झारखंड में कुर्मी समुदाय (Kurmi community) को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) में शामिल करने की मांग के खिलाफ आदिवासियों ने गोलबंदी शुरू कर दी है.
रविवार (12 अक्टूबर, 2025) को आदिवासी बचाओ मोर्चा के नेतृत्व में विभिन्न आदिवासी समूहों के हज़ारों लोगों ने रांची में कुर्मी समुदाय की एसटी (ST) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में ‘आक्रोश महारैली’ निकाली.
राज्य के सभी ज़िलों से बड़ी संख्या में आदिवासी अपने पारंपरिक झंडे, तीर-धनुष जैसे हथियार और अन्य सांस्कृतिक सामग्री लेकर कुर्मियों की बढ़ती मांग के ख़िलाफ़ अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिए रांची में एकत्रित हुए.
रांची के मोरहाबादी मैदान से निकाली गई इस रैली में राज्य के विभिन्न ज़िलों के आदिवासी नेता, युवा और महिलाएं शामिल हुईं. रैली में शामिल लोगों ने धमकी दी कि अगर कुर्मी समुदाय को एसटी का दर्जा देने का कोई भी कदम उठाया गया तो वे अपना विरोध और तेज़ कर देंगे.
रैली का समापन रांची कॉलेज के पास रामदयाल मुंडा फुटबॉल मैदान में एक जनसभा के साथ हुआ.
आदिवासी नेताओं ने सभी से इस लड़ाई में एकजुट होने का आग्रह किया.
केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि आदिवासी लंबे समय से कुर्मियों की मांगों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.
तिर्की ने आगे कहा, “यह हमारे अस्तित्व और पहचान की रक्षा का मामला है. जब भी कुर्मी आदिवासी बनने की बात करेंगे, हम हर बार उसके खिलाफ खड़े होंगे. अब तक हम पूरे राज्य में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं. लेकिन जिस दिन हमें लगेगा कि कुर्मियों की मांगों के कारण हमारे अधिकारों पर अंकुश लगाया जा रहा है, हमारा विरोध भी हिंसक हो जाएगा और इसके परिणामों के लिए कुर्मी नेता जिम्मेदार होंगे.”
तिर्की ने कहा कि वे किसी को भी आदिवासियों के अधिकारों को छीनने नहीं देंगे.
उन्होंने कहा, “राज्य के सभी आदिवासी एकजुट हैं और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं. आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, आरक्षण और भूमि अधिकारों को हड़पने की साजिश रची जा रही है.”
उधर आदिवासी नेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि कुर्मियों की मांगें राजनीति से प्रेरित हैं.
उन्होंने कहा कि यह आदिवासी अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई है.
डुंगडुंग ने आगे कहा, “जब से उन्होंने एक गैर-आदिवासी को राज्य का मुख्यमंत्री बनते देखा है, तब से वे अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं. 2022 में वे ग्राम प्रधान पद पर ओबीसी के रूप में आरक्षण की मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट गए, जिसे बाद में कोर्ट ने रद्द कर दिया. ग्राम प्रधान पद से लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक, वे सब कुछ हथियाने की कोशिश कर रहे हैं.”
आदिवासी नेता कुमुदिनी धान ने कहा कि यह राज्य की सभी 32 जनजातियों द्वारा आदिवासी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए एक प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन मात्र है.
उन्होंने कहा, “अगर कुर्मी को एसटी का दर्जा देने का कोई भी कदम उठाया जाता है, तो झारखंड में एक बड़ा आंदोलन देखने को मिलेगा.”
आदिवासी बचाओ मोर्चा के बैनर तले आदिवासी 17 अक्टूबर को रांची के धुर्वा स्थित प्रभात तारा मैदान में एक और विशाल रैली करने जा रहे हैं.
वहीं इससे पहले 20 सितंबर को आदिवासी कुर्मी समाज (AKS) के बैनर तले हज़ारों प्रदर्शनकारियों ने राज्य भर के विभिन्न स्टेशनों पर रेलवे पटरियों पर धरना दिया था और कुर्मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने और कुर्माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की अपनी माँग पर ज़ोर दिया.
इस आंदोलन के कारण 100 से ज़्यादा ट्रेनें रद्द, डायवर्ट और समय से पहले ही रोक दी गईं.
इस दौरान आदिवासी समूहों ने कुर्मी समुदाय द्वारा रेल रोको अभियान का विरोध किया था.
(Photo credit: PTI)