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अध्ययन ने खोली तमिलनाडु के खानाबदोश जनजातियों में माध्यमिक शिक्षा की कमी की पोल

एक अध्ययन में तमिलनाडु (Tamil Nadu) के खानाबदोश जनजातियों (Nomadic community) में शिक्षा की भारी कमी और उनकी चुनौतियों के बारे में बताया है.

एक अध्ययन में तमिलनाडु (Tamil Nadu) के खानाबदोश जनजातियों (Nomadic community) में शिक्षा की भारी कमी देखने को मिली हैं. अध्ययन के मुताबिक तमिलनाडु के खानाबदोश जनजातियों की बड़ी आबादी ने माध्यमिक शिक्षा यानी 10वीं कक्षा किसी ना किसी कारणवश पूरी नहीं की है.


ज्यादातर खानाबदोश जनजाति छात्रों का माध्यमिक शिक्षा पूरा ना करना या स्कूल छोड़ने का प्रमुख कारण भेदभाव है.
एक प्रारंभिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि तमिलनाडु में खानाबदोश समुदाय के 1,485 परिवारों में से 1,118 में किसी ने भी स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं की.


वनविल ट्रस्ट (Vanavil Trust) जो कि जमीनी स्तर पर काम करने वाला गैर सरकारी संगठन है. ट्रस्ट ने चार जनजातियों – नारिकुरावर, आदियान, लंबाडा और कटुनायकर के बीच पार्टिसिपेटरी रिसर्च किया. इससे पता चला कि सेकेंडरी स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट (SSLC) पूरा करने वाले 24.73 प्रतिशत, हाई स्कूल सर्टिफिकेट (HSC) 14.15 प्रतिशत और कॉलेज स्नातक 7.21 प्रतिशत लोगों ने पूरा किया है.


यह अध्ययन आठ जिलों: कुड्डालोर, कृष्णागिरि, मयिलादुदुरई, मदुरै, नागपट्टिनम, तिरुवरुर, तंजौर और तिरुवन्नामलाई के 15 गांवों में आयोजित किया गया था. वनविल ट्रस्ट 2005 में तमिलनाडु में स्थापित की गई एक संस्था है. जो खानाबदोश आदिवासी समुदायों के बच्चों की शिक्षा के लिए काम करती हैं.


डीएमके नेता और थूथुकुडी से सांसद के कनिमोझी की रिपोर्ट


9 अगस्त को चेन्नई के मद्रास स्कूल ऑफ सोशल वर्क (MSS) में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) नेता और थूथुकुडी से सांसद के कनिमोझी ने एक रिपोर्ट जारी की थी. जिसमें उन्होंने कहा था की खानाबदोश लोगों की आवाज बनो, उनके मुद्दों को मुख्यमंत्री तक लेके जाओ और भारतीय संसद में इसके बारे में बात करो.


रिपोर्ट के मुताबिक सब बच्चों का स्कूल छोड़ने का मुख्य कारण भेदभाव हैं. ये भेदभाव जाति, व्यवसाय, खान-पान की आदतों, भाषा और शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर होता है. इसके अलावा बच्चों के स्कूल छोड़ने का कारण आदिवासी बस्तियों से स्कूल का दूर होना, बच्चों का माता-पिता के साथ उनके काम पर जाना (परिवार का समर्थन करने के लिए बाल श्रम करना), छोटे भाई-बहनों की देखभाल के लिए लड़कियों का घर पर रहना और बाल विवाह शामिल है.


इस पर वनविल ट्रस्ट का कहना है कि खानाबदोश जनजातियों (NT) और विमुक्त जनजातियों (DNT) को समाज में अपराधी माना जाता है. जिसका प्रभाव स्कूल में भी देखने को मिलता हैं. इससे अन्य समुदायों के बच्चों के साथ मित्रता की कमी और अलगाव होता है. वैसे तमिलनाडु में अबतक 37 खानाबदोश जनजातियों (NT), विमुक्त जनजातियों (DNT) और अर्ध-घुमंतू जनजातियों (SNT) की पहचान हुई हैं.


रिपोर्ट में लिखा गया है कि खानाबदोश लोगों को जन्म और सामुदायिक प्रमाण पत्र व्यवस्थित रूप से देने के लिए मना कर दिया जाता है. जबकी यह पत्र शिक्षा, आरक्षण लाभ और उच्च शिक्षा के लिए जरूरी होता है. जिससे गरीबी और भेदभाव के दुष्चक्र को तोड़ा जा सकता हैं.


रिपोर्ट जारी कार्यक्रम में प्रस्तुत आदियान ट्राइबल एसोसिएशन (Aadiyan Tribal Association) के धीराइयां का कहना है कि अधिकारी जानबूझकर हमारे साथ भेदभाव कर रहे हैं. एक ही माता-पिता से पैदा हुए दो बच्चों को अलग-अलग सामुदायिक प्रमाणपत्र दिए जाते हैं.


इसके साथ ही उन्होंने कहा की मुझे साल 1987 में आदियान अनुसूचित जनजाति (ST) का प्रमाणपत्र मिला था. लेकिन मेरे बेटे को अभी तक प्रमाणपत्र नहीं मिल पाया है क्योंकि मेरे बार-बार आवेदन करने बाद भी पर्याप्त सबूत ना होने का कहकर आवेदन को खारिज कर दिया जाता है.


आदियान ट्राइबल एसोसिएशन के महासचिव राजू का कहना है की वह अनुसूचित जनजाति और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (MBC) दोनों है क्योंकि पूरा परिवार अनुसूचित जनजाति है. लेकिन मैं और मेरी पत्नी एमबीसी हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि हम एक अलग जिले में रह रहे हैं.


कार्यक्रम में आने वाले बूम बूम माटुकरार या आदियान समुदाय से संबंधित मदेश को सामुदायिक प्रमाणपत्र ना होने के कारण 2021 में कृष्णागिरी सरकारी कॉलेज में दाखिला नहीं मिल पाया था. इसके साथ ही प्रमाणपत्र के कारण सेना में शामिल होने के लिए भी संभावनाएं ख़तरे में थे.


रिपोर्ट में कहा गया है कि एनटी और डीएनटी समुदायों को सांप खाने वाले और बिल्ली खाने वाले के रूप में भी कलंकित किया जाता है. जबकि वे वास्तव में ऐसा मांस नहीं खाते हैं. और ये मुख्यधारा के समाज द्वारा उन्हें अपमानित करने के लिए लगाए गए कलंक हैं.


रिपोर्ट में बताया गया है कि इन समुदायों को उनकी ज़रूरतों के बारे में विश्वसनीय जानकारी तैयार करके और उनके अधिकार उन तक पहुंचना सुनिश्चित करके दृश्यमान बनाया जाना चाहिए.


रिपोर्ट में खानाबदोश बस्तियों में बिजली, पानी, खाना, स्वच्छता, शिक्षा, आर्थिक तंगी और अच्छा आवास होना और इसके साथ ही कुपोषण को भी दर्शाया गया हैं. इसके अलावा उन्हें घर-स्थल के पट्टे और आवास भी उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं. उनके पास राशन कार्ड तक भी पहुंच नहीं है इसलिए खाद्य सुरक्षा एक मुद्दा है और कुपोषण आम है.


कुल मिलाकर रिपोर्ट का निष्कर्ष है की ट्रस्ट ने राज्य से खानाबदोश जनजातियों पर हो रहे हिंसा के मुद्दों को देखने के लिए एक एनटी/डीटीएन कल्याण बोर्ड का गठन करने की मांग की है. साथ ही एमपी कनिमोझी से तमिलनाडु सरकार को 31 अगस्त को एनटी/डीएनटी लोगों के लिए विमुक्त दिवस (मुक्ति दिवस) के रूप में मनाने का आग्रह किया है. 31 अगस्त, 1952 को आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत अधिसूचित जनजातियों को अपराधियों के रूप में विमुक्त कर दिया गया था. इसके उनकी स्वतंत्रता के दिन के रूप में मनाया जाता है.

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