महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) में शुक्रवार को बंजारा समुदाय ने “रास्ता रोको”आंदोलन किया.
यह विरोध सकल बंजारा समाज की ओर से आयोजित किया गया.
बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष सड़क पर उतर आए. जालना रोड पर कैम्ब्रिज स्कूल के पास करीब एक घंटे तक आवागमन पूरी तरह ठप रहा.
समुदाय के लोगों ने नारे लगाए और मांग रखी कि उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) की श्रेणी में शामिल किया जाए.
उनका कहना था कि जैसे सरकार ने हाल ही में हैदराबाद गज़ट का हवाला देकर मराठा समाज को कुणबी प्रमाणपत्र देने का रास्ता खोला है, वैसे ही बंजारा समाज के ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को भी मान्यता दी जाए.
प्रदर्शनकारियों ने ज़िला प्रशासन को एक ज्ञापन भी सौंपा.
इसमें कहा गया कि ज़िला गज़ट और प्रशासनिक दस्तावेज़ों में बंजारा समाज को आदिवासी माना गया है. लेकिन आज तक उन्हें एसटी का दर्जा नहीं दिया गया.
ज्ञापन में लिखा गया, “एक समुदाय को ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का लाभ देना और दूसरे को न देना संविधान के खिलाफ है. सभी नागरिकों को समानता और अधिकारों की रक्षा मिलनी चाहिए.”
समुदाय ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने तुरंत फैसला नहीं लिया तो 17 सितंबर से आंदोलन तेज़ किया जाएगा और अदालत का रुख भी किया जाएगा.
मराठा समाज को ओबीसी आरक्षण दिलाने के लिए सरकार ने हैदराबाद गज़ट को आधार माना. इससे ओबीसी समाज में नाराज़गी है.
वरिष्ठ नेता छगन भुजबळ का कहना है कि अगर मराठा समाज ओबीसी कोटे में आया तो मौजूदा ओबीसी समुदायों का हिस्सा कम हो जाएगा.
इसी बहस के बीच अब बंजारा समाज ने भी एसटी आरक्षण की मांग उठाई है.
पूर्व मंत्री और एनसीपी विधायक धनंजय मुंडे ने भी इस मांग का समर्थन किया है.
उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि हैदराबाद गज़ट (1920) में लांबडा/बंजारा समुदाय को एसटी बताया गया है.
उस समय मराठवाड़ा इलाका निज़ामशाही हैदराबाद राज्य का हिस्सा था.
1956 में महाराष्ट्र में शामिल होने के बाद बंजारा समाज को ओबीसी या एनटीसी वर्ग में डाल दिया गया.
जबकि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में वही समुदाय एसटी के रूप में मान्यता प्राप्त है.
इस समय महाराष्ट्र में बंजारा समाज को विमुक्त जाति वर्ग में रखा गया है. इससे उन्हें 3% आरक्षण मिलता है.
अगर उन्हें एसटी में शामिल किया गया तो उनका कोटा 7% हो जाएगा.
अनुमान है कि राज्य में बंजारा समाज की आबादी लगभग 1% है.
इसी तरह, धनगर (चरवाहा) समुदाय भी लंबे समय से एसटी दर्जे की मांग कर रहा है. अभी वे घुमंतू जाति (Nomadic Tribe) वर्ग में आते हैं और इन्हें 3.5% आरक्षण मिलता है. अगर उन्हें एसटी दर्जा मिला तो कोटा 7 प्रतिशत हो जाएगा.
हाल ही में लातूर में एक ओबीसी कार्यकर्ता ने आरक्षण विवाद के चलते आत्महत्या कर ली थी.
इसके बाद छगन भुजबळ ने उनके परिवार से मुलाकात की और कहा कि “यह बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा.”
कांग्रेस के नेता विजय वडेट्टीवार ने भी ओबीसी समाज से एकजुट होकर अपने अधिकारों की रक्षा करने की अपील की है.
राज्य भर में विरोध और आंदोलन की संभावना जताई जा रही है. मराठा, ओबीसी, बंजारा और धनगर, सभी समुदायों की मांगें सरकार पर भारी दबाव डाल रही हैं.