HomeAdivasi Dailyआदिवासी अधिकार मंच ने जनगणना में अलग पहचान की मांग की

आदिवासी अधिकार मंच ने जनगणना में अलग पहचान की मांग की

आदिवासियों का कहना है कि हम न हिंदू, न ईसाई, हम अपनी अलग धार्मिक पहचान चाहते हैं. अखिल भारतीय आदिवासी अधिकार मंच ने इस मांग को पूरा करने में निर्णायक भूमिका निभाने वाले पद को पत्र लिखकर इस आवाज़ का बुलंद किया है.

आदिवासी समुदाय काफ़ी लंबे समय से जनगणना में अपनी अलग धार्मिक पहचान दर्ज कराने की मांग कर रहे हैं.

देशभर में फैले अलग-अलग जनजातीय समूहों का कहना है कि उनकी धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं को “अन्य धर्म” (ORP) की कैटेगरी में डाल देना उनकी असल पहचान को धुंधला कर देता है.

इसी मुद्दे पर अब अखिल भारतीय आदिवासी अधिकार मंच (AARM) ने एक महत्तवपूर्ण कदम उठाया है.

संगठन की ओर से चेयरपर्सन जितेंद्र चौधरी और उपाध्यक्ष व पूर्व सांसद बृंदा करात ने गृह मंत्रालय के अधीन भारत के जनगणना आयुक्त के महापंजीयक (Registrar General of Census Commissioner of India) को एक पत्र लिखा है.

इस पत्र में कहा गया है कि 2011 की जनगणना में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 8.6% यानी 10.43 करोड़ थी.

इनमें से अधिकांश समुदाय अपनी परंपरागत आस्था और विश्वास मानते हैं. लेकिन उन्हें अलग से पहचान दर्ज करने का विकल्प नहीं मिला. इसी वजह से इन्हें “अन्य धर्म” की अस्पष्ट कैटेगरी में डाल दिया गया.

ओआरपी के तहत उस समय सिर्फ़ 79 लाख लोगों ने पंजीकरण कराया, जो कुल आबादी का 0.66% था.

पत्र में यह भी लिखा गया कि जब छह प्रमुख धर्मों (हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन) का ज़िक्र जनगणना में मुख्य धर्मों के तौर पर किया जा सकता है तो आदिवासी धार्मिक आस्थाओं को भी समान दर्जा मिलना चाहिए.

संगठन ने अपील की है कि आने वाली जनगणना में एक अलग कॉलम शेड्यूल्ड ट्राइब, जनजाति या आदिवासी विश्वास (Scheduled Tribe/Janajati/Adivasi Faiths) के नाम से जोड़ा जाए, ताकि आदिवासी अपनी धार्मिक पहचान स्पष्ट तौर पर दर्ज कर सकें.

बृंदा करात पहले भी ये मांग उठा चुकी हैं कि आदिवासियों की धार्मिक पहचान लिखने के लिए जनगणना में अलग से कॉलम होना चाहिए.

उन्होंने एक लेख में लिखा था कि संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूचियों (Fifth and Sixth Schedule) में आदिवासी समुदायों की मान्यताओं, परंपराओं और रीति-रिवाजों की रक्षा के प्रावधान हैं. अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है और अनुच्छेद 26 धार्मिक संस्थाओं को संचालित करने के अधिकार देता है. लेकिन जनगणना में केवल छह धर्मों को मान्यता देकर और ओआरपी जैसे अस्पष्ट विकल्प के सहारे आदिवासियों की आस्थाओं को अनदेखा करना अनुच्छेद 25 की भावना का उल्लंघन है.

झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में आदिवासी लगातार सरना धर्म कोड की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर आंदोलन करते रहे हैं.

झारखंड विधानसभा ने 2020 में बाक़ायदा प्रस्ताव पास करके केंद्र से यह मांग की थी कि अगली जनगणना में आदिवासी धर्म के लिए अलग कॉलम होना चाहिए.

आदिवासी अधिकार मंच का भी मानना है कि 2027 की जनगणना यदि जातिवार हो सकती है तो उसमें आदिवासी धर्म कोड भी शामिल होना चाहिए.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments