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असम में बीजेपी चुनाव से पहले ST दर्जे की मांग को लेकर फंसी

असम के ट्राइबल ऑर्गनाइज़ेशन की कोऑर्डिनेशन कमेटी के तहत हज़ारों लोग सोमवार को इकट्ठा हुए और चेतावनी दी कि शेड्यूल्ड ट्राइब्स की लिस्ट में नए ग्रुप्स को जोड़ने से मौजूदा आदिवासी अधिकार खत्म हो जाएंगे.

असम में सत्ताधारी बीजेपी छह जातीय समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की पुरानी मांग पूरी करने के अपने चुनाव से पहले के वादे को लेकर मुश्किल में फंस गई है.

अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए अहोम, मारन, मटक, चुटिया, कोच राजबोंगशी और टी-ट्राइब जैसे छह जातीय समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन, जिन्हें BJP का वोट बैंक माना जाता है, एक बार फिर BJP के वादे को पूरा करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं.

दूसरी ओर मौजूदा 14 ST समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों की एक कोऑर्डिनेशन कमेटी भी सरकार के छह और जातीय समुदायों को ST का दर्जा देने के कदम का विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आई है।

सोमवार को दो अलग-अलग बड़े विरोध प्रदर्शन हुए…एक उत्तरी असम के उदलगुरी में संथाल समुदाय ने ST दर्जे की मांग को लेकर किया और दूसरा गुवाहाटी के बाहरी इलाके सोनापुर में ST समूहों ने इसी का विरोध करते हुए किया.

छह समुदायों का कहना है कि STs को नौकरियों, शिक्षा, स्कॉलरशिप और दूसरी खास योजनाओं में आरक्षण के ज़रिए फायदा मिलेगा.

इन समुदायों का कहना है कि उन्होंने BJP को वोट दिया था क्योंकि उसने हमारी लंबे समय से चली आ रही एसटी दर्जे की मांग पूरी करने का वादा किया था.

बीजेपी 2014 से लगातार चुनाव जीत रही है. लेकिन सरकार ने इस मांग को पूरा करने के लिए कुछ नहीं किया. ऐसे में इस बार ये सभी समुदाय चाहते हैं कि BJP चुनाव से पहले यह वादा पूरा करे क्योंकि सत्ता में आने के बाद वे इन्हें भूल जाते हैं.

पिछले एक महीने में इन छह समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों ने भी अलग-अलग विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं, जिससे बीजेपी और उसके सहयोगियों की चिंता बढ़ गई है.

26 आदिवासी संगठनों ने रैली की

उधर असम में आदिवासी संगठनों की कोऑर्डिनेशन कमेटी ने दावा किया है कि इन नए समुदायों को एसटी सूची में शामिल करने से आदिवासियों को मिलने वाले फायदे कम हो जाएंगे और उनका वेलफेयर रुक जाएगा.

असम ट्राइबल संघ के एक नेता ने कहा, “आदिवासी समुदाय सिर्फ़ नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की वजह से ही कुछ फील्ड्स में आगे बढ़ पाई हैं. असम के आदिवासी अभी भी पिछड़े हुए हैं और उन्हें ऐसे फायदों की ज़रूरत है. लेकिन अगर और समुदायों को शामिल किया जाता है तो आदिवासियों के फायदे कम हो जाएंगे और इससे उनकी तरक्की रुक जाएगी.”

वहीं राज्य के 26 आदिवासी संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले कोऑर्डिनेशन कमिटी ऑफ़ द ट्राइबल ऑर्गेनाइज़ेशन्स ऑफ़ असम (CCTOA) ने सोमवार को गुवाहाटी के पास एक बड़ी रैली निकालकर एसटी लिस्ट में किसी भी नई कम्युनिटी को शामिल करने का विरोध किया.

राज्य भर से मौजूदा 14 अनुसूचित जनजाति के हजारों सदस्य 1996 में बने CCTOA द्वारा आयोजित इस विरोध प्रदर्शन के लिए सोनापुर मिनी स्टेडियम में इकट्ठा हुए.

पारंपरिक कपड़े पहने और कम्युनिटी के झंडे लिए कई लोगों ने सरकार पर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले “राजनीतिक मकसद” से यह कदम उठाने का आरोप लगाया.

CCTOA के चीफ कोऑर्डिनेटर और असम ट्राइबल संघ के जनरल सेक्रेटरी आदित्य खकलारी (Aditya Khaklari) ने कहा कि सरकार को आज़ादी के 78 साल बाद ST लिस्ट में और समुदायों को शामिल करना बंद कर देना चाहिए.

उन्होंने कहा कि अगर नए समुदायों को शामिल किया जाता है तो मौजूदा 14 STs को नुकसान होगा. पुराने और नए STs के बीच कोई फर्क नहीं रहेगा.

खकलारी ने विरोध को सही ठहराने के लिए पिछले उदाहरण दिए. उन्होंने कहा, “जब 1996 में केंद्र सरकार ने एक ऑर्डिनेंस के ज़रिए कोच-राजबोंगशी लोगों को छह महीने के लिए ST का दर्जा दिया था तो ज़्यादातर रिज़र्व नौकरियां और सीटें उन्हीं को मिल गईं.”

खकलारी ने चेतावनी देते हुए कहा कि सोचिए अगर इन सभी छह ग्रुप्स को शामिल कर लिया गया तो क्या होगा. हम अपने अधिकार खो देंगे.

उन्होंने कहा कि यह आंदोलन मौजूदा आदिवासी समूहों के “भविष्य और पहचान” की रक्षा के लिए है.

परिसीमन के बाद असम में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों की संख्या 16 से बढ़कर 19 हो गई है. मौजूदा 14 अनुसूचित जनजाति समूहों में बोडो, दिमासा, कार्बी, राभा, मिसिंग, तिवा, सोनोवाल कछारी और थेंगल कछारी समुदाय शामिल हैं.

इस मुद्दे पर राजनीति

इस मुद्दे पर बढ़ते विरोध प्रदर्शनों ने सत्ताधारी बीजेपी को परेशान कर दिया है क्योंकि चाय बागान के मज़दूरों समेत जातीय समुदाय इस पार्टी के वोट बैंक रहे हैं.

पिछले चुनावों की तरह बीजेपी एक बार फिर अपने वोट बैंक को बचाने के लिए बंगाली बोलने वाले मुसलमानों को जातीय समुदायों के लिए ख़तरा बताने की कोशिश कर रही है.

हिमंत बिस्वा सरमा सरकार भी चुनावों के लिए कैंपेन मोड में आते ही इन समुदायों के लिए मेडिकल कॉलेजों में सीटों जैसे खास फायदों की घोषणा कर रही है.

लेकिन एक BJP नेता ने मीडिया को बताया कि यह मामला अब “दोधारी तलवार” जैसा हो गया है और पार्टी को किसी भी फैसले पर उल्टा असर पड़ने का डर है.

उन्होंने कहा, “एसटी दर्जे की मांगें अभी तक पूरी नहीं हुई हैं क्योंकि छह समुदाय अनुसूचित जनजाति सूचि में शामिल होने के ज़्यादातर क्राइटेरिया पूरे नहीं करते हैं. इसलिए हमारी सरकार केंद्र को सौंपने के लिए एक नया प्रस्ताव तैयार कर रही है.”

जैसे-जैसे इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं, विपक्षी कांग्रेस ने भी इस पर बोलना शुरू कर दिया है.  

जातीय समुदाय असम विधानसभा की 126 सीटों में से 80 से ज़्यादा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

(Image credit : PTI)

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