ओडिशा के कोरापुट जिले के जयरपुर शहर में इस बार दशहरा बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा.
यहाँ का दशहरा त्योहार बहुत ही मशहूर है, क्योंकि इसमें आदिवासी लोग अपने पारंपरिक (पुराने और खास) वाद्य यंत्रों (संगीत के सामान) के साथ शामिल होते हैं.
इस बार भी कई आदिवासी गाँवों से लोग जयरपुर आएंगे. कुछ लोग तो 100 किलोमीटर दूर से पैदल चलकर आते है.
वे अपने गाँव की देवी के लिए लकड़ी की एक खास लाठी लेकर आते है, जिसे “नग-लाठी” कहा जाता है. यह लाठी उनके देवी का प्रतीक (चिन्ह) होती है.
लोग नंगे पांव चलते हुए, सिर पर नग-लाठी और हाथों में ढोल, नगाड़ा और महुरी (एक तरह की बांसुरी) लेकर आते है.
जब ये लोग शहर पहुंचते है, तो वो पारंपरिक संगीत बजाना शुरू करते है. इन वाद्य यंत्रों की आवाज़ बहुत जोशीली और दिल को छूने वाली होती है.
पूरे शहर में एक अलग ही माहौल बन जाता है.
एक कलाकार मेहतार पेंका, जो नबरंगपुर जिले से है, उन्होंने बताया कि वे पिछले 17 साल से “नागर” बजा रहे हैं.
यह एक बड़ा सा ड्रम होता है, जिस पर चमड़े की परत होती है. इसे लकड़ी की छड़ी से बजाया जाता है.
उनका कहना था कि यह उनके परिवार की पुरानी परंपरा है.
सबसे पहले “मंगल बाजा” बजाया जाता है. फिर पहले महुरी बजती है, फिर धीरे-धीरे बाकी वाद्य यंत्र जुड़ते हैं.
यह संगीत खासतौर पर देवी की पूजा और उत्सव के लिए बजाया जाता है.
महुरी एक खास वाद्य यंत्र है. इसे बजाना आसान नहीं होता, क्योंकि इसमें लंबे समय तक सांस रोक कर हवा भरनी पड़ती है. महुरी कई हिस्सों से मिलकर बनती है – जैसे बाँस, धातु और एक सीटी जैसी ट्यूब.
एक और वाद्य है “ढमक”, जो लकड़ी का बना होता है और ऊपर बकरी की खाल होती है. यह ढोल की तरह बजाया जाता है.
एक और छोटा सा वाद्य “तुडुबुड़ी” भी होता है, जो हाथ में पकड़कर बजाया जाता है.
लोगों का कहना है कि जो व्यक्ति महुरी या कोई और वाद्य बजाता है, उसे गाँव में बहुत इज्जत दी जाती है.
क्योंकि यह देवी की सेवा का एक तरीका माना जाता है.
इस त्योहार में सिर्फ संगीत ही नहीं, बल्कि आस्था (भक्ति), मेहनत और परंपरा भी दिखाई देती है. आदिवासी लोग अपनी पूरी श्रद्धा के साथ इस त्योहार में भाग लेते हैं.
वे देवी के लिए चलकर आते हैं, गाते-बजाते हैं और पूजा करते हैं.
जनजातीय संस्कृति के जानकार परेश रथ ने कहा कि कोरापुट की यह दशहरा बहुत खास होता है, क्योंकि इसमें जो संगीत बजाया जाता है, वह केवल यहीं सुनाई देता है.
यह हमारी परंपरा की अनमोल धरोहर है.