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रांची में 17 अक्टूबर को आदिवासी हुंकार रैली, कुरमी समाज को ST दर्जा न देने की माँग

बबलू मुंडा ने कहा कि 17 अक्टूबर की रैली एक सामान्य प्रदर्शन नहीं होगी, बल्कि यह आदिवासी समाज की एकता और संघर्ष की आवाज़ होगी.

झारखंड की राजधानी रांची में 17 अक्टूबर 2025 को एक बड़ी आदिवासी रैली होने जा रही है, जिसका नाम है ‘आदिवासी हुंकार महारैली.’

इस रैली का मकसद यह दिखाना है कि आदिवासी समाज अपने हक और पहचान को लेकर जागरूक है और वह नहीं चाहता कि कोई दूसरी जाति उनके अधिकारों पर कब्जा करे.

यह रैली खासकर कुरमी समाज को लेकर हो रही है.

दरअसल, कुरमी समाज लंबे समय से मांग कर रहा है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए.

लेकिन आदिवासी समाज के नेता इस बात का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि कुरमी समाज कभी भी आदिवासी नहीं रहा है और अगर उन्हें ST का दर्जा दिया गया तो इससे असली आदिवासी लोगों का हक छिन जाएगा.

इस रैली की जानकारी रांची के सिरम टोली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए दी गई.

इस प्रेस वार्ता में केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा, पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव, और देवकुमार धान जैसे कई आदिवासी नेता मौजूद थे.

सभी नेताओं ने एक ही बात दोहराई कि कुरमी समाज को ST का दर्जा देना गलत होगा और इससे आदिवासी समाज को नुकसान होगा.

गीताश्री उरांव ने कहा कि कुरमी समाज पहले खुद को ‘सभ्य’ और आदिवासी समाज को ‘जाहिल’ कहता था.

लेकिन अब वही समाज खुद को आदिवासी बताने लगा है. उन्होंने आरोप लगाया कि कुरमी समाज झूठे इतिहास और कहानियाँ गढ़कर आदिवासी पहचान अपनाने की कोशिश कर रहा है.

उन्होंने कहा कि कई ऐतिहासिक आदिवासी विद्रोहों जैसे संथाल विद्रोह, कोल विद्रोह और चुआड़ आंदोलन से जुड़े नेताओं को भी कुरमी समाज अपने समाज का बताने की कोशिश कर रहा है.

जो कि पूरी तरह गलत है.

नेताओं ने यह भी कहा कि अगर बिना जांच-पड़ताल के किसी को ST का दर्जा दिया गया, तो यह संविधान और आदिवासी समाज के साथ धोखा होगा.

इसलिए उन्होंने सरकार से मांग की है कि ऐसी जातियों की पहचान के लिए एक स्वतंत्र समिति बनाई जाए, जो निष्पक्ष जांच करे.

बबलू मुंडा ने कहा कि 17 अक्टूबर की रैली एक सामान्य प्रदर्शन नहीं होगी, बल्कि यह आदिवासी समाज की एकता और संघर्ष की आवाज़ होगी.

लाखों लोग इसमें शामिल होंगे और सरकार को यह संदेश देंगे कि आदिवासी अधिकारों से किसी को खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा.

भारत में ST यानी अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाना आसान नहीं है.

इसके साथ शिक्षा में आरक्षण, नौकरियों में सुविधा और ज़मीन जैसे कई अधिकार मिलते हैं.

इसलिए कई जातियाँ यह दर्जा चाहती हैं. लेकिन अगर जो जातियाँ आदिवासी नहीं हैं, उन्हें ST बना दिया गया, तो असली आदिवासियों का हक कम हो जाएगा. यही डर आदिवासी समाज में है.

झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है.

यहाँ आदिवासी लोग अपनी पहचान, भाषा और संस्कृति को लेकर पहले से ही संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे में कुरमी समाज को ST दर्जा देने की बात ने विवाद और चिंता बढ़ा दी है.

इसीलिए 17 अक्टूबर की हुंकार रैली को बहुत अहम माना जा रहा है.

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