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सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासी शख्स की मौत की SIT जांच के आदेश दिए, मंत्री को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी

बेंच ने कहा कि SIT में तीसरी ऑफिसर एक महिला डिप्टी SP होनी चाहिए और कहा कि SIT को मामले की तेज़ी से जांच करनी चाहिए और बेहतर होगा कि एक महीने के अंदर इसे खत्म कर दिया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मध्य प्रदेश के DGP को 27 साल के आदिवासी शख्स नीलेश आदिवासी (Nilesh Adivasi) की मौत की जांच के लिए तीन सदस्यों वाली स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) बनाने का निर्देश दिया.

वहीं इस मामले में दर्ज एक क्रिमिनल केस के सिलसिले में राज्य के मंत्री गोविंद सिंह राजपूत (Govind Singh Rajput) को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी.

30 अक्टूबर को हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच ने राज्य के फूड, सिविल सप्लाई और कंज्यूमर प्रोटेक्शन मंत्री राजपूत की एंटीसिपेटरी बेल याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि उनके खिलाफ पहली नजर में सबूत मौजूद हैं और SC/ST एक्ट, 1989 के सेक्शन 18 के तहत कानूनी रोक इस मामले पर लागू होती है.

गुरुवार को चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने मध्य प्रदेश के पुलिस डायरेक्टर जनरल को नीलेश आदिवासी की मौत की जांच के लिए तीन मेंबर वाली SIT बनाने का निर्देश दिया.

नीलेश ने पहले राजपूत के खिलाफ SC-ST एक्ट के तहत केस किया था लेकिन बाद में उसने दावा किया कि उसे यह शिकायत करने के लिए मजबूर किया गया था.

अपनी शिकायत से मुकरने के कुछ ही समय बाद उन्होंने सुसाइड कर लिया और उनकी मौत के सिलसिले में राजपूत के खिलाफ एक नया SC/ST केस दर्ज किया गया.

CJI की अगुवाई वाली बेंच ने निर्देश दिया कि SIT दो दिनों के अंदर बनाई जाए और इसमें स्टेट कैडर के दो SSP-लेवल के पुलिस ऑफिसर शामिल हों. जो मध्य प्रदेश के मूल निवासी नहीं हैं  ताकि घटना के अलग-अलग बयानों के बीच निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके.

बेंच ने कहा कि SIT में तीसरी ऑफिसर एक महिला डिप्टी SP होनी चाहिए और कहा कि SIT को मामले की तेज़ी से जांच करनी चाहिए और बेहतर होगा कि एक महीने के अंदर इसे खत्म कर दिया जाए.

CJI ने कहा कि SIT को तुरंत काम शुरू करना चाहिए और मौत के पीछे के हर एंगल की जांच करनी चाहिए, जिसमें वे एंगल भी शामिल हैं जो चल रही पुलिस जांच का हिस्सा नहीं हो सकते हैं.

बेंच ने आदेश दिया, “जो अलग-अलग बातें सामने आई हैं, उन्हें देखते हुए हम निर्देश देते हैं कि गोविंद सिंह राजपूत की गिरफ्तारी पर अंतरिम उपाय के तौर पर रोक लगाई जाए. अगर SIT को कोई आपत्तिजनक सामग्री मिलती है तो SIT कस्टडी में पूछताछ के लिए इस कोर्ट से इजाज़त मांग सकती है. SIT उन दूसरी संभावनाओं पर भी विचार करेगी जिनकी वजह से पीड़ित की दुर्भाग्यपूर्ण मौत हुई हो.”

इसने कहा कि बिना लोकल कनेक्शन वाले अधिकारियों ने नई जांच की ज़रूरत बताई.

बेंच ने यह भी निर्देश दिया कि गवाहों की सुरक्षा के उपाय लागू किए जाएं और किसी पर भी, खासकर आदिवासी गवाहों पर दबाव न डाला जाए.

राजपूत को गिरफ्तारी से बचाने के अलावा कोर्ट ने जांच के दौरान मृतक के भाई को अंतरिम सुरक्षा भी दी.

बेंच ने कहा, “मृतक के भाई के खिलाफ कोई ज़बरदस्ती वाला कदम नहीं उठाया जाएगा ताकि वे जांच में शामिल हो सकें.”

इस बीच बेंच ने हाई कोर्ट से नीलेश आदिवासी की पत्नी की पेंडिंग रिट पिटीशन पर सुनवाई करने को कहा, जिसमें उसने लोकल पुलिस पर कार्रवाई न करने और भेदभाव का आरोप लगाते हुए दखल देने की मांग की थी.

इसमें कहा गया कि हाई कोर्ट को टॉप कोर्ट के दिए गए निर्देशों के हिसाब से उसकी याचिका पर फैसला करना चाहिए.

यह आदेश राजपूत की उस याचिका पर दिया गया था जिसमें हाई कोर्ट ने आदिवासी की कथित आत्महत्या के मामले में उसे प्री-अरेस्ट बेल देने से मना कर दिया था.

नीलेश ने सबसे पहले 1 जुलाई को राजपूत पर जाति के आधार पर गाली-गलौज का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी.

लेकिन कुछ दिनों बाद नीलेश ने पुलिस सुपरिटेंडेंट को एक साइन किए हुए एफिडेविट में बताया कि उसकी शिकायत झूठी थी और जब वह नशे में था तब उससे शिकायत छीन ली गई थी.

उसने एक मजिस्ट्रेट को यह भी बताया कि उसका राजपूत से कोई झगड़ा नहीं था और उसने पहले की शिकायत एक लोकल नेता से कथित तौर पर जुड़े लोगों के दबाव में दर्ज कराई थी.

आदिवासी की उसी महीने बाद में फांसी लगाकर मौत हो गई. उसकी बॉडी 25 जुलाई को उसके घर पर मिली.

कुछ दिनों बाद, उसकी पत्नी ने तीन शिकायतें दर्ज कराईं और कई लोगों के नाम बताए जिनके बारे में उसने कहा कि उन्होंने उसके पति को मौत से पहले परेशान किया था.

आदिवासी की मौत के एक महीने से ज़्यादा समय बाद, 4 सितंबर को पुलिस ने राजपूत का नाम लेते हुए एक नया केस दर्ज किया और आत्महत्या के लिए उकसाने और SC/ST एक्ट के तहत अपराधों से जुड़े नियम लगाए.

इसके बाद राजपूत ट्रायल कोर्ट गए, जिसने उनकी अर्जी खारिज कर दी.

बाद में उन्होंने स्पेशल जज एक्ट, सागर के 26 सितंबर के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने उन्हें पुलिस स्टेशन मालथोन, जिला सागर में दर्ज मामले के संबंध में अग्रिम जमानत देने से मना कर दिया था.

हाई कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी, जिसके बाद टॉप कोर्ट में केस दायर किया गया.

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