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गुजरात ने वंशानुगत बीमारियों से निपटने के लिए ‘ट्राइबल जीनोम सिक्वेंसिंग’ प्रोजेक्ट शुरू किया

इस प्रक्रिया में डीएनए की पूरी जानकारी ली जाती है. इससे यह पता चल सकता है कि किसी इंसान को कौन-सी बीमारी हो सकती या कौन से रोग उसे अपने पूर्वजों से मिले हो सकते हैं.

गुजरात सरकार (Gujarat government) ने आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य सेवा में सुधार के उद्देश्य से 17 जिलों में ट्राइबल जीनोम सिक्वेंसिंग प्रोजेक्ट (Tribal Genome Sequencing Project) शुरू किया है. जनजातीय विकास मंत्री कुबेर डिंडोर ने बुधवार को इसकी घोषणा की.

इस परियोजना के साथ गुजरात देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने आदिवासियों के लिए विशेष रूप से इसकी शुरुआत की है.

एक आधिकारिक विज्ञप्ति के मुताबिक, इस पहल का उद्देश्य आदिवासी समूहों के बीच आनुवंशिक स्वास्थ्य जोखिमों को समझना और एक डेटाबेस तैयार करना है.

क्या है यह प्रोजेक्ट?

इस परियोजना का क्रियान्वयन गांधीनगर में स्थित गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (GBRC) करेगा और यह 2025-26 के राज्य बजट का हिस्सा है.

जीनोम डेटा गुजरात की आदिवासी आबादी, जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 15 प्रतिशत हैं… उनके आनुवंशिक स्वास्थ्य और विविधता के बारे में बहुमूल्य सूक्ष्म-स्तरीय जानकारी प्रदान करेगा.

इस परियोजना के तहत गुजरात के 17 जिलों में फैले हुए 2 हज़ार आदिवासी लोगों का DNA सैंपल इकट्ठा कर उनका जीनोम सिक्वेंसिंग किया जाएगा. यानी इनके DNA की बारीकी से मैपिंग की जाएगी, ताकि उनकी आनुवंशिक विशेषताओं को समझा जा सके.

इससे आदिवासियों में पाए जाने वाले कई तरह की बीमारियों के जेनेटिक कारणों को पहचाना जा सकेगा. जैसे – सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया, जन्मजात रोग, प्रतिरक्षा संबंधी समस्याएं, कैंसर से जुड़ी आनुवंशिक प्रवृत्तियां.

वहीं अध्ययन में शामिल समुदायों में बामचा, गरासिया भील, ढोली भील, चौधरी, धानका, तड़वी, वाल्वी, दुबला, गामित, गोंड, कथोड़ी, कुकना, कुनबी, नायका, पारधी, पटेलिया, राठवा, वारली, कोटवालिया और अन्य शामिल हैं.

अमरेली, भावनगर, जामनगर, जूनागढ़, राजकोट और सुरेंद्रनगर के सिदी समुदाय, जो अपने अफ्रीकी वंश के लिए जाने जाते हैं, वो भी इस पहल का हिस्सा होंगे.

आदिवासी स्वास्थ्य सेवाएं होगी बेहतर

डॉ. डिंडोर ने कहा कि इस पहल का उद्देश्य सिर्फ वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं है, बल्कि यह आदिवासी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में व्यावहारिक और डेटा-आधारित रणनीति है.

उन्होंने कहा, “यह परियोजना विज्ञान और परंपरा के बीच की खाई को पाटकर हमारे आदिवासी समुदायों के लिए एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य की ओर ले जाने में एक मील का पत्थर साबित होगी.”

उन्होंने आगे कहा कि यह जीनोमिक डेटा आदिवासी समुदाय के लिए एक रेफरेंस डेटाबेस तैयार करेगा, जिसे भविष्य में हेल्थकेयर पॉलिसी और ट्रीटमेंट डिज़ाइन में इस्तेमाल किया जाएगा.

इकट्ठा किए गए जेनेटिक डेटा का उपयोग नेचुरल इम्यूनिटी से संबंधित संकेतकों की पहचान करने और व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा समाधानों के विकास में सहायता के लिए भी किया जाएगा.

अधिकारियों ने बताया कि इस परियोजना में सैंपल कलेक्शन, सिक्वेंसिंग और जेनेटिक डेटा को समझने के लिए एडवांस्ड इंफ्रास्ट्रक्चर शामिल किया जाएगा.

कार्यक्रम में उपस्थित विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर कहा कि यह पहल केवल वैज्ञानिक अनुसंधान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य उन्नत तकनीक और आंकड़ों के उपयोग के माध्यम से आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाना है.

इस परियोजना में सैंपल कलेक्शन और जेनेटिक एनालिसिस के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं शामिल होंगी.

अध्ययन के प्रारूप के एक हिस्से के रूप में प्रत्येक जनजाति में माता-पिता और बच्चे, दोनों से एकत्रित कम से कम एक जेनेटिक ट्रायो (Genetic Trio) सैंपल शामिल होंगे ताकि वंशानुगत आनुवंशिक लक्षणों का पता लगाया जा सके.

सर्वे में केवल 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के स्वस्थ व्यक्ति शामिल होंगे, जिनमें कोई स्पष्ट रक्त विकार नहीं होगा.

अधिकारियों ने नमूने में 50 फीसदी महिला प्रतिनिधित्व के लक्ष्य पर भी ज़ोर दिया.

देश में अब तक अधिकांश जीनोमिक स्टडीज शहरी या गैर-आदिवासी आबादी पर केंद्रित रही हैं. आदिवासी समुदाय की जेनेटिक विविधता और स्वास्थ्य जोखिम को अक्सर नजरअंदाज किया गया है. ऐसे में यह परियोजना इस कमी को दूर करने के लिए एक ठोस कदम है.

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