उत्तर प्रदेश ( uttar pradesh ) के झांसी ( jhansi) में रहने वाले आदिवासियों को बंधक बनाकर जबरदस्ती मज़दूरी करवाने की खबर समाने आई है. ये भी बताया जा रहा है की ठेकेदार ने आदिवासियों के साथ मार पीट भी की.
इस सिलसिले में 17 नवंबर, शुक्रवार को आदिवासी समाज के लोगों ने डीएम से बंधक मज़दूरों को छुड़ाने की गुहार लगाई है. इस बारे में मिली जानकारी के अनुसार ठेकेदार ने 50 आदिवासियों को रोजगार देने का वादा किया था.
आदिवासियों की तरफ से दर्ज की गई शिकायत में बताया गया है कि ठेकदार ने सभी मजदूरों को 400 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी का वादा किया था.
इस वादे के साथ ठेकेदार इन आदिवासी मजदूरों को महाराष्ट्र ले गया था. महाराष्ट्र में ठेकेदार ने आदिवासी मजदूरों से करीब एक महीना काम लिया और मजदूरी नहीं दी.
आदिवासी मजदूरों के परिजनों ने बताया है कि पैसे ना मिलने की वजह से हालात ख़राब होते गए. इस पूरे मामले में चिंता की बात ये है आदिवासियों के साथ उनके बच्चों को भी ये सब सहना पड़ा.
यह भी बताया गया है कि ठेकेदार महाराष्ट्र के बाद वे सभी मजदूरों को इंदौर बोलकर कनार्टक के किसी ज़िले में ले गया. जहां उसने सभी को बंधक बनाकर मारपीट की और उनसे जबरदस्ती मज़दूरी करवाई.
मामले की गंभीरता को देखते हुए आदिवासी समाज के सदस्यों द्वारा डीएम को ज्ञापन सौंपा गया है. उत्तर प्रदेश के जिस क्षेत्र से यह ख़बर आई है वह मध्य प्रदेश की सीमा से लगता हुआ है.
यहां मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के इन इलाकों में सहरिया आदिवासी रहते हैं. इन आदिवासियों को बंधुआ बना कर काम करवाने की ख़बरे हैरान नहीं करती हैं. क्योंकि इस इलाके में इन आदिवासियों के पास जीने का कोई और सहारा नहीं है.
बंधुआ मज़दूरी निवारण कानून 1976
सविंधान का अनुच्छेद 23 बेगारी यानि बंधुआ मजदूरी या ज़ोर-जबरदस्ती काम करवाने पर पाबंदी लगाता है. साल 1976 में बंधुआ मजदूरी निवारण कानून भी बनाया गया था.
इस कानून के तहत ना सिर्फ़ बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने के प्रावधान किये गये हैं बल्कि बंधुआ मजदूरी के शिकार हुए लोगों के पुनवर्वास का प्रावधान भी किया गया है.
साल 2016 में इस कानून को और मजबूती देते हुए बंधुआ मजदूरी में फंसे लोगों के पुनर्वास के लिए कई प्रावधान और किये गये हैं.
इन प्रावधानों के अनुसार बंधुआ मजदूरी से छुडाए गए लोगों को एक लाख से तीन लाख रूपए की वित्तीय साहयता उपलब्ध करवाने का प्रावधान है.
इस कानून में प्रावधान किया गया है कि ज़िला स्तर पर कम से कम 10 लाख रूपए का एक फंड होनो चाहिए जो बंधुआ मजदूरी से छुड़ाए गए लोगों के पुनर्वास में इस्तेमाल हो सके.
बंधुआ मजदूरी को रोकने के लिए मौजूद कानूनों में मजदूरों का पुनर्वास सबसे ज़रूरी हिस्सा है. क्योंकि पुनर्वास ना होने की सूरत में आदिवासी और वंचित तबकों के लोग बार-बार बंधुआ मज़दूरी के चक्र में फंसते रहते हैं.
लेकिन अफ़सोस की आमतौर पर ज़िला प्रशासन अक्सर इस प्रावधान को नज़रअंदाज़ कर देता है. जिसकी वजह से आदिवासी और अन्य वंचित तबकों के बंधुआ मजदूरी में फंसने की ख़बरे बनती रहती हैं.