छत्तीसगढ़ के गड़ियाबंध जिले में स्थित उदंती‑सितनादी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में एक नई पहल शुरू की गई है.
इस पहल का उद्देश्य आदिवासी समुदायों, विशेष रूप से PVTG यानी Particularly Vulnerable Tribal Groups को आत्मनिर्भर बनाना है.
वर्ल्ड बाँबू डे के मौके पर यहाँ बाँस से बने उत्पादों के लिए प्रशिक्षण और उत्पादन की प्रक्रिया शुरू की गई है.
इसमें गाँवों के युवाओं और महिलाओं को बाँस से हस्तशिल्प बनाने की कला सिखाई जा रही है.
कार्यक्रम के अंतर्गत आदिवासियों को टोकरी, आभूषण, सजावटी वस्तुएँ और घरेलू उपयोग की चीजें तैयार करना सिखाया जा रहा है.
यह प्रशिक्षण न केवल उनकी पारंपरिक कला को जीवित रखने का प्रयास है, बल्कि उन्हें रोज़गार और कमाई का भी अवसर देगा.
बाँस के उत्पादों की बाज़ार में मांग है और इस नई योजना से इन कारीगरों को स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक बाज़ार में जोड़ा जाएगा.
इस योजना का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि बाँस की खेती भी कराई जा रही है.
इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा और स्थानीय संसाधनों का सही उपयोग भी होगा.
प्रशिक्षण के साथ‑साथ लोगों को यह भी सिखाया जा रहा है कि कैसे बाँस को टिकाऊ तरीके से उगाया और उपयोग में लाया जाए.
इससे भविष्य में इन्हें बाहर से बाँस खरीदने की ज़रूरत नहीं होगी.
इस पहल में स्थानीय महिलाएँ भी बड़ी संख्या में शामिल हो रही हैं. उन्हें घर के कामों के साथ‑साथ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का मौका मिल रहा है.
वे अब पारंपरिक कला को अपनाकर अपने परिवार की आमदनी बढ़ा रही हैं. इससे महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा मिल रहा है.
यह कार्यक्रम न केवल आदिवासी समाज की आर्थिक स्थिति को सुधारने की दिशा में एक कदम है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान और कला को भी संरक्षित करता है.
जब पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक बाज़ार से जोड़ा जाता है, तो यह बदलाव की शुरुआत बनता है. बाँस की यह पहल आने वाले समय में आदिवासी समुदायों के जीवन को बेहतर बनाएगी.