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असम: कोच-राजबोंगशी और मोरन समुदाय के लोग ST दर्जे की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे

असम में दो समुदायों के करीब 20 हजार से ज्यादा लोग अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग को लेकर विरोध-प्रदर्शन में शामिल हुए और कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले पूरी हो हमारी मांगे.

इन दिनों असम में अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग तेज़ हो गई है. कोच-राजबोंगशी और मोरन समुदाय के लोग एसटी दर्जे की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं.

राज्य के गोलकगंज क्षेत्र में कोच-राजबोंगशी समुदाय (Koch-Rajbongshi community) के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया, जब पुलिस ने छात्र प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया, जिसमें महिलाओं सहित कई लोग घायल हो गए.

ऑल कोच-राजबंशी स्टूडेंट्स यूनियन (AKRSU) के नेतृत्व में इस आंदोलन का आयोजन किया गया था, जिसने बुधवार रात चिलाराई कॉलेज से गोलकगंज बाज़ार तक मशाल जुलूस निकाला था.

पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने जुलूस को रोकने की कोशिश की, जिससे झड़पें हुईं.

इस कार्रवाई के बाद गुरुवार को धुबरी ज़िले में 12 घंटे का बंद रहा, जिससे सामान्य जनजीवन ठप्प हो गया.

इस घटना की विपक्षी नेताओं ने तीखी आलोचना की. कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने छात्रों पर “क्रूर हमले” की निंदा की और असम सरकार पर मूलनिवासी समुदायों के प्रति उदासीनता का आरोप लगाया.

गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के भाजपा के वादों का सम्मान करने का भी आह्वान किया और मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से गृह विभाग की ज़िम्मेदारियां वापस लेने की मांग की.

वहीं भारी विरोध का सामना कर रहे मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पुलिस कार्रवाई को “बेहद दुखद” बताया और जांच के आदेश दिए.

उन्होंने गोलकगंज के प्रभारी अधिकारी के निलंबन की पुष्टि की और “अत्यधिक बल प्रयोग” के दोषी पाए जाने वाले किसी भी कर्मचारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया.

मंत्री जयंत मल्लाबरुआ को घायल छात्रों से मिलने और सामुदायिक नेताओं से बातचीत करने के लिए धुबरी भेजा गया.

तिनसुकिया में भी विरोध प्रदर्शन

इससे पहले तिनसुकिया में बुधवार (10 सितंबर, 2025) को बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ. क्योंकि मोरन समुदाय (Moran community) ने अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की अपनी मांग दोहराई.

ऑल मोरन छात्र संघ (AMSU) द्वारा आयोजित इस प्रदर्शन में 20 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया.

बोरगुरी के आईटीआई मैदान से शुरू होकर, रैली शांतिपूर्ण तरीके से आगे बढ़ी, जिसमें प्रदर्शनकारी अपनी मांगों पर ज़ोर देने के लिए तख्तियां लिए हुए थे और नारे लगा रहे थे.

मोरन छात्र संघ के अध्यक्ष पलिंद्र बोरा और महासचिव जॉयकांत मोरन ने रैली को संबोधित करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि असम के सबसे पुराने मूल निवासी समुदायों में से एक मोरन समुदाय अपने अधिकारों की मान्यता और सुरक्षा चाहता है.

उन्होंने भूमि अधिकारों, पहचान और सांस्कृतिक संरक्षण पर चिंता व्यक्त की और इस बात पर ज़ोर दिया कि संवैधानिक सुरक्षा उपाय उनके अस्तित्व और सम्मान के लिए जरूरी हैं.

रैली को संबोधित करते हुए पोलिंद्र बोरा ने उपस्थित लोगों को “अधूरे” वादों की याद दिलाई और केंद्र व राज्य सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की.

उन्होंने प्रेस को बताया, “प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं आश्वासन दिया था कि भाजपा की सरकार बनने के 100 दिनों के भीतर मोरन और पांच अन्य समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाएगा. दस साल बीत गए फिर भी कुछ नहीं बदला. इस सरकार ने हमें धोखा दिया है. अगर 2026 के चुनावों से पहले अनुसूचित जनजाति का दर्जा और छठी अनुसूची में स्वायत्तता की हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो हम अपना आंदोलन और तेज़ करेंगे.”

इसके साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार अगले 72 घंटों के भीतर उनकी मांगों पर कोई ठोस फैसला नहीं लेती तो 15 सितंबर से बड़े पैमाने पर आर्थिक नाकेबंदी शुरू हो जाएगी.

वहीं जॉयकांच मोरन ने कहा, “कांग्रेस सरकारों ने हमें धोखा दिया, असम गण परिषद की सरकारों ने हमें धोखा दिया और अब भाजपा भी यही कर रही है. हमें हमेशा राजनीतिक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया गया है. अब बहुत हो गया.”

एएमएसयू ने प्रधानमंत्री से यह भी आग्रह किया कि वे अपने आगामी असम दौरे में यह स्पष्ट करें कि मोरान समुदाय से किया गया वादा कब पूरा होगा.

रैली के बाद तिनसुकिया पुलिस स्टेशन चरियाली में एक विरोध सभा भी आयोजित की गई, जहां छात्र नेताओं ने मोरान समुदाय से अपनी लड़ाई में एकजुट रहने का आह्वान किया.

असम में अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने की मांग कोई नई बात नहीं है. कोच-राजबोंगशी और मोरन के साथ-साथ चार अन्य समुदाय – ताई-अहोम, चुटिया, मटक और चाय जनजातियां लंबे समय से अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं.

भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 2016 की शुरुआत में ही असम के छह मूलनिवासी समुदायों, जिनमें मोरन और कोच राजबोंगशी भी शामिल हैं…उनको संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने का वादा किया था. हालांकि, आज तक कोई पहल नहीं हुई है.

ऐसे में 2026 के असम विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही दोनों समुदायों ने जल्द ही ठोस कार्रवाई न होने पर अपने आंदोलन को तेज़ करने की बात कही है.

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