इस वर्ष की संयुक्त राष्ट्र (UN) और UNESCO द्वारा निर्धारित आधिकारिक थीम “Indigenous Peoples and AI: Defending Rights, Shaping Futures” (आदिवासी लोग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): अधिकारों की रक्षा, भविष्य को आकार देना) है.
इस बात को अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो इसका मतलब निकलता है कि कैसे आधुनिक तकनीक आदिवासी समाज के पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित और संवर्धित कर सकता है.
वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ज्ञान अर्जित करने और इसे इस्तेमाल करने के तरीके को बदल रहा है. यह स्थिति आदिवासी समाज के सामने अवसर है तो चुनौती भी पेश करती है.
आदिवासी ज्ञान के संरक्षण के मामले में यह ध्यान रखने की ज़रूरत है कि इसमें परंपरागत ज्ञान के संरक्षण में किसी तरह का समझौता ना किया जाए. इसके साथ ही समाज या व्यक्तियों के अधिकारों—जैसे डेटा स्वायत्तता, सहमति, और नियंत्रण—की सुरक्षा भी आवश्यक है.
इस बात को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल परंपरागत ज्ञान के संरक्षण के लिए किया जाए तो इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस ज्ञान पर आदिवासी समुदायों का अधिकार है.
इसलिए परंपरागत ज्ञान पर आदिवासी समुदाय के अधिकार का सम्मान किया जाना बेहद ज़रूरी है.
संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से जारी एक बयान में यह कहा गया है कि दुनिया भर में आदिवासी समुदायों ने जैव विविधता की रक्षा की है. संयुक्त राष्ट्र संघ यह कहता है कि आदिवासी संस्कृति और जल-जंगल-ज़मीन के बीच एक गहरा और अटूट रिश्ता है.
बहुत बढ़िया जानकारी