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क्या असम की इन 6 जनजातियों को मिलने वाला है ST का दर्जा?

चार साल की बातचीत, एक निर्णायक रिपोर्ट और बढ़ता दबाव... क्या असम के छह समुदायों को मिलेगा वह दर्जा जिसका इंतज़ार लंबे समय से किया जा रहा है?

असम की छह जनजातीयां काफ़ी लंबे समय से अनुसूचित जनजाति (Scheduled tribe) दर्जे की मांग कर रही हैं. अब सरकार ने इस दिशा में महत्तवपूर्ण कदम उठाया है.

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने हाल ही में घोषणा की है कि सरकार छह समुदायों को ST का दर्जा देने को लेकर तैयार एक विस्तृत रिपोर्ट को आगामी अक्टूबर-नवंबर के विधानसभा सत्र में पेश करेगी.

यदि विधानसभा इस रिपोर्ट को मंजूरी देती है तो उसे केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा ताकि आगे की प्रक्रिया शुरू की जा सके.

चार साल की चर्चा का नतीजा

मुख्यमंत्री के अनुसार, यह रिपोर्ट बीते चार वर्षों से विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों और मंत्रियों के साथ हुई बैठकों और विचार-विमर्श का नतीजा है.

उन्होंने कहा कि सरकार और समुदायों के बीच अब इस मुद्दे पर सहमति बन चुकी है इसलिए अगला कदम यह है कि विधानसभा में इस पर चर्चा कर निर्णय लिया जाए.

केंद्र की भी भूमिका

केंद्र सरकार भी ताई अहोम, मोरान, मातक, कोच राजबोंगशी, चुटिया और टी ट्राइब्स की मांग पर ध्यान दे रही है.

केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय ने हाल ही में कहा कि राज्य में एक पुनर्गठित समिति बनाई गई है जिसमें राज्य के कुछ मंत्री और अधिकारी शामिल होंगे.

यह समिति ST दर्जे को लेकर समुदायों के साथ चर्चा करेगी और यह तय करेगी कि उन्हें कितना आरक्षण मिल सकता है और OBC कोटे में क्या बदलाव किए जाएं ताकि वर्तमान एसटी वर्गों के अधिकारों को नुकसान न पहुँचे.

31 जुलाई को, ऑल ताई अहोम स्टूडेंट्स यूनियन (ATASU) के नेतृत्व में बड़ी संख्या में लोगों ने विशाल दिसपुर घेराव रैली निकाली थी और सरकार से जल्द से जल्द ST दर्जे की घोषणा करने की मांग की थी.

यह विरोध इस बात का संकेत है कि समुदायों में इस मुद्दे को लेकर बेचैनी और उम्मीद दोनों बनी हुई है.

यह मांग कोई नई नहीं है

यह पहली बार नहीं है जब इन समुदायों ने ST दर्जे की मांग की है.

साल 2016 में, केंद्र सरकार ने इस पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया था जिसे सिंगला कमेटी कहा गया.

इस समिति को रिपोर्ट देने के लिए पहले मई 2016 और फिर अक्टूबर 2016 तक की समयसीमा दी गई थी.

रिपोर्ट बनी भी, लेकिन रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (RGI) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की मंजूरी नहीं मिल पाई.

2018 और 2019 में, ताई अहोम समुदाय और अन्य संगठनों ने बार‑बार आंदोलन किए.

चुनावों से पहले राजनीतिक दलों ने वादा तो किया लेकिन केंद्र तक दोबारा कोई ठोस रिपोर्ट नहीं भेजी गई.

2025 की शुरुआत से ही ताई अहोम समुदाय ST दर्जे की माँग को लेकर लगातार सक्रिय है. दिसपुर में प्रदर्शन से लेकर चुनाव बहिष्कार की चेतावनी तक, हर मंच से उन्होंने सरकार पर दबाव बनाया है.

विरोध और खामियां

कई मौजूदा ST समुदायों जैसे बोडो और राभा ने इस प्रस्ताव का विरोध किया.

उनका कहना था कि इन छह समुदायों की जनसंख्या अधिक है और वे सामाजिक‑आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं. और इनको एसटी दर्जा देने से पुराने एसटी वर्गों को आरक्षण में नुकसान हो सकता है.

इसके अलावा, समाजशास्त्रीयों के अध्ययन, जनसंख्या के आंकड़े और पिछड़ापन साबित करने वाले तथ्यों की कमी के कारण भी यह रिपोर्ट आगे नहीं बढ़ पाई.  

अब जब राज्य सरकार विधानसभा में रिपोर्ट पेश करने जा रही है.

क्या इस बार इस मांग को मंज़ूरी मिलेगी या यह मुद्दा फिर से किसी तकनीकी या राजनीतिक कारण से लटक जाएगा.

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