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2 से 5 फरवरी तक मनाया जाएगा डोंगिन उत्सव, जाने क्या है खास

इस त्योहार के दौरान आदिवासी अपने देवी-देवताओं से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं. आदि समुदाय में डोंगिन का मतलब वसंत है. इसलिए इस त्योहार को हर साल 2 से 5 फरवरी तक मनाया जाता है. हालांकि इस त्योहार की कुछ परंपराए अन्य दो दिनों तक भी चलती है.

अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के बोरी या आदि समुदाय (Bori or Adi community) का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार डोंगिन (Donggin Festival) है.

आदि समुदाय में डोंगिन का मतलब वसंत है. इसलिए इस त्योहार को हर साल 2 से 5 फरवरी (2 to 5 February) तक मनाया जाता है. हालांकि इस त्योहार की कुछ परंपराए अन्य दो दिनों तक भी चलती है.

इस त्योहार के दौरान आदिवासी अपने देवी-देवताओं से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं और उन्हें भोजन चढ़ाते है.

अरुणाचल प्रदेश सरकार ने इस त्योहार को मान्यता दी है. साल 1995 में इस उत्सव को अरुणाचल प्रदेश के राजपत्र में सूचीबद्ध किया गया था और उत्सव के लिए निश्चित तिथि तय की गई थी.

त्योहार के दौरान आदिवासी अपने देवताओं की पूजा करते है. जिनमें पोदी मेतेह (घरेलू पशुओं के देवता), तोगु युगोन (कल्याण और समृद्धि के देवता), मिति मितक (खाद्य अनाज के देवता), मिरिंग मिसिंग (धन के देवता), और प्राइन शामिल हैं.

पहला दिन:

इस दिन को बिनटर कहा जाता है. इस दिन महिलाएं अन्न भंडार से साफ और स्वच्छ अनाज इकट्ठा करती हैं और उन्हें धूप में सुखाती हैं.

फिर वे सभी मिलकर चावल और अन्य खाद्य सामग्री बनाते हैं और बड़े धूम-धाम से अपना दिन व्यतीत करते है.

दूसरा दिन:

बिनटर के बाद, अगले दिन को इसिंग इको कहा जाता है, जिसका अर्थ है जंगली पत्तियां और जलाऊ लकड़ी.

इस दिन जलाऊ लकड़ी और जंगली पत्तियों की तलाश में गाँव के युवा लड़के जंगल में घूमते हैं और फिर घर लौटने पर परिवार का मुख्य उन्हें अपोंग (चावल बियर) परोसते हैं.

तीसरे दिन:

तीसरे दिन को सिलिंग टैनोन कहा जाता है. इस दिन एक विशेष प्रकार के पेड़ (आमित इसिंग) को टुकड़ों में काट दिया जाता है और धूप में सुखाया जाता है.

इन टुकड़ों का इस्तेमाल घरों की सजावट और जलाऊ लकड़ी के रूप में किया जाता है.

चौथा दिन:

इस दिन को सोकांग रानोन कहा जाता है. इस दिन लोग मिथुन की बलि देने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला सोकांग (एक हाथियार) बनाते ह, जिसका निर्माण घर के गलियारे में किया जाता है.

पाँचवा दिन:-

पांचवे दिन को सोबो पैनोन कहा जाता है. ये दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस दिन देवताओं को चढ़ाने के लिए मिथुन और सूअर जैसे जानवरों की बलि दी जाती है और पुजारी पौराणिक लोककथा पढ़ता है.

इन लोककथाओं में आदिवासियों के पूर्वजों के इतिहास के बारे में उल्लेख किया गया है.

छठा दिन:

यह त्योहार का आखिरी दिन होता है, इस दिन को गम्बो के नाम से जाना जाता है जो सोबो पैनोन(पांचवा दिन) के तीन दिनों के बाद आता है.

सोबो पैनोन (पांचवा दिन) के बाद परिवार द्वारा नयोनौन नामक एक सामाजिक वर्जना का तीन दिनों तक मनाया जाता है

न्योनोन के चौथे दिन गांव के युवा गम्बो(आखिरी दिन) के लिए चार लंबे बांस इकट्ठा करते हैं. इन बांसों को सजाया जाता है और उन पर अपोंग छिड़का जाता है.

फिर मुख्य परिवार की छत के ऊपरी सिरे से जुड़ते हुए दोनों तरफ बांस खड़े कर दिए जाते हैं. यह उतस्व के समापन का प्रतीक होता है.

इसके अलावा इस दिन पुजारी सभी देवताओं को विदाई देता है.

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