HomeAdivasi Dailyनागालैंड में पांच जनजातियों ने ख़त्म किया बहिष्कार, सरकार ने मांगे मानी

नागालैंड में पांच जनजातियों ने ख़त्म किया बहिष्कार, सरकार ने मांगे मानी

इस फैसले से उन लोगों को भी राहत मिली है जो लंबे समय से कह रहे थे कि आरक्षण की चर्चा सिर्फ नौकरियों में ही क्यों हो रही है, जबकि शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में भी आदिवासियों को मदद की जरूरत है.

नागालैंड की पांच बड़ी जनजातियों के संगठन ने सरकार से बातचीत के बाद राज्य के कार्यक्रमों से चल रहा बहिष्कार खत्म कर दिया है.

यह संगठन “CoRRP” यानी “कमेटी ऑन रिव्यू ऑफ रिज़र्वेशन पॉलिसी” के नाम से जाना जाता है. इस कमेटी में पाँच प्रमुख जनजातियाँ शामिल हैं,

आओ (Ao), अंगामी (Angami), लोथा (Lotha), रेंगमा (Rengma) और सुमी (Sumi).

इन जनजातियों का कहना था कि सरकार ने जो आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए आयोग (Commission) बनाया है, उसका नाम और काम दोनों ही ठीक नहीं थे.

पहले इस आयोग को सिर्फ “जॉब रिज़र्वेशन कमीशन” कहा जा रहा था और उसका काम सिर्फ सरकारी नौकरियों में आरक्षण की जांच करना था.

लेकिन जनजातियों का कहना था कि आरक्षण सिर्फ नौकरी तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि पढ़ाई, स्वास्थ्य, और दूसरी योजनाओं में भी इसका असर देखा जाना चाहिए.

इस मांग को लेकर इन जनजातियों ने 15 अगस्त 2025 से सभी सरकारी कार्यक्रमों और आयोजनों का बहिष्कार शुरू कर दिया था.

यानी वे किसी सरकारी समारोह या मीटिंग में हिस्सा नहीं ले रहे थे.

अब सरकार ने इनकी बात मान ली है.

16 अक्टूबर 2025 को राज्य की कैबिनेट मीटिंग में यह तय किया गया कि आयोग का नाम अब बदलकर “रिज़र्वेशन पॉलिसी रिव्यू कमीशन” रखा जाएगा.

साथ ही, अब यह आयोग सिर्फ नौकरी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि दूसरी जरूरी बातों को भी देखेगा.

सरकार के इस फैसले के बाद CoRRP ने 21 अक्टूबर 2025 की रात को प्रेस में बयान जारी किया कि वे अब बहिष्कार खत्म कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार ने जो फैसला लिया है, वह वैसा ही है जैसा उन्होंने 24 सितंबर 2025 को दिए गए अपने मांग पत्र में लिखा था.

CoRRP के संयोजक (मुखिया) Tesinlo Semy और सचिव G.K. Zhimomi ने बताया कि अब उनका संगठन सरकार के साथ मिलकर काम करेगा और आयोग को पूरा सहयोग देगा.

उन्होंने कहा कि वे अब सभी सरकारी कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे और सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह आगे भी आदिवासियों की बातों को सुनेगी.

उन्होंने यह भी कहा कि आयोग को अब राज्य के सभी आरक्षण कानूनों, नियमों और योजनाओं की पूरी जांच करनी चाहिए — ना कि सिर्फ नौकरियों की.

उन्होंने शिक्षा, समाजिक मदद, आदिवासी कल्याण, और दूसरे विकास योजनाओं की भी समीक्षा की बात की.

सरकार की तरफ से इस समझौते को एक अच्छा कदम बताया गया है.

अधिकारियों ने कहा कि सरकार हमेशा से जनजातियों की बातों को सुनना चाहती थी, और अब जब जनजातियाँ सहयोग कर रही हैं, तो इससे राज्य में और अच्छा माहौल बनेगा.

फिलहाल आयोग के नए नाम और दायरे को लेकर पूरी जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन यह साफ है कि अब आयोग को नौकरी के बाहर भी दूसरे मामलों को देखना होगा.

इस समझौते से राज्य में आदिवासियों को भरोसा मिला है कि उनकी बातों को माना जा सकता है.

साथ ही, सरकार और समुदाय के बीच बातचीत से समाधान निकाला जा सकता है — यह एक अच्छा उदाहरण बन गया है.

इस फैसले से उन लोगों को भी राहत मिली है जो लंबे समय से कह रहे थे कि आरक्षण की चर्चा सिर्फ नौकरियों में ही क्यों हो रही है, जबकि शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में भी आदिवासियों को मदद की जरूरत है.

अब देखना यह है कि यह आयोग कब से काम शुरू करता है और इसमें क्या बदलाव होते हैं.

 जनजातियों की मांगों को मानने के बाद सरकार की जिम्मेदारी है कि वह जल्दी और सही फैसले ले और ज़मीनी स्तर पर लोगों को फायदा मिले.

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