार को मेलघाट (अमरावती) में कुपोषण (malnutrition) के कारण लगातार हो रही शिशु मौतों पर “बेहद लापरवाह” रवैया अपनाने के लिए कड़ी फटकार लगाई.

इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने दावा किया कि जून 2025 तक मेलघाट में जन्म से छह महीने तक के 65 शिशुओं की मौत कुपोषण से हुई, जबकि 220 से अधिक बच्चे गंभीर तीव्र कुपोषण (SAM) की श्रेणी में हैं. 

याचिका में कहा गया है कि यदि समय पर मदद नहीं मिली, तो इन बच्चों में से 50% तक की मौत हो सकती है.

मेलघाट की स्थिति क्या है?

आदिवासी बहुल कोरकु समुदायों में शिशु और मातृ मृत्यु, कुपोषण और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी लगातार बनी हुई है. दशकों से सरकारी हस्तक्षेप किए जा रहे हैं, फिर भी मौतों के आंकड़े घटने का नाम नहीं ले रहे.

अमरावती ज़िला परिषद के आंकड़ों के अनुसार:

अप्रैल 2024 से मार्च 2025 के बीच 96 शिशुओं की मौत हुई.

वर्ष 2025 के पहले सात महीनों में 61 शिशु अब तक मर चुके हैं.

ज़िला परिषद अधिकारियों ने कहा कि अधिकांश मौतें केवल कुपोषण से नहीं, बल्कि अनीमिया, सिकल सेल बीमारी, निमोनिया, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, समय पर इलाज न मिलना, एवं सुदूर क्षेत्रों में कनेक्टिविटी की कमी जैसे कारणों से भी होती हैं.

अधिकारियों का दावा है कि वे मेलघाट क्षेत्र में सप्ताह में तीन दिन बच्चों को केला और अंडा उपलब्ध कराते हैं. इसके अलावा ग्राम स्तर पर पोषण पुनर्वास केंद्र (VCDC) भी संचालित किए जा रहे हैं. फिर भी, कई महत्वपूर्ण मुद्दे अब भी अनसुलझे हैं.

राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिति टटकरे के अनुसार  कि पोषण ट्रैकर पर 1,82,443 बच्चे कुपोषित दर्ज किए गए हैं. उधर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज़ की रिपोर्ट बताती है कि महाराष्ट्र में—

35% पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का कद छोटा (stunted) हैं,

और 35% बच्चे कम वज़न (underweight) के हैं.

मेलघाट से बच्चों की कुपोषण से मौत की ख़बर नई नहीं है. इस क्षेत्र में आदिवासी बच्चों की मौत की ख़बरों से हाईकोर्ट की नाराज़गी भी पहली बार सामने नहीं आई है. 

लेकिन अफ़सोस कि हाईकोर्ट के भी बार-बार हस्तक्षेप के बावजूद आदिवासी और ख़ासतौर से पीवीटीजी (PVTG) समुदाय कोरकु के बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है.

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