असम के ऊपरी इलाकों में सोमवार को चाय जनजाति समुदाय ने एक बार फ़िर बड़ी रैली का आयोजन किया.
लगभग 50,000 आदिवासी चाय मज़दूर, महिलाएं और युवा डिब्रूगढ़ की सड़कों पर उतरे. सभी प्रदर्शनकारियों की वही एक मांग थी, “हमें अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दो”.
चौकिडिंगही चारियाली से लेकर जेल रोड तक चाय मजदूरों की लंबी कतारें लगी रहीं.
प्रदर्शनकारी मंकोटा पूजा मैदान, बोरपाथर ग्राउंड, मुरलीधर बस टर्मिनस और जेल रोड चार अलग-अलग स्थानों से जुलूस निकालते हुए शहर के केंद्र तक पहुंचे.
असम चाय मजदूर संघ (ACMS), असम टी ट्राइब स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ATTSA), चाह जनगोष्ठी जातीय महासभा, छत्तीस जनजाति परिषद और ऑल आदिवासी स्टूडेंट्स यूनियन (AASAA) ने संयुक्त रूप से इस आंदोलन का आयोजन किया.
प्रदर्शनकारियों ने 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले ST सूची में शामिल करने, मजदूरी बढ़ाकर ₹551 करने और चाय समुदाय के सभी परिवारों को भूमि के कानूनी पट्टे देने की मांग की.
भाजपा के दो कार्यकाल, वादे अब भी अधूरे
असम टी ट्राइब स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष धीरज गोवाला ने कहा, “आजादी के 78 साल बाद भी हमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, मकान और ज़मीन जैसे बुनियादी अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है. भाजपा ने 2014 के घोषणापत्र और 2016 के विज़न डॉक्यूमेंट में एसटी दर्जे का वादा किया था लेकिन अब तक कुछ नहीं किया.”
प्रदर्शनकारियों का कहना था कि अब बहानों का वक्त खत्म हो गया है और 2026 चुनाव से पहले ठोस कदम उठाए जाने चाहिए.
कांग्रेस को मिल मौका
भाजपा सरकार के इन अधूरे वादों ने कांग्रेस को चाय जनजाति के बीच दोबारा जगह बनाने का मौका दे दिया है.
असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी (APCC) अध्यक्ष गौरव गोगोई ने बिश्वनाथ जिले के प्रतापगढ़ टी गार्डन से राज्यव्यापी अभियान “राइजोर पड़ुली, राइजोर कांग्रेस” की शुरुआत की.
इस अभियान का उद्देश्य चाय बागानों में जाकर लोगों की समस्याएं सीधे सुनना है.
गौरव गोगोई ने कहा, “चाय मजदूरों के मुद्दे अब सिर्फ चुनावी वादे नहीं, बल्कि असम की पहचान का सवाल हैं.”
उन्होंने जनता से सीधे जुड़ाव और ज़मीनी स्तर पर भागीदारी वाली राजनीति को फिर से जीवित करने की ओर भी इशारा किया.
भाजपा पर निशाना साधते हुए गोगोई ने कहा कि भाजपा शासन में चाय जनजातियों के नेता ‘खामोश’ कर दिए गए हैं.
उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “कांग्रेस के वक्त में ये नेता शेर की तरह दहाड़ते थे लेकिन अब भाजपा के राज में बिल्ली की तरह चुप हैं. हमारी सरकार ने चाय जनजातियों का राजनीतिक सशक्तिकरण किया था. जो कभी अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का दावा करते थे, वे आज खामोश हैं और मज़दूर खाली पेट काम कर रहे हैं.”
गोगोई ने मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर भी चाय जनजातियों को वोट बैंक तक सीमित करने के आरोप लगाए.
असम में फिलहाल छह समुदाय ST दर्जे की मांग कर रहे हैं, जिनमें चाय जनजाति सबसे बड़ा समूह है.
8 अक्टूबर को भी इसी मांग को लेकर राज्यभर में बड़े प्रदर्शन हुए थे.
अब 14 अक्टूबर की रैली ने यह साफ कर दिया कि चाय जनजातियों का धैर्य जवाब दे चुका है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि डिब्रूगढ़ की यह भीड़ सिर्फ प्रदर्शन नहीं थी, यह 2026 विधानसभा चुनाव की दिशा तय करने वाला संदेश भी था.
भाजपा के वादों से मोहभंग और कांग्रेस के मैदान में उतरने के साथ, चाय बागानों की राजनीति अब असम के सत्ता समीकरणों का केंद्र बन चुकी है.