हैदराबाद में हुई पहली राष्ट्रीय जनजातीय कायाकिंग और कैनोइंग चैंपियनशिप में छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के युवाओं ने शानदार प्रदर्शन करते हुए कुल 10 पदक जीत लिए.
यह प्रतियोगिता 28 से 31 अक्टूबर तक चली, जिसमें देशभर के आदिवासी समुदायों के खिलाड़ी शामिल हुए.
इस जीत से पूरे बस्तर और छत्तीसगढ़ में खुशी की लहर दौड़ गई.
यह पहली बार था जब इतने बड़े स्तर पर खास तौर पर जनजातीय युवाओं के लिए कायाकिंग और कैनोइंग की राष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित की गई.
बस्तर जैसे दूरदराज़ इलाकों से आए खिलाड़ी इस खेल में अपनी मेहनत और लगन से सबका ध्यान खींचने में कामयाब रहे.
इस प्रतियोगिता में बस्तर की मनमति बघेल का प्रदर्शन सबसे बेहतरीन रहा. उन्होंने C2 वुमन 500 मीटर और C1 वुमन 500 मीटर सीनियर श्रेणी में दो ब्रॉन्ज मेडल जीते.
इसके अलावा उन्होंने C4 मिक्स 500 मीटर सीनियर और C2 मिक्स 500 मीटर सीनियर रेस में भी ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया.
उनकी इस उपलब्धि ने बस्तर की बेटियों के लिए एक नई मिसाल कायम की है.
पुरुष खिलाड़ियों में सतीश कुमार ध्रुव ने C1 500 मीटर सीनियर वर्ग में सिल्वर मेडल जीता.
वहीं, सतदेव बघेल ने K1 500 मीटर सीनियर रेस में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया.
इन दोनों खिलाड़ियों की मेहनत और समर्पण ने बस्तर का नाम रोशन कर दिया.
जूनियर श्रेणी में भी बस्तर के खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया.
सागर, सुमित और अनुज की टीम ने C4 500 मीटर जूनियर रेस में ब्रॉन्ज मेडल जीता.
वहीं, सब-जूनियर वर्ग में इशा मल्टी ने K2 500 मीटर रेस में ब्रॉन्ज पदक अपने नाम किया.
छत्तीसगढ़ कायाकिंग और कैनोइंग संघ के संयुक्त सचिव प्रशांत सिंह रघुवंशी ने बताया कि यह उपलब्धि राज्य के लिए बहुत गर्व की बात है.
उन्होंने कहा कि बस्तर जैसे आदिवासी इलाके में कुछ साल पहले तक इस खेल के बारे में बहुत कम लोग जानते थे.
लेकिन आज वही युवा खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह बस्तर की मेहनती और प्रतिभाशाली पीढ़ी की कहानी है.
इस सफलता के पीछे मुख्य कोच अशोक साहू (जगदलपुर) और पिंकी साहू (रायपुर) की बड़ी भूमिका रही.
इन दोनों प्रशिक्षकों ने सीमित संसाधनों में खिलाड़ियों को नियमित प्रशिक्षण दिया. अशोक साहू ने बताया कि बस्तर के युवाओं में खेल के प्रति गजब का उत्साह है.
बस उन्हें सही दिशा और सुविधाओं की जरूरत है.
प्रशांत सिंह रघुवंशी ने कहा कि आने वाले समय में राज्य सरकार और खेल विभाग को इन खिलाड़ियों के लिए बेहतर साधन, बोटिंग उपकरण और प्रशिक्षण केंद्र की व्यवस्था करनी चाहिए.
उन्होंने बताया कि यदि बस्तर में खेल सुविधाएं बढ़ें, तो आने वाले वर्षों में ये खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पदक जीत सकते हैं.
बस्तर से मिली यह सफलता पूरे छत्तीसगढ़ के लिए गर्व का विषय है.
राज्य के स्थापना दिवस के सिल्वर जुबली समारोह से ठीक पहले यह खबर आई है, जिससे उत्सव का माहौल और भी खास बन गया है.
इस जीत से यह भी साबित हुआ है कि गांवों और जंगलों में छिपी प्रतिभा को अगर मौका मिले, तो वे देश और दुनिया में नाम कमा सकते हैं.
मनमति बघेल ने अपनी सफलता पर कहा कि “हम सबने बहुत मेहनत की.
शुरुआत में साधन नहीं थे, लेकिन हमारे कोच और साथियों ने हमें कभी हिम्मत नहीं हारने दी. अब हमें आगे एशियन और इंटरनेशनल स्तर पर खेलने का सपना है.”
बस्तर के लोगों का कहना है कि यह जीत सिर्फ पदकों की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और पहचान की जीत है.
इसने दिखाया है कि खेल के ज़रिए आदिवासी युवा भी नई ऊँचाइयाँ छू सकते हैं.

 
                                    