HomeAdivasi Dailyसरकार की नई पहल: आदिवासी इलाके होंगे मलेरिया मुक्त

सरकार की नई पहल: आदिवासी इलाके होंगे मलेरिया मुक्त

गढ़चिरोली मे बारिश के समय यहां के करीब 200 गांव दूसरे इलाकों से पूरी तरह अलग हो जाते हैं, यानी वहां गाड़ी, एंबुलेंस या स्वास्थ्यकर्मी नहीं पहुंच सकते.

महाराष्ट्र सरकार ने गढ़चिरोली जिले को मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी से बचाने के लिए एक खास टीम (टास्क फोर्स) बनाई है.

इस टीम की जिम्मेदारी है कि जिले को अगले तीन साल में मलेरिया से पूरी तरह मुक्त किया जाए.

गढ़चिरोली जिले में करीब 200 गांव ऐसे हैं जो बारिश के समय बाकी जगहों से अलग हो जाते हैं.

इनमें छोटे-छोटे आदिवासी गांव ज़्यादा हैं. ये गांव मुख्य तौर पर  तुमगूदी, द्रांगेरी, वड्सा, सिपोरी, और आरांद नदी के आसपास  वाले इलाकों में आते हैं.

बारिश के मौसम में इन गांवों तक सड़कें खराब हो जाती हैं, कई जगह पुल नहीं होते, और नदियाँ उफान पर आ जाती हैं. इसलिए स्वास्थ्यकर्मी या मदद वहां पहुंचना बहुत मुश्किल हो जाता है.

इन इलाकों में गोंड, माडिया और मुंडा जैसे आदिवासी समुदाय के गांव भी शामिल हैं. ये क्षेत्र इसलिए भी खास हैं क्योंकि यहां तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना बड़ा काम है.

सरकारी रिपोर्ट में इन गांवों की पूरी सूची नहीं होती, लेकिन स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग बताते हैं कि भारी बारिश और खराब रास्तों की वजह से इन जगहों से संपर्क टूट जाता है.

हालांकि गढ़चिरोली को मलेरिया से मुक्त करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने ₹25 करोड़ की योजना बनाई है, लेकिन ये रकम इतनी बड़ी नहीं मानी जा सकती, खासकर जब हम जिले की ज़मीन, हालत और जरूरतों को ध्यान में रखते हैं.

गढ़चिरोली एक आदिवासी इलाका है, जहां गांव बहुत दूर-दूर और जंगलों में बसे हुए हैं.

गढ़चिरोली मे बारिश के समय यहां के करीब 200 गांव दूसरे इलाकों से पूरी तरह अलग हो जाते हैं, यानी वहां गाड़ी, एंबुलेंस या स्वास्थ्यकर्मी नहीं पहुंच सकते.

ऐसे इलाकों में मलेरिया से लड़ने के लिए सिर्फ दवाइयां देना ही काफी नहीं होता, बल्कि मच्छरदानी बांटना, घरों में दवा छिड़कना, बुखार वाले मरीजों की तुरंत जांच करना, और लोगों को मलेरिया से बचने के तरीके सिखाना जरूरी होता है.

इन सब कामों के लिए टेस्टिंग किट, दवाएं, प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी, ट्रांसपोर्ट, कनेक्टिविटी और निगरानी सिस्टम की जरूरत होती है.

इसके अलावा, कई छोटे गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं ही नहीं हैं, तो वहां पर लोगों को भर्ती कर उन्हें ट्रेनिंग देना भी ज़रूरी होगा, जिसका अलग खर्च होता है.

एक्सपर्ट्स और स्वास्थ्य संगठनों का मानना है कि ₹25 करोड़ इस तरह के जिले में सिर्फ शुरुआती कामों के लिए ही काफी हो सकता है,

लेकिन अगर सरकार सच में गढ़चिरोली को मलेरिया से पूरी तरह मुक्त करना चाहती है, तो आने वाले सालों में इस योजना में और ज्यादा पैसा, संसाधन और ज़मीनी मेहनत की ज़रूरत होगी.

इस योजना का नेतृत्व स्वास्थ्य के जाने-माने विशेषज्ञ डॉ. अभय बंग कर रहे हैं. गढ़चिरोली आदिवासी इलाका है और यहां बहुत सारे गांव जंगलों में हैं.

इन गांवों में मच्छर आसानी से फैलते हैं और इलाज समय पर नहीं मिल पाता.

2024 में यहां मलेरिया के 6,684 मरीज मिले और 14 लोगों की मौत हो गई.

सरकार की योजना तीन साल में पूरी होगी. पहले साल ₹12.76 करोड़, दूसरे साल ₹5.96 करोड़ और तीसरे साल ₹5.09 करोड़ खर्च किए जाएंगे.

इसके अलावा नीति आयोग से भी ₹34 करोड़ रुपये की अतिरिक्त मदद मिल सकती है.

यह पैसा खासकर आदिवासी इलाकों पर खर्च किया जाएगा.

सरकार का लक्ष्य है कि गढ़चिरोली में मलेरिया के मामलों की संख्या बहुत कम कर दी जाए.

अभी जिले में हर 1,000 लोगों में से करीब 6 लोग हर साल मलेरिया से बीमार हो रहे हैं.

आने वाले दिनों मे 1000 मे से 1 का लक्ष्य है.

योजना के तहत कई ज़रूरी कदम उठाए जाएंगे.

साथ ही, गांव की महिलाओं और युवाओं को भी ट्रेनिंग देकर इस अभियान में जोड़ा जाएगा.

सरकार को चिंता है कि मच्छरों पर जो दवाइयाँ और स्प्रे पहले काम करते थे, वे अब उतना असर नहीं कर रहे हैं.

इसलिए अब नई योजना के तहत लगातार निगरानी रखी जाएगी, ताकि मलेरिया को बढ़ने से रोका जा सके.

इस टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ. अभय बंग ने कहा कि यह सिर्फ सरकार की योजना नहीं है, बल्कि गांव वालों और पूरे समाज की मदद से चलने वाला अभियान है.

अगर सभी लोग साथ आएं, तो मलेरिया जैसी बीमारी को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है.

गढ़चिरोली जिले के लिए यह योजना बहुत जरूरी है, क्योंकि यहां के लोग लंबे समय से मलेरिया की मार झेल रहे हैं.

सरकार का यह कदम सिर्फ एक योजना नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, जागरूकता और विकास की दिशा में एक नई शुरुआत है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments