प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 78वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराया और राष्ट्र के नाम अपना संबोधन दिया. इस दौरान उन्होंने देश की आजादी के लिए बलिदान देने वाले और संघर्ष करने वाले अनगिनत लोगों को श्रद्धांजलि दी.
मोदी ने कहा, “देश उनका ऋणी है.”
अपने 98 मिनट के लंबे भाषण में उन्होंने आदिवासी नेता बिरसा मुंडा का भी ज़िक्र किया, जिन्हें भगवान बिरसा के नाम से भी जाना जाता है.
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में ही भगवान बिरसा मुंडा और आदिवासियों का जिक्र किया. प्रधानमंत्री ने कहा कि 1857 से पहले भी देश के आदिवासी समुदाय के लोग आजादी के लिए लड़ रहे थे.
वहीं पीएम मोदी ने बिरसा मुंडा के बारे में कहा, “स्वतंत्रता संग्राम से पहले भी एक आदिवासी युवक था जो ब्रिटिश सेना के लिए सिरदर्द बन गया था. महज़ 20-22 साल की उम्र में यह युवक अंग्रेजों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गया. आज हम उन्हें भगवान बिरसा मुंडा के नाम से जानते हैं और उनकी पूजा करते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “उनकी 150वीं जयंती पास आ रही है. और वे हमारे समाज के सभी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. बिरसा मुंडा ने दिखाया कि समाज का सबसे छोटा व्यक्ति भी कैसे बड़ा बदलाव ला सकता है. आइए हम सब मिलकर अपने प्रेम और करुणा को बढ़ाते हुए उनकी 150वीं जयंती मनाएं.”
कौन है बिरसा मुंडा?
बिरसा मुंडा एक स्वतंत्रता सेनानी और एक सम्मानित आदिवासी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी और उन्हें साम्राज्य के खिलाफ़ आदिवासियों को संगठित करने का श्रेय दिया जाता है.
मुंडा ने औपनिवेशिक शासकों को आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने के लिए मजबूर किया. उन्होंने बंगाल, बिहार और ओडिशा के पश्चिमी जिलों को मिलाकर तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी में उठे आदिवासी सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया.
मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को वर्तमान झारखंड के छोटानागपुर पठार में हुआ था. उन्होंने 1895 के भीषण अकाल के दौरान वन करों की माफी के लिए अपना पहला विरोध मार्च आयोजित किया था.
उन्होंने नारा भी गढ़ा था- ‘अबुआ राज सेटर जाना, महारानी राज टुंडू जाना’ जिसका मतलब है ‘रानी का राज्य खत्म करो, अपना राज्य बनाओ.’
इसके बाद 1899 में बिरसा ने उलगुलान आंदोलन शुरू किया, जिसमें विदेशियों को भगाने के लिए हथियारों और गुरिल्ला युद्ध का इस्तेमाल किया गया. उन्होंने आदिवासियों को बिरसा राज का पालन करने और औपनिवेशिक कानूनों और लगान भुगतान का पालन न करने के लिए प्रोत्साहित किया.
हालांकि, अंग्रेजों ने इस आंदोलन को खत्म कर दिया.
3 मार्च, 1900 को मुंडा को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, जब वे चक्रधरपुर के जामकोपाई जंगल में अपनी आदिवासी गुरिल्ला सेना के साथ सो रहे थे. इसके बाद 9 जून, 1900 को 25 साल की छोटी उम्र में बीमारी के कारण रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई.
मुंडा ने अपने बहुत ही छोटे जीवनकाल में आदिवासी समुदाय को संगठित किया, जबरन धर्मांतरण के खिलाफ विद्रोह किया, एक निष्पक्ष, अधिक न्यायपूर्ण समाज की कल्पना की और इसके लिए लड़ते हुए मर गए.
आदिवासियों की स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए अपनी लड़ाई के अलावा बिरसा ने बिरसाइत नामक एक नए धर्म की भी स्थापना की. नए धर्म की स्थापना मिशनरियों द्वारा बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के जवाब में की गई थी.
आदिवासी वोटों को लुभाने की कोशिश
गौर करने वाली बात है कि झारखंड में इसी वर्ष विधान सभा चुनाव होने हैं, ऐसे में पीएम मोदी के भाषण को चुनावों के शंखनाद के तौर पर भी देखा जा रहा है.
झारखंड में अब से 2 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं. यहां आदिवासी मतदाता सबसे ज्यादा हैं और वो करीब 30 सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं. राज्य में विधानसभा की 81 सीटें हैं, जहां सरकार बनाने के लिए 41 सीटों की जरूरत होती है.
ऐसे में राजनीतिक पार्टियां आदिवासी मतदाताओं को लुभाने में जुट गई है.