मणिपुर में दो साल से ज़्यादा समय से कुकी-ज़ो और मैतेई समुदायों के बीच जारी जातीय हिंसा तनाव के बीच एक अहम प्रगति देखने को मिली है.
केंद्र सरकार और कुकी-ज़ो संगठनों के बीच सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SoO) समझौते के तहत नई बातचीत हुई. इस बातचीत में कुछ अहम फैसले लिए गए.
किन बातों पर बनी सहमति?
बैठक में सुरक्षा एजेंसियों की सिफारिश के आधार पर फिलहाल मैतेई बहुल इलाकों के पास स्थित सात शिविरों को बंद करने और उन्हें आदिवासी क्षेत्रों में स्थानांतरित करने पर सहमति बनी है.
इन शिविरों को हटाने का उद्देश्य संवेदनशील क्षेत्रों में तनाव को कम करना और सुरक्षा व्यवस्था को मज़बूत करना है.
केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, इस बातचीत में हथियारों की बरामदगी और मुख्य सड़कों जैसे इंफाल-जिरीबाम और डिमापुर-मोरेह को फिर से खोलने जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई.
क्या यह SoO समझौते का नवीनीकरण है?
इस बैठक में समझौते की अवधि बढ़ाने की घोषणा नहीं की गई है.
हालांकि, ज़मीन पर लागू नियमों (ground rules) की समीक्षा की गई और कुछ महत्वपूर्ण बदलावों पर दोनों पक्षों ने सहमति जताई.
अगली बैठक दो हफ्तों के भीतर हो सकती है. इस बैठक में कैंपों के नए स्थानों पर चर्चा और आगे की रणनीति तय की जाएगी.
क्या है SoO समझौता?
सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SoO) समझौता साल 2008 में केंद्र सरकार, मणिपुर सरकार और 25 कुकी-ज़ो संगठनों के बीच हुआ था.
इस समझौते का उद्देश्य था कि उग्रवादी हथियार छोड़कर हिंसा से दूर रहें और बातचीत के ज़रिए समाधान की राह अपनाएं.
इसके तहत लगभग 2,200 उग्रवादी सदस्यों को मणिपुर के पहाड़ी ज़िलों में सरकार की निगरानी में 14 चिन्हित शिविरों में रखा गया.
इन शिविरों में रहने वाले हर सदस्य को ₹6,000 की मासिक सहायता दी जाती थी ताकि वे हथियार छोड़कर सामान्य जीवन जी सकें.
मई 2023 में मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद ये भुगतान रोक दिया गया.
इसके अलावा, मणिपुर सरकार ने फरवरी 2023 में इस त्रिपक्षीय समझौते से खुद को अलग कर लिया था. इसलिए अब इसकी वैधता पर भी सवाल खड़े होते हैं.
राजनीतिक विरोध और समुदायों की मांग
मैतेई समुदाय के कुछ नेता इस नई सहमति से नाराज़ हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और बीजेपी प्रवक्ता माइकल लामजाथांग हाओकिप ने प्रधानमंत्री से इस समझौते को रद्द करने की मांग की है.
दूसरी ओर, कुकी-ज़ो समूह केंद्रशासित प्रदेश की मांग पर अब भी अड़े हुए हैं और उनका कहना है कि अब 2008 के समझौते के ढांचे की पुनर्समीक्षा की ज़रूरत है.
हालिया सहमति को मणिपुर में शांति बहाली की दिशा में एक जरूरी क़दम माना जा रहा है. लेकिन दोनों समुदायों के बीच गहरी होती खाई और राजनीतिक मतभेदों को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि यह पहल स्थायी समाधान लाएगी या फिर यह केवल एक अस्थायी सुलह साबित होगी.
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