HomeAdivasi Dailyआदिवासी भाषा को रोज़गार से जोड़ने की मांग

आदिवासी भाषा को रोज़गार से जोड़ने की मांग

नागालैंड के कांग्रेस सांसद एस. सुपोंगरन जमीर ने रोज़गार के मामले में आदिवासी भाषाओं में पढ़ने वाले छात्रों के पिछड़ जाने पर चिंता प्रकट की है. उनका कहना है कि डाक विभाग की भर्तियों में आदिवासी भाषाओं में पढ़े लोगों के साथ भेदभाव देखा गया है.

नागालैंड से लोकसभा सांसद एस. सुपोंगरन जमीर ने मुख्यमंत्री नेफियू रियो से राज्य की जनजातीय भाषाओं को ‘तीसरी भाषा’ के रूप में मान्यता देने की अपील की है.

उन्होंने कहा कि इस कदम से राज्य के आदिवासी युवाओं को सरकारी नौकरियों, विशेषकर ग्रामीण डाक सेवक में अधिक अवसर मिलेंगे.

जमीर ने यह मांग एक आधिकारिक पत्र के माध्यम से की. इस पत्र में उन्होंने राज्य में डाक विभाग की भर्ती प्रणाली में हो रही कथित भेदभाव की तरफ ध्यान दिलाया.

सांसद ने पत्र में लिखा कि हाल ही में डाक विभाग द्वारा ग्रामीण डाक सेवक के लिए की जा रही ऑनलाइन भर्ती में केवल कक्षा 10वीं की अंग्रेज़ी या हिंदी विषय में प्राप्त अंकों के आधार पर मेरिट तैयार की जा रही है. नागालैंड में इस भर्ती के लिए जारी की गई अधिसूचना में स्थानीय भाषा या बोली की जानकारी को ज़रूरी बताया गया है. लेकिन चयन प्रक्रिया में स्थानीय भाषाओं का मूल्यांकन शामिल नहीं है.

जमीर ने लिखा कि इस प्रणाली से उन आदिवासी युवाओं को नुकसान हो रहा है जो स्थानीय बोली या भाषा में पढ़े हैं और हिंदी या अंग्रेज़ी में अपेक्षाकृत कमज़ोर हैं.

उन्होंने लिखा है कि इससे गैर-स्थानीय अभ्यर्थियों को प्राथमिकता मिल रही है. यह स्थानीय युवाओं के लिए चिंता का विषय है.

सांसद के अनुसार पिछले दो वर्षों में नागालैंड में ग्रामीण डाक सेवक के लिए तीन बार भर्ती प्रक्रिया चली है. इस प्रक्रिया में कुल 364 पदों पर भर्ती हुई. इसमें जनवरी 2023 में हुई विशेष भर्ती भी शामिल है, जिसमें 143 पद निकाले गए थे.

उन्होंने कहा कि इतने बड़े स्तर की भर्ती में अगर आदिवासी भाषा को मूल्यांकन का हिस्सा न बनाया जाए तो राज्य के युवाओं के लिए यह बहुत बड़ी बाधा बन जाती है.

जमीर ने अपने पत्र में उल्लेख किया कि ग्रामीण डाक सेवक निदेशालय ने पूर्वोत्तर सर्कल के मुख्य पोस्टमास्टर्स जनरल को पत्र भेजकर यह कहा है कि स्थानीय भाषाओं को भी भर्ती के दौरान माध्यम के रूप में अपनाया जा सकता है, बशर्ते राज्य सरकार उन्हें आधिकारिक रूप से मान्यता दे.

सांसद ने अरुणाचल प्रदेश का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां पर 23 जनजातीय बोलियों को तीसरी भाषा का दर्जा दिया गया है. इसी कारण वहां के युवाओं को डाक विभाग की नौकरियों में बेहतर अवसर मिल रहे हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार नागालैंड की कुल आबादी लगभग 19.8 लाख है. इस आबादी में 86% से अधिक लोग अनुसूचित जनजातियों से आते हैं.

राज्य में 17 मान्यता प्राप्त प्रमुख जनजातियाँ हैं. नगालैंड में प्रभावी रूप से 14 भाषाएँ और 17 बोलियाँ बोली जाती है. इन सभी में से कोन्याक सबसे अधिक बोली जाती है. कोन्याक की भागीदारी राज्य में 46% है.

ज़्यादातर हर जनजाति की अपनी भाषा और उपभाषा होती है. इसके बावजूद राज्य की एकमात्र आधिकारिक भाषा अंग्रेज़ी है.

मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने भी विधानसभा में माना था कि स्थानीय आदिवासी भाषाएं युवाओं की भर्ती में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं.

सांसद जमीर की मांग पर राज्य के गृह विभाग ने संस्कृति विभाग से परामर्श करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है लेकिन अभी तक कोई स्पष्ट अधिसूचना जारी नहीं हुई है.

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