एक संसदीय पैनल ने आदिवासी मामलों के मंत्रालय को आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालय और एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूलों (EMRS) की स्थापना में देरी को लेकर फटकार लगाई है.
साथ ही चेतावनी दी है कि राज्यों के लिए स्पष्ट समय-सीमा और शर्तों की कमी से लागत और बढ़ सकती है और प्रमुख योजनाओं का मकसद खत्म हो सकता है.
सरकार द्वारा अपनी सिफ़ारिशों पर की गई कार्रवाई पर एक रिपोर्ट में सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय स्थायी समिति ने कहा कि वह 11 आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालयों के काम में धीमी प्रगति और EMRS इंफ्रास्ट्रक्चर में कमियों पर मंत्रालय के जवाबों से “संतुष्ट नहीं” है और इन मुद्दों पर चार सिफ़ारिशों को दोहराने का फ़ैसला किया है.
मंगलवार को लोकसभा में पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया कि पहले की गई 14 सिफारिशों में से 9 को सरकार ने मान लिया है.
एक को बिना आगे बढ़ाए बंद कर दिया गया है और आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के म्यूज़ियम और EMRS के विस्तार और अपग्रेडेशन से जुड़ी चार सिफारिशों को नए सिरे से कार्रवाई के लिए मंत्रालय को वापस भेज दिया गया है.
8 संग्रहालय अभी तक नहीं हुए पूरे
कमेटी ने कहा कि उसने 10 राज्यों में 11 आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालय को सपोर्ट करने के सरकार के फैसले की सराहना की है, ताकि उन आदिवासी नायकों के जीवन का जश्न मनाया जा सके जिन्हें “अक्सर मुख्यधारा के इतिहास में कम जगह मिलती है” लेकिन उसने ज़मीनी स्तर पर धीमी प्रगति पर भी ज़ोर दिया.
अब तक सिर्फ तीन म्यूज़ियम – रांची में भगवान बिरसा मुंडा मेमोरियल फ्रीडम फाइटर म्यूज़ियम, छिंदवाड़ा में बादल भोई स्टेट ट्राइबल फ्रीडम फाइटर्स म्यूज़ियम और जबलपुर में राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह फ्रीडम फाइटर म्यूज़ियम का उद्घाटन हुआ है.
आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, गुजरात और मिजोरम में 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में मंज़ूर किए गए बाकी आठ म्यूज़ियम अभी तक पूरे नहीं हुए हैं.
जबकि केरल, मणिपुर और गोवा में 2017-18, 2018-19 और 2020-21 में मंज़ूर किए गए प्रोजेक्ट कई साल बीत जाने के बाद भी अभी भी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) स्टेज पर हैं.
कमेटी ने पहले मंत्रालय से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि नवंबर 2025 तक पूरे होने वाले चार म्यूज़ियम और मई 2026 तक पूरा होने वाला एक म्यूज़ियम तय समय पर पूरे हो जाएं.
अपने एक्शन टेकन जवाब में मंत्रालय ने ज़मीन, टेंडर, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और कंस्ट्रक्शन के लिए राज्य की ज़िम्मेदारी बताई और साइट विज़िट, रिव्यू मीटिंग और एक्सपर्ट्स के साथ बातचीत जैसे कदम गिनाए.
हालांकि, पैनल ने कहा कि वह संतुष्ट नहीं है क्योंकि मंत्रालय पांचों म्यूज़ियम को समय पर पूरा करने का पक्का भरोसा देने में नाकाम रहा है.
720 EMRS में से अबतक सिर्फ 477 चालू
EMRSs पर जो मंत्रालय के 2025-26 के बजट (7,088.60 करोड़ रुपये) का 47 प्रतिशत हिस्सा हैं.
इस पर पैनल ने तीन अलग-अलग सिफारिशें दोहराईं: कुल मिलाकर लागू करने पर, किराए की बिल्डिंग से चल रहे स्कूलों पर और संविधान के अनुच्छेद 275(1) के तहत स्थापित पुराने स्कूलों को अपग्रेड करने पर.
कमेटी ने कहा कि 728 के टारगेट के मुकाबले 720 EMRS को मंज़ूरी दी गई है और 722 स्कूलों के लिए जगहें अप्रूव हो गई हैं.
इनमें से सिर्फ़ 477 ही काम कर रहे हैं और सिर्फ़ 341 ही अपनी बिल्डिंग से चल रहे हैं. बाकी किराए की या दूसरी सरकारी बिल्डिंगों से चल रहे हैं, जिसके बारे में पैनल ने चेतावनी दी कि “उनमें स्कूल के लिए ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी हो सकती है.”
अपनी ओरिजिनल रिपोर्ट में कमेटी ने 2023-24 और 2024-25 में EMRS बजट के मुकाबले फंड का कम इस्तेमाल होने की बात कही थी और बताया था कि मंत्रालय ने भी माना है कि ज़मीन की कमी, भर्ती की दिक्कतें, कैपेसिटी बिल्डिंग और डिजिटल लर्निंग में कमियों की वजह से काम में रुकावट आ रही है.
मंत्रालय ने पैनल को बताया कि 2023-24 में 2,471.81 करोड़ रुपये के रिवाइज्ड आवंटन का 99.98 प्रतिशत और 2024-25 में 4,748.92 करोड़ रुपये के रिवाइज्ड आवंटन का 99.34 प्रतिशत इस्तेमाल किया गया.
मंत्रालय ने कई सुधार के कदम बताए. जैसे – 2024-25 में 67 ज़मीन के मुद्दों को सुलझाने और अप्रूवल को आसान बनाने से लेकर रोज़ाना लेबर की मॉनिटरिंग, क्वालिटी चेक और ऑल-इंडिया एग्जाम के ज़रिए 9,878 स्टाफ की भर्ती तक.
इन उपायों की तारीफ़ करते हुए समिति ने कहा कि ज़मीन की कमी एक “अहम मुद्दा” है जिसे राज्य सरकारों के साथ प्राथमिकता के आधार पर सुलझाया जाना चाहिए.
अब इसने यह सख्त रुख अपनाया है कि राज्यों से भविष्य के EMRS प्रस्तावों पर “तभी विचार किया जाना चाहिए जब वे पहले से ही, इस काम के लिए ज़रूरी ज़मीन की उपलब्धता सुनिश्चित करें” और मंत्रालय से इस मुद्दे पर तुरंत विचार करने और अंतिम कार्रवाई के चरण में रिपोर्ट देने को कहा है.
किराए की या दूसरी सरकारी इमारतों से अभी भी चल रहे EMRS के सवाल पर, मंत्रालय ने समिति को बताया कि वह इन टिप्पणियों पर ध्यान देता है और इस बात से सहमत है कि सभी स्कूलों को चालू करने के लिए साफ़ टाइमलाइन तय करना और उनका सख्ती से पालन सुनिश्चित करना बहुत ज़रूरी है.
पहले के आर्टिकल 275(1) स्कीम के तहत 5 करोड़ रुपये प्रति स्कूल की लागत से स्थापित पुराने EMRS पर, पैनल ने पहले पाया था कि इनमें से कई संस्थान कंपाउंड वॉल, लेबोरेटरी, खेल सुविधाएं, अतिरिक्त क्लासरूम, स्टाफ क्वार्टर, हॉस्टल ब्लॉक और फर्नीचर जैसी बेसिक सुविधाओं के बिना काम कर रहे थे.
एक सर्वे में अपग्रेडेशन के लिए ऐसे 211 स्कूलों की पहचान की गई थी, जिनमें से 167 को उस स्टेज पर मंज़ूरी मिल गई थी.
अपने जवाब में मंत्रालय ने समिति की चिंताओं को स्वीकार किया और कहा कि 211 स्कूलों में से 192 के अपग्रेडेशन के प्रस्तावों को अब नेशनल एजुकेशन सोसाइटी फॉर ट्राइबल स्टूडेंट्स (NESTS) ने मंज़ूरी दे दी है.
इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियों को पूरा करने के लिए राज्यों को फंड मंज़ूर किया गया है और आगे की ज़रूरतों की पहचान करने के लिए एक “व्यापक मूल्यांकन” चल रहा है, जिसमें वित्त मंत्रालय से नए EMRS के बराबर फंडिंग मांगने की योजना है.
इसमें स्टेट सोसाइटियों और स्कूलों को रोज़ाना के फैसले आज़ादी से लेने के लिए जारी किए गए सर्कुलर और गाइडलाइंस का भी ज़िक्र किया गया.
इन कदमों का स्वागत करते हुए, समिति ने फिर भी चेतावनी दी कि “बिना किसी तय समय-सीमा के अच्छे इरादे भी बहुत ज़्यादा देरी का कारण बनते हैं” और कहा कि इस तरह की सिस्टमैटिक देरी EMRS बनाने के “मकसद को ही खत्म कर देगी.”
इसने मंत्रालय से पुराने स्कूलों को सुधारने के लिए एक साफ़ टाइमलाइन तय करने, चल रहे मूल्यांकन को पूरा करने और अंतिम कार्रवाई के चरण में मूल्यांकन और टाइमलाइन दोनों के बारे में पैनल को सूचित करने के लिए कहा.
(Photo credit: PTI)

