तेलंगाना में एक पुराना विवाद फिर से सामने आया है.
यह विवाद आदिवासी (Adivasi) और लांबाड़ी/बंजारा (Lambadi/Banjara) समुदाय के बीच है.
दरअसल, कुछ साल पहले लांबाड़ी और बंजारा समुदाय को सरकार ने अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया था.
अब आदिवासी समुदाय का कहना है कि ये दोनों समुदाय आदिवासी नहीं हैं, इसलिए उन्हें ST का दर्जा नहीं मिलना चाहिए.
आदिवासी संगठनों का कहना है कि जब से लांबाड़ी और बंजारा समुदाय को ST का दर्जा मिला है, तब से आदिवासी बच्चों को शिक्षा में और लोगों को सरकारी योजनाओं में पीछे हटना पड़ा है.
उन्हें लगता है कि इन समुदायों ने सरकार की मदद पाने में ज्यादा फायदा उठाया है और असली आदिवासी लोग अब भी गरीब और पीछे हैं.
तेलंगाना के कई जिलों में आदिवासी संगठनों ने मीटिंग की और सरकार से मांग की कि लांबाड़ी और बंजारा समुदाय को ST की सूची से हटा दिया जाए.
उन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे पर लंबी लड़ाई लड़ेंगे.
दूसरी ओर, लांबाड़ी और बंजारा समुदाय का कहना है कि वे गरीब हैं, और उन्हें भी मदद की ज़रूरत है.
वे कहते हैं कि कुछ लोग उन्हें बेवजह टारगेट कर रहे हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि यह झगड़ा अब राजनीतिक बन गया है और कुछ नेता इस विवाद को बढ़ा रहे हैं.
लांबाड़ी समुदाय ने हैदराबाद और खम्मम जिले के कोठागुडेम में बैठकें कीं और कहा कि वे ST की सूची में बने रहना चाहते हैं.
उन्होंने सरकार से अपील की कि उनके अधिकारों की रक्षा की जाए.
इस विवाद पर अब देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने भी ध्यान दिया है.
कोर्ट ने केंद्र सरकार और तेलंगाना सरकार से पूछा है कि उन्होंने लांबाड़ी और बंजारा समुदाय को ST का दर्जा क्यों दिया.
कोर्ट का यह सवाल आने के बाद आदिवासी संगठन और ज़्यादा सक्रिय हो गए हैं.
उन्होंने भद्राचलम में एक बड़ी सभा की और दोबारा अपनी मांग दोहराई.
इस आंदोलन में अब नेता भी जुड़ गए हैं.
पूर्व सांसद सोयम बापू राव ने कहा कि जब तक लांबाड़ी और बंजारा समुदाय को ST की सूची से नहीं हटाया जाएगा, तब तक आंदोलन चलता रहेगा.
लांबाड़ी समुदाय का कहना है कि उन्हें ज़्यादा लाभ नहीं मिलता, और सरकार की बहुत सी नौकरियाँ तो अब भी खाली हैं.
उनका कहना है कि अगर उनकी संख्या ज्यादा है तो इसमें उनकी कोई गलती नहीं है. उन्होंने ये भी कहा कि ST के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों में उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है.
वहीं आदिवासी संगठन यह भी कह रहे हैं कि लांबाड़ी और बंजारा समुदाय को देश के बाकी राज्यों में ST का दर्जा नहीं मिला है. जैसे –
कर्नाटक में ये SC (अनुसूचित जाति) माने जाते हैं.
महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग).
मध्य प्रदेश में सामान्य वर्ग.
इसलिए, वे सवाल उठा रहे हैं कि सिर्फ तेलंगाना में ही उन्हें ST दर्जा क्यों दिया गया है.
यह विवाद अब सिर्फ एक सामाजिक मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि यह राजनीतिक और कानून का भी बड़ा विषय बन गया है.
अब सबकी नज़र सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर है.
लोगों की उम्मीद है कि सरकार और अदालत दोनों मिलकर ऐसा हल निकालें जिससे किसी भी समुदाय के साथ नाइंसाफी न हो और सभी को बराबरी से मौका मिले.