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नागालैंड में आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए आयोग का गठन

पांच प्रमुख नागा जनजातियों के विरोध के बाद सरकार ने आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए आयोग बनाकर छह महीने में रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए.

नागालैंड सरकार ने राज्य की पुरानी आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन किया है.

यह कदम पांच प्रमुख नागा जनजातियों द्वारा जारी किए गए 10 दिन के अलटीमेटम के बाद उठाया गया है.

इन जनजातियों का कहना है कि 1977 से लागू यह नीति वर्तमान सामाजिक और शैक्षिक परिस्थितियों के हिसाब से सही नहीं है.

आयोग का गठन और उद्देश्य

सोमवार को जारी एक सरकारी अधिसूचना के अनुसार, नागालैंड सरकार ने एक आयोग गठित किया है. इसका उद्देश्य सरकारी क्षेत्र में आरक्षण नीति की समीक्षा करना और जनजातीय प्रतिनिधित्व के लिए एक न्यायसंगत ढांचा तैयार करना है.

इस आयोग की अध्यक्षता सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी आर. रामकृष्णन करेंगे.

इस आयोग में गृह, कानून और न्याय, उच्च और तकनीकी शिक्षा, मानव संसाधन और प्रशासनिक सुधार विभागों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे.

समिति की मांग और सरकार की प्रतिक्रिया

कोरप (Core Committee on Reservation Policy) ने 20 सितंबर को सरकार को 10 दिन की समयसीमा दी थी.

कोरप आओ (Ao), अंगामी (Angami), लोथा (Lotha), रेंगमा (Rengma), और सुमी (Sumi) नाम की पांच जनजातियों का प्रतिनिधित्व करती है.

इस समिति ने 10 दिनों के भीतर आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए आयोग गठित करने की मांग की थी.

समिति ने चेतावनी दी थी कि यदि उनकी मांग पूरी नहीं की गई तो 1 अक्टूबर से आठ जिलों में पूर्ण बंद का आह्वान किया जाएगा.

इन जिलों में कोहिमा, दीमापुर, मोकोकचुंग, वोखा, निउलैंड आदि शामिल हैं.

नीति की पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति

1977 में लागू की गई आरक्षण नीति का उद्देश्य सात जनजातियों को सरकारी नौकरियों में 25 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करना था.

समय के साथ, यह आरक्षण बढ़कर 37 प्रतिशत हो गया है. 37 प्रतिशत में से 25 प्रतिशत आरक्षण सात पूर्वी नागालैंड पिछड़ी जनजातियों के लिए और 12 प्रतिशत आरक्षण अन्य चार पिछड़ी जनजातियों के लिए निर्धारित किया गया है.

समिति का कहना है कि यह नीति अब पुरानी हो चुकी है और वर्तमान सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप नहीं है.

आयोग की कार्यवाही

आयोग को ये जिम्मेदारी दी गई है कि वह आरक्षण से जुड़े कानून और नियमों को देखे, लोगों की आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का आंकलन करे, ये जांचे करे कि वर्तमान नीति कितनी कारगर है और अलग-अलग समुदायों और लोगों से राय-मशविरा करे.

आयोग को अपनी रिपोर्ट छह महीने के अंदर सरकार को सौंपने के निर्देश दिए गए हैं.

पांच जनजातियों का प्रतिनिधित्व कर रही ये समिति अप्रैल से इस मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रही है.

अब सरकार ने उनकी मांग को मानकर आयोग का गठन कर दिया है.

अब देखना यह है कि आयोग अपनी रिपोर्ट में क्या सिफारिशें करता है और सरकार उस पर क्या फैसला लेती है.

(Image is just for representation purpose.)

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