केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम ने बुधवार को कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा जुलाई में संसद में पेश किए जाने वाले केंद्रीय बजट 2024 में आदिवासी समुदाय के लिए 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की योजनाएं होने की उम्मीद है.
न्यूज एजेंसी ANI को दिए एक इंटरव्यू में ओराम ने कहा कि बजट का कुल 7.5 प्रतिशत आदिवासी समुदाय के लिए रखा गया है. जिसमें प्रत्येक मंत्रालय के योगदान का हवाला दिया गया है.
नवनियुक्त केंद्रीय मंत्री ने कहा, “हमारे पास आदिवासी समुदाय के लिए 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का बजट है जिसे उनके कल्याण परियोजनाओं पर खर्च किया जा सकता है.”
वहीं 1 फरवरी को घोषित अंतरिम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आदिवासी मामलों के मंत्रालय को 1.3 ट्रिलियन रुपये आवंटित किए थे, जो वित्त वर्ष 2023-24 की तुलना में 70 प्रतिशत की भारी वृद्धि है.
आदिवासी कल्याण की परियोजनाएं
ओराम के मुताबिक, केंद्र 740 एकलव्य मॉडल स्कूल बनाने के लिए काम कर रहा है. इस पहल का उद्देश्य आदिवासी छात्रों के लिए शैक्षिक बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना है.
उन्होंने कहा, “हमारे पास इस परियोजना के लिए 1.50 ट्रिलियन रुपये से अधिक की धनराशि उपलब्ध है.”
केंद्र द्वारा जारी 2021 के आंकड़ों से पता चलता है कि 620 स्वीकृत एकलव्य मॉडल स्कूलों में से 367 स्कूल पूरे भारत में संचालित हैं.
ओराम ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) – आजीविका पहल के बारे में भी बात की जिसका उद्देश्य आदिवासी आबादी की आय बढ़ाना है. उन्होंने कहा कि हमने (योजना के तहत) 87 से अधिक उत्पादों पर एमएसपी प्रदान किया है.
उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र ने 3,958 वन धन विकास केंद्रों को चालू करने के लिए काम किया है. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 2018 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य वनों और वन संबंधी उत्पादों के बारे में उनके ज्ञान के माध्यम से आदिवासी समुदाय को सहायता प्रदान करना है.
उन्होंने आदिवासी छात्रों के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए गठित एक संस्था राष्ट्रीय शिक्षा सोसायटी (NEST) का भी जिक्र किया.
भारत की आदिवासी आबादी
2011 की जनगणना के मुताबिक, आदिवासी आबादी भारत की कुल आबादी का लगभग 8.9 प्रतिशत है. जब सरकारी नीतियों का लाभ प्राप्त करने की बात आती है, तो वे आबादी में सबसे अलग-थलग समूहों में से एक हैं.
मार्च में विश्व असमानता डेटाबेस द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में भारत की आय असमानता अंतर-युद्ध औपनिवेशिक काल के दौरान देखी गई तुलना में अधिक है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022-23 में राष्ट्रीय आय का 22.6 प्रतिशत सिर्फ शीर्ष 1 प्रतिशत के पास चला गया.
आदिवासी समुदायों में गरीबी का स्तर
‘आदिवासी स्वास्थ्य पर विशेषज्ञ समिति’ की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, इसकी 90 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जो दस राज्यों और पूर्वोत्तर में केंद्रित है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उनमें से दो तिहाई (जनगणना 2011 के आधार पर) अपनी आजीविका के लिए खेती-किसानी पर बहुत अधिक निर्भर हैं.
केंद्र का कहना है कि अनुसूचित जनजातियों (एसटी) में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली उनकी आबादी 2004-05 में 62.3 प्रतिशत से घटकर 2011-12 में 45.3 प्रतिशत हो गई है.
वहीं शहरी क्षेत्रों के मामले में भी यही स्थिति 2004-05 में 35.5 प्रतिशत से घटकर 2011-12 में 24.1 प्रतिशत हो गई है.