असम में पिछले कई महीनों से छह प्रमुख समुदाय – ताई अहोम, मोरन, मटक, कोच-राजबोंगशी, चुटिया और चाय जनजातियां अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं.
इसी कड़ी में सोमवार को ताई अहोम समुदाय (Tai Ahom community) के हजारों लोग आदिवासी दर्जे की मांग को लेकर गोलाघाट की सड़कों पर उतर आए.
ऑल ताई अहोम स्टूडेंट्स यूनियन (ATASU) ने इस रैली का नेतृत्व किया, जिसमें हजारों लोग अपनी मांग को लेकर जमा हुए.
यह विशाल रैली समन्यक्षेत्र से गोलाघाट शहर तक निकाली गई. इसके बाद जिला आयुक्त कार्यालय के पास ST दर्जे की मांग को लेकर एक विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित किया गया.
मीडिया से बात करते हुए, ATASU केंद्रीय समिति के अध्यक्ष ने कहा, “हमारा बयान साफ है. सरकार को हमसे किए गए वादे पूरे करने चाहिए. यह विरोध चुनाव केंद्रित नहीं है बल्कि असम और असम के लोगों के लिए है.”
10 नवंबर को बड़ी आदिवासी रैली
उधर कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ ट्राइबल ऑर्गनाइजेशन्स, असम (CCTOA) ने छह ‘एडवांस्ड और अलग-अलग’ समुदायों को ST सूची में शामिल करने के कदम के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए 10 नवंबर को गुवाहाटी के खानापारा वेटरनरी फील्ड में एक बड़ी आदिवासी रैली बुलाई है.
CCTOA ने एक आम अपील में कहा कि छह गैर-आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST) सूची में शामिल करने का सरकार का प्रस्ताव असली आदिवासी लोगों के संवैधानिक अधिकारों, पहचान और भविष्य के लिए एक गंभीर ख़तरा है.
इसमें कहा गया है, “हमारे पैतृक अधिकारों की रक्षा करने और असम की सच्ची मूल निवासी जनजातियों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए अब हमारी एकता और आवाज की पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरत है.”
आदिवासी लोगों की इस अपील का समर्थन करते हुए कोलकाता के रिटायर्ड IAS अधिकारी कलेंद्र मशाहाड़ी ने कहा कि असली आदिवासी समुदायों को एक साथ खड़ा होना चाहिए क्योंकि यह मुद्दा गंभीर हो गया है.
उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्र दोनों में BJP के नेतृत्व वाली NDA सरकारें ताई-अहोम, मोरन, मटक, कोच-राजबंशी और टी-ट्राइब जैसे छह समुदायों से संबंधित मतदाताओं को लुभाने के लिए बेताब हैं, जो मौजूदा 14 अनुसूचित जनजातियों के 12.4 फीसदी के मुकाबले कुल राज्य की आबादी 3,12,05,578 का 25.3 फीसदी हैं.
उन्होंने कहा कि अभी तक जो छह समुदाय अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में आते हैं, उन्हें 27% आरक्षण मिलता है और मौजूदा ST (मैदानी) को केवल 10% और ST (पहाड़ी) को केवल 5% आरक्षण मिलता है.
उन्होंने आगे कहा, “मार्च-अप्रैल 2026 में होने वाले अगले राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान टारगेटेड वोटर्स को लुभाने के लिए सत्ताधारी पार्टी के सोचे-समझे प्लान को नाकाम करने के लिए एकजुट होकर एक ज़ोरदार और बुलंद आंदोलन शुरू करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है.”
बासुमतारी ने कहा कि ज़मीन के अधिकार सिर्फ़ ST समुदायों के लिए हैं क्योंकि ज़मीन ही उनके लिए रोज़ी-रोटी और तरक्की का एकमात्र ज़रिया है और यहां तक कि शेड्यूल कास्ट (SC) को भी यह सुविधा नहीं मिली है.
ताई अहोम, मोरन, मटक, कोच-राजबोंगशी, चुटिया और चाय जनजातियां ऊपरी असम के मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा हैं.
भाजपा ने 2016 में उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का वादा किया था फिर 2021 में भी. नौ साल बीत चुके हैं लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ. इस मुद्दे का अध्ययन करने के लिए मंत्रियों का एक समूह बनाया गया था लेकिन उनकी अंतिम रिपोर्ट अभी तक प्रकाश में नहीं आई है.

