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 17 दिन की भूख हड़ताल के बाद दीपक बोर्ढे ने लिया विराम, कहा- लड़ाई अभी बाकी है

दीपक बोर्ढे ने जनता से वादा किया कि जैसे ही उनकी सेहत ठीक हो जाएगी, वे महाराष्ट्र के हर जिले में जाकर लोगों से मिलेंगे, उन्हें जागरूक करेंगे और आंदोलन को फिर से मजबूत बनाएंगे.

महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर (जिसे पहले औरंगाबाद कहा जाता था) में धनगर समाज के प्रसिद्ध नेता और समाजसेवी दीपक बोर्ढे ने अपनी 17 दिनों से चल रही भूख हड़ताल को अस्थायी रूप से रोकने का ऐलान किया है.

यह हड़ताल उन्होंने धनगर समाज को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर शुरू की थी. लेकिन अब उनकी तबीयत बिगड़ने लगी थी, इसलिए उन्होंने थोड़ी देर के लिए विराम लिया है.

दीपक बोर्ढे ने साफ कहा कि यह भूख हड़ताल पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है.

यह सिर्फ एक छोटा सा ब्रेक है, ताकि वे अपनी सेहत को ठीक कर सकें और आगे की रणनीति अच्छे से बना सकें.

उन्होंने यह भी कहा कि जब कोई योद्धा थक जाता है या घायल हो जाता है, तो वह मैदान नहीं छोड़ता, वह सिर्फ थोड़ा रुकता है, और मैं भी रुक रहा हूँ, लेकिन हमारी लड़ाई अभी भी ज़िंदा है.

दीपक बोर्ढे पहले पुलिस विभाग में कांस्टेबल थे. लेकिन उन्होंने समाज की सेवा के लिए नौकरी छोड़ दी और अब पूरी तरह से धनगर समाज के अधिकारों की लड़ाई में लगे हुए हैं.

17 दिन की भूख हड़ताल के दौरान उनकी हालत काफी खराब हो गई थी. उन्हें चक्कर आने लगे थे, और शरीर में कमजोरी बढ़ गई थी.

इसी वजह से उनकी बेटी ने उन्हें जूस पिलाकर यह हड़ताल रुकवाई.

इस आंदोलन की गूंज पूरे महाराष्ट्र में सुनाई दी. राज्य के कई बड़े नेता और मंत्री बोर्ढे से मिलने पहुंचे.

राज्य के मंत्री गिरीश महाजन, पंकजा मुंडे, और विधायक अर्जुन खोतकर उनसे मिलने आए और भूख हड़ताल खत्म करने की अपील की.

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस मामले में बोर्ढे से बातचीत की कोशिश की.

मुख्यमंत्री ने उनसे कहा कि सरकार को इस विषय को हल करने के लिए थोड़ा समय दिया जाए.

दीपक बोर्ढे ने बताया कि उन्होंने यह निर्णय अकेले नहीं लिया है, बल्कि उन्होंने कानून और समाज के विशेषज्ञों, अपने समर्थकों और अन्य नेताओं से विचार-विमर्श करने के बाद ही भूख हड़ताल रोकने का फैसला किया.

उन्होंने कहा कि वह सरकार को आखिरी मौका दे रहे हैं कि वह 2014 से किए गए वादों को पूरा करे.

उन्होंने जानकारी दी कि महाराष्ट्र की ST (अनुसूचित जनजाति) सूची में धनगर समाज पहले से 36वें नंबर पर दर्ज है, लेकिन फिर भी उन्हें उसका लाभ नहीं मिल रहा है.

उन्होंने सुझाव दिया कि ST कोटे के 7% में से 3.5% हिस्सा धनगर समाज को दिया जा सकता है, जिससे किसी और समाज को नुकसान भी नहीं होगा.

बोर्ढे ने मराठा समाज के आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे उन्होंने एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, वैसे ही अब धनगर और बंजारा समाज को भी मिलकर अपनी आवाज बुलंद करनी होगी.

उन्होंने यह भी बताया कि हाल ही में समाज के कार्यकर्ताओं और नेताओं की एक बैठक हुई थी, जिसमें तय हुआ कि अब आगे की लड़ाई नई रणनीति और पूरे राज्यव्यापी आंदोलन के साथ की जाएगी.

दीपक बोर्ढे ने जनता से वादा किया कि जैसे ही उनकी सेहत ठीक हो जाएगी, वे महाराष्ट्र के हर जिले में जाकर लोगों से मिलेंगे, उन्हें जागरूक करेंगे और आंदोलन को फिर से मजबूत बनाएंगे.

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