अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में क्रीमीलेयर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में देश भर के विभिन्न संगठनों ने आज ‘भारत बंद’ बुलाया है. दलित और आदिवासी संगठनों ने हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए मजबूत प्रतिनिधित्व और सुरक्षा की मांग को लेकर भारत बंद का आह्वान किया है.
‘नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन्स’ ने बंद की अपील के साथ मांगों की जो सूची जारी की है उसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए न्याय और समानता की मांग की है.
इस बंद का असर कई राज्यों में देखने को मिल रहा है. बिहार और झारखंड में कई सेवाएं प्रभावित हुई हैं. झारखंड में बस सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं. न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक बस अड्डों से बसें बाहर नहीं निकल पाई हैं.
दलित और आदिवासी संगठनों के अलावा अलग-अलग राज्यों में कई राजनीतिक दलों ने भी बंद का समर्थन किया है.
उधर बंद को देखते हुए राजस्थान के कई ज़िलों में प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है. प्रदेश के कई ज़िलों में शिक्षण संस्थानों को बंद करने का आदेश जारी किया गया है.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है और प्रशासन को बंद के दौरान किसी प्रकार की हिंसा न होने की हिदायत दी गई है.
मध्य प्रदेश में प्रशासन ने भारत बंद के दौरान विशेष एहतियात बरतने के निर्देश दिए हैं.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के भीतर उप-वर्गीकरण बना सकते हैं.
यानि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में उप-वर्गीकरण या सब-क्लासिफिकेशन किया जा सकता है.
इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को इन श्रेणियों के भीतर क्रीमी लेयर बनाने की भी अनुमति दी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इन समूहों में सबसे अधिक जरूरतमंद लोगों को प्राथमिकता मिले. हालांकि बाद में केंद्र ने इसे खारिज कर दिया.
आलोचकों का कहना है कि ये आरक्षण के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जाता है और इससे दलित और आदिवासी में राजनीतिक फूट पैदा होगी.
भारत बंद में क्या है मांगें?
दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (NACDAOR) ने मांगों की एक सूची पेश की है, जिसमें अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए न्याय और समानता शामिल है.
संगठन ने दलितों, आदिवासियों और ओबीसी से बुधवार को शांतिपूर्ण आंदोलन में भाग लेने की अपील की है, जिसमें न्याय और समानता की उनकी मांगों को प्राप्त करने में उनकी सामूहिक कार्रवाई के महत्व पर जोर दिया गया है.
एनएसीडीएओआर ने कहा कि हालिया फैसला भारत के आरक्षण ढांचे की आधारशिला, ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों की पीठ के पहले के फैसले को कमजोर करता है.
संगठन ने सरकार से इस फैसले को खारिज करने का आह्वान किया है, जिसमें कहा गया है कि यह एससी और एसटी के संवैधानिक अधिकारों को खतरे में डालता है.
इसके अतिरिक्त, एनएसीडीएओआर एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण पर संसद के एक नए अधिनियम के अधिनियमन की वकालत कर रहा है, जिसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करके सुरक्षित किया जाना चाहिए.
उनका तर्क है कि यह उपाय इन प्रावधानों को न्यायिक हस्तक्षेप से बचाएगा और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देगा.
संगठन ने सटीक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सरकारी सेवाओं में एससी/एसटी/ओबीसी कर्मचारियों पर जाति-आधारित डेटा को तत्काल जारी करने की भी मांग की है.
और समाज के सभी वर्गों से न्यायिक अधिकारियों और न्यायाधीशों की भर्ती के लिए एक भारतीय न्यायिक सेवा की स्थापना पर जोर दे रहा है, जिसका लक्ष्य उच्च न्यायपालिका में एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों से 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करना है.
JMM, कांग्रेस, वामदल, राजद ने भारत बंद को समर्थन दिया
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने मंगलवार को विभिन्न संगठनों द्वारा बुधवार को किए गए भारत बंद के आह्वान को समर्थन देने की घोषणा की. वामपंथी दलों ने भी बंद के आह्वान का समर्थन किया है.
वहीं झामुमो ने अपने सभी नेताओं, जिला अध्यक्षों, सचिवों और जिला समन्वयकों को 14 घंटे की राष्ट्रव्यापी हड़ताल में सक्रिय रूप से भाग लेने और अपना समर्थन दिखाने का निर्देश दिया है.
झामुमो महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने कहा, “अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में दिया गया फैसला एससी/एसटी वर्गों के उत्थान और सुदृढ़ीकरण की राह में बाधा साबित होगा.”