HomeAdivasi Dailyमधुमक्खियों के हमले से भुयान आदिवासी की दर्दनाक मौत

मधुमक्खियों के हमले से भुयान आदिवासी की दर्दनाक मौत

सरकार को चाहिए कि वह ऐसे लोगों की सुरक्षा के लिए जंगल में काम करने के नियम बनाए, और अगर कोई घटना हो जाए तो तुरंत इलाज और मदद मिल सके.

ओडिशा के क्योंझर जिले के तालाबैतरणी गाँव से एक दुखद घटना सामने आई है, जिसमें भुइया जनजाति का एक शख़्स मधुमक्खियों के झुंड के हमले के बाद अपनी जान गंवा बैठा.

मृतक व्यक्ति का नाम हेरू साँता था, और वह लगभग 55 वर्ष का था.

यह घटना मंगलवार को हुई, जब वह और कुछ अन्य लोग जंगल में शहद इकट्ठा करने गए थे.

अचानक मधुमक्खियों ने उन पर हमला कर दिया.

जब हमला हुआ, उस समय हेरू और उनके साथ मौजूद लोग शहद लेने में व्यस्त थे. अचानक मधुमक्खियों ने उन पर हमला कर दिया.

हेरू को बहुत गंभीर चोटें आईं. उन्हें तुरंत बचकुलरिगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, लेकिन उनकी हालत और बिगड़ने लगी.

फिर उन्हें घाटकाओन ब्लॉक से क्योंझर जिला अस्पताल लाया गया. वहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

इस घटना में एक अन्य व्यक्ति भी घायल हुआ है, और वह अभी अस्पताल में इलाजरत है.

हेरू साँता, जो मूलत रुप से कैपुर गाँव के रहने वाले थे, तालाबैतरणी गाँव में बसे थे और मवेशी चराने का काम करते थे.

उनकी जीविका इसी तरह की साधारण गतिविधियों से चलती थी.

उनका परिवार आर्थिक रूप से बहुत कमजोर था. हेरू की पत्नी का नाम द्रौपदी साँता है, और उनके पाँच बच्चे हैं.

यह बात विशेष है कि हेरू साँता मशहूर आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता दैतारी नाइक के दामाद थे. दैतारी नाइक को पद्म श्री पुरस्कार भी मिल चुका है.

नाइक ने अकेले तीन किलोमीटर लंबी नहर खुद खोदने जैसा साहसिक कार्य किया था, जिसके कारण उन्हें यह नागरिक सम्मान मिला.

गाँव वालों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि हेरू का परिवार पहले से ही बहुत संघर्ष कर रहा था. इस आकस्मिक घटना ने उन्हें और कठिन स्थिति में ला दिया है.

एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व जिला परिषद सदस्य श्रीकांत जुंगा ने कहा कि प्रशासन को अभी परिवार को आर्थिक मदद पहुंचानी चाहिए क्योंकि उनका गुज़ारा अब और मुश्किल हो गया है.

इस तरह की घटनाएँ आदिवासी समुदाय के लिए सच्ची चुनौती बन जाती हैं.

जंगलों पर उनकी निर्भरता बहुत अधिक होती है — शहद, जड़ी-बूटियाँ, खेती, पशुपालन आदि के माध्यम से उनका जीवन चलता है.

जब किसी प्राकृतिक कारण या जानवर-कीट हमले की वजह से ऐसी दुर्दशा होती है, तो इन लोगों के लिए इलाज और आर्थिक सुरक्षा बहुत कठिन हो जाती है.

आज भी कई आदिवासी समुदाय जंगल पर ही निर्भर हैं. वे वहाँ से शहद, लकड़ी, फल और दवाई जैसी चीजें लाते हैं.

लेकिन उनके पास कोई सुरक्षा नहीं होती.

जब कोई जानवर या कीड़े-मकौड़े उन पर हमला करते हैं, तो उन्हें अस्पताल तक पहुँचने में बहुत दिक्कत होती है.

अस्पताल दूर होते हैं और रास्ते भी ठीक नहीं होते.

सरकार को चाहिए कि वह ऐसे लोगों की सुरक्षा के लिए जंगल में काम करने के नियम बनाए, और अगर कोई घटना हो जाए तो तुरंत इलाज और मदद मिल सके.

हेरू की मौत ने पूरे गाँव को शोक में डाल दिया है.

उनका परिवार अब बहुत परेशान है. लोग चाहते हैं कि सरकार उनकी आर्थिक मदद करे, बच्चों की पढ़ाई और घर के खर्चों की जिम्मेदारी ले.

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