छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में हर साल दशहरा बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है.
यह पर्व न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि इसकी परंपराएं भी बहुत पुरानी हैं.
इसी उत्सव में दो बड़े लकड़ी के रथ बनाए जाते हैं जिन्हें “फूल रथ” और “विजय रथ” कहा जाता है.
इन रथों को बनाने के लिए हर साल, सैकड़ों साल (sal) के पेड़ काटे जाते हैं.
पर्यावरण को हो रहे नुकसान को ध्यान में रखते हुए अब प्रशासन और स्थानीय ग्रामीणों ने मिलकर इन पेड़ों की भरपाई के लिए एक पहल शुरू की है.
इस नई पहल के तहत बस्तर वन विभाग, दशहरा समिति और गांव के लोग मिलकर पौधारोपण कर रहे हैं.
जगदलपुर के पास नाकटी सेमरा गांव में हर साल 250 से 300 पौधे लगाए जा रहे हैं.
इस काम में आदिवासी समुदाय के पारंपरिक नेता जैसे मांझी और चालकी भी भाग ले रहे हैं.
उनके साथ-साथ ग्रामीण भी इन पौधों की देखभाल में मदद कर रहे हैं ताकि ये पौधे लंबे समय तक टिक सकें और सही तरीके से बढ़ें.
हालांकि पर्यावरण से जुड़े कुछ जानकारों का कहना है कि सिर्फ पौधे लगाने से समस्या हल नहीं होगी.
उनका मानना है कि जिन साल के पेड़ों को काटा गया है, उसी प्रजाति के नए पेड़ लगाए जाने चाहिए ताकि असली नुकसान की भरपाई हो सके.
इसके साथ ही यह भी सुझाव दिया गया है कि पौधारोपण का सही समय बारिश के मौसम में होता है, लेकिन यहां यह काम अक्सर दशहरा उत्सव के बाद किया जाता है, जिससे पौधों की बढ़त पर असर पड़ता है.
वन विभाग ने इस बात को माना है कि यह पहल अभी शुरुआती स्तर पर है और भविष्य में इसे और बेहतर बनाया जाएगा.
पौधों की सुरक्षा, नियमित देखभाल और सही समय पर रोपण जैसे कदम उठाकर इस योजना को ज़मीन पर बेहतर तरीके से उतारा जा सकता है.
इस पूरे प्रयास का उद्देश्य यही है कि बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को भी सुरक्षित रखा जाए और पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई भी की जा सके.
इस तरह की कोशिशें हमें यह सिखाती हैं कि परंपरा और प्रकृति दोनों को साथ लेकर चलना ज़रूरी है.
अगर हर बड़ा आयोजन इस तरह से पर्यावरण के बारे में सोचने लगे तो आने वाले समय में हम एक संतुलित और सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं.