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आदिवासी के स्कूलों में उनकी ही भाषा को क्यों महत्व नहीं दिया गया – बृंदा करात

आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम को लिखे पत्र में बृंदा करात ने ज़ोर दे कर कहा है कि एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूलों में आदिवासी भाषा, संस्कृति और क्षेत्र को समझने वालों नियुक्ति में प्राथमिकता मिलनी चाहिए.

देश में आदिवासी छात्रों के लिए चलाए जा रहे एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूल (EMRS) में शिक्षकों, कर्मचारियों और प्रिसंसिपल के पदों पर भर्ती प्रक्रिया को बदलने की मांग की गई है. इस सिलसिले में सीपीआई(एम) की नेता बृंदा करात ने आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम को एक पत्र लिखा है. 

बृंदा करात ने इस पत्र में एकलव्य मॉडल रेसिडेंसियल स्कूलों में कर्मचारियों, शिक्षकों और प्रिंसिपल के पद पर होने वाली भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि इन स्कूलों में पढ़ाने वाले या काम करने वाले अन्य कर्मचारियों के लिए यह ज़रूरी है कि वे आदिवासी संस्कृति, भाषा और ज़रूरतों को समझते हों. अगर इन स्कूलों में कर्मचारियों या शिक्षकों की भर्ती में इन बातों का ध्यान नहीं रखा जाता है तो फिर इन स्कूलों का उद्देश्य पूरा नहीं होता है. 

बृंदा करात ने आदिवासी मामलों को लिखे पत्र में कहा है कि एकलव्य स्कूलों में शिक्षकों, कर्मचारियों और प्रिंसिपल की भर्ती प्रक्रिया में कमी है. उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार के फ़ैसले के बाद नेशनल एजुकेशन सोसायटी फॉर ट्राइबल स्टुडेन्ट्स (NEST) ने शिक्षकों और अन्य स्टाफ़ की नई भर्ती प्रक्रिया लागू की है.

इस भर्ती प्रक्रिया के अनुसार एकलव्य स्कूलों में नौकरी पाने के इच्छुक उम्मीदवारों को अंग्रेज़ी और हिंदी का ज्ञान अनिवार्य है. इस शर्त के बारे में बृंदा करात कहती है कि यह हैरान करने वाला फैसला है. क्योंकि आदिवासी छात्राों के लिए बनाए स्कूलों में आदिवासी भाषाओं का नहीं बल्कि हिंदी और अंग्रेज़ी का ज्ञान अनिवार्य है.

साल 2023 के बजट भाषण में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने यह घोषणा की थी कि अगले पांच साल में एकलव्य स्कूलों में कम से कम 38000 शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी. इस सिलसिले में नेस्ट (National Education Society for Tribal Students) ने केंद्रीय भर्ती प्रक्रिया तय की है. 

इस भर्ती प्रक्रिया के अनुसार एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूलों में नियुक्ति के लिए एक केन्द्रीय स्तर की परीक्षा होगी जिसमें आदिवासी भाषाओं को कोई महत्व नहीं दिया गया है. इतना ही नहीं कि इस परीक्षा में आदिवासी भाषाओं को महत्व नहीं दिया गया है बल्कि अलग अलग राज्यों में बोले जाने वाली भाषा का भी प्रावधान नहीं है.

इस बारे में चिंता व्यक्त करते हुए बृंदा करात ने पूछा है कि क्या दक्षिण या पूर्व और उत्तर पूर्व के राज्यों में जबरन हिंदी को थोपना जायज़ है. उन्होंने इस बारे में लिखा है कि हिंदी भाषी अध्यापकों से यह उम्मीद की जाएगी कि वे दो साल के भीतर स्थानीय भाषा सीख लेगें.  लेकिन सवाल ये है कि क्या दो साल में सभी अध्यापक आदिवासी भाषा सीख सकते हैं. इसके अलावा यह भी सवाल है कि जब तक अध्यापक आदिवासी भाषा सीखेंगे, उन दो सालों में छात्रों की पढ़ाई का क्या होगा.

एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूल आमतौर पर दूरदराज के इलाकों में स्थिति होते हैं. इन इलाकों में नियुक्त किये गए ग़ैर आदिवासी अध्यापक अक्सर किसी ना किसी वजह से छुट्टी लेते रहते हैं. इस तथ्य की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए बृंदा करात ने लिखा है कि शायद यही वजह है कि आदिवासी मामलों के मंत्रालय और नेस्ट की वेबसाइट पर यह लिखना पड़ा है कि जिनकी जहां नियुक्ति हुई है कृपया वे तबादला कराने के लिए आग्रह ना करें. 

आदिवासी मामलों के मंत्रालय को लिखे पत्र में बृंदा करात ने कहा है कि एकलव्य स्कूलों में आदिवासी भाषा, संस्कृति और क्षेत्र का ज्ञान रखने वाले लोगों को नियुक्त करने से फ़ायदा होगा. 

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