नागपुर में स्थित साउथ सेंट्रल ज़ोन सांस्कृतिक केंद्र (SCZCC) ने एक खास पहल की शुरुआत की है, जिसे “स्कूल कनेक्ट” कहा जाता है.
इस कार्यक्रम का मकसद बच्चों को भारत की समृद्ध लोकसंस्कृति और आदिवासी नृत्यों से जोड़ना है ताकि वे अपनी संस्कृति को समझें, उसकी पहचान करें और उस पर गर्व महसूस करें.
यह कार्यक्रम फिलहाल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई स्कूलों में चल रहा है, जिसमें बच्चों को राय, पंथी और बैगा कर्मा जैसे पारंपरिक आदिवासी नृत्यों की शिक्षा दी जा रही है.
राय नृत्य छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोकनृत्य है, पंथी सतनामी समाज से जुड़ा हुआ है और बैगा कर्मा बैगा जनजाति का पारंपरिक नृत्य है, जिसमें जंगल और प्रकृति के साथ गहरा संबंध झलकता है.
इस कार्यक्रम की सबसे खास बात यह है कि बच्चों से कोई फीस नहीं ली जाती.
यह पूरी तरह से मुफ्त है ताकि सभी बच्चे इस पहल का लाभ उठा सकें. SCZCC और स्कूल मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि नृत्य की कक्षाएं बच्चों की पढ़ाई में बाधा न बनें.
आमतौर पर ये कक्षाएं स्कूल के बाद, छुट्टियों में या सप्ताहांत पर आयोजित की जाती हैं. इससे बच्चों को अपनी पढ़ाई और नृत्य दोनों में संतुलन बनाने में मदद मिलती है.
बच्चे इस कार्यक्रम को लेकर बहुत उत्साहित हैं.
वे मजे से नृत्य सीख रहे हैं, और अपने परंपरागत नृत्यों को समझ कर खुश हैं. कई स्कूलों में तो बच्चों ने मंच पर भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है, जिसे देखने वाले बहुत पसंद करते हैं.
इस पहल पर बच्चों के माता-पिता भी खुश हैं. वे कहते हैं कि इससे बच्चों को अपनी संस्कृति से जुड़ने का मौका मिलता है.
कई अभिभावकों ने बताया कि इससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ा है और वे अपनी विरासत के बारे में जानकर गर्व महसूस करते हैं.
वे यह भी मानते हैं कि नृत्य सीखने से बच्चों का व्यक्तित्व निखरता है और वे पढ़ाई के साथ-साथ कला में भी अच्छा कर रहे हैं.
SCZCC का मानना है कि इस तरह के कार्यक्रम बच्चों के लिए भविष्य में बहुत फायदेमंद साबित होंगे.
नृत्य और लोकसंस्कृति सीखने से बच्चों की याददाश्त, अनुशासन और टीम भावना बढ़ती है.
इससे वे न सिर्फ अपनी जड़ों से जुड़ेंगे बल्कि अपने आत्मविश्वास और सामाजिक कौशल को भी मजबूत करेंगे.
यह सब बच्चों के भविष्य के लिए जरूरी गुण हैं, जो उन्हें जीवन में आगे बढ़ने में मदद करेंगे.
कुल मिलाकर, नागपुर के SCZCC का यह “स्कूल कनेक्ट” कार्यक्रम बच्चों के सांस्कृतिक विकास और उनके आत्मसम्मान को बढ़ाने की दिशा में एक बहुत ही अच्छा कदम है.
यह पहल बच्चों को न केवल अपनी परंपरा से जोड़ती है, बल्कि उन्हें एक खुशहाल और सफल भविष्य की ओर भी ले जाती है.