मणिपुर में हिंसा की शुरुआत के एक वर्ष से ज्यादा वक्त बीत चुके हैं और आज भी इसके थमने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं. थोड़े अंतराल के बाद संबंधित संगठनों के बीच बातचीत या समझौते की कोई खबर आती है और कुछ ही दिनों बाद फिर से हिंसा भड़क जाती है.
अब राज्य के तेंगनौपाल जिले से गोलीबारी की खबर सामने आई है. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने विधानसभा में यह जानकारी दी कि शुक्रवार को सशस्त्र उग्रवादी समूहों के बीच गोलीबारी हुई.
मुख्यमंत्री ने बताया कि स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए सुरक्षा बलों को क्षेत्र में भेजा गया है.
उन्होंने बताया कि दोनों उग्रवादी समूह एक ही समुदाय के हैं.
सिंह ने बताया कि गुरुवार को हथियारबंद लोगों ने मजदूरों के एक दल पर उस समय गोलीबारी की, जब वे बिष्णुपुर जिले के तोरबंग के पास केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की तैनाती के लिए मकान के पुनर्निमाण का काम करने गए थे.
उन्होंने बताया कि सुरक्षा बलों ने भी जवाबी कार्रवाई की और 30 मिनट तक गोलीबारी हुई. हमले में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है.
उन्होंने कहा कि फिलहाल स्थिति सामान्य है.
लोगों को बचाना हमारी पहली प्राथमिकता – एन बीरेन सिंह
इससे पहले सीएम बीरेन सिंह ने गुरुवार को कहा कि उनकी सरकार ने जातीय हिंसा से प्रभावित चुराचांदपुर, मोरेह और इंफाल जैसे क्षेत्रों से लोगों को दूसरी जगहों पर शिफ्ट कर दिया है. सरकार ने ये फैसला लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया है.
चूराचांदपुर और मोरेह से लोगों को इंफाल घाटी और राज्य की राजधानी से पहाड़ियों से शिफ्ट करने पर विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस रात (3 मई, 2023) हिंसा भड़की, हम सो नहीं पाए, हम लोग अपने ऑफिस में चर्चा कर रहे थे कि लोगों की कैसे तुरंत मदद की जाए.
उन्होंने कहा कि मोरेह में प्रभावित लोगों को असम राइफल्स कैंप में रखा गया था और चुराचांदपुर में जो लोग थे उन्हें सचिवालय में रखा गया था.
शुरू में हमने लोगों को वहीं रखने के बारे में सोचा था लेकिन लोग लगातार मदद की गुहार लगा रहे थे और हमने चारों तरफ से दबाव था कि प्रभावित लोग अपने घरों में सुरक्षित नहीं हैं. इसलिए लोगों की जान बचाना हमारी पहली प्राथमिकता है. सरकार ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का फैसला किया.
अब सवाल उठ रहे हैं कि उन्होंने चुराचांदपुर और मोरेह से इंफाल घाटी में क्यों शिफ्ट किया गया लेकिन अगर उन्होंने शिफ्ट नहीं किया गया होता तो स्थिति विपरीत होती और कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हो सकती थीं.
उन्होंने कहा कि तो इससे एक अलग सवाल उठता और बहुत परेशानी होती. वहां हजारों की संख्या में भीड़ इकट्ठी हो गई थी और आप लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी नहीं कर सकते.
उन्होंने आरोप लगाया, शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने के लिए बहुत सारे लोग काम कर रहे हैं. जिरीबाम जिले में शांति पहली की घोषणा के एक दिन बाद ही आगजनी की घटनाएं हुईं. ऐसे कई लोग हैं जो अभी-भी चाहते हैं कि संघर्ष जारी रहे और वक्त के साथ ये बढ़ जाए.
उन्होंने कहा, “फिर भी हम शांति के संकेत देख रहे हैं. हाल ही में जिरीबाम में अपने घर छोड़कर भाग गए 133 लोग अपने-अपने घरों में लौट आए हैं, हम यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं कि दूसरी जगहों पर शिफ्ट हुए लोग भी अपने घरों में लौट आएं.”
कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा से किया वॉकआउट
वहीं विपक्षी कांग्रेस शुक्रवार को विधानसभा से वॉकआउट कर गई और सदन के सत्र का बहिष्कार किया. विधानसभा सत्र की 8वीं बैठक में सीएलपी नेता ओकराम इबोबी सिंह ने आरोप लगाया कि पार्टी विधायकों को कार्यवाही के लिए अपना एजेंडा रखने या सदन में प्रासंगिक मुद्दे उठाने की अनुमति नहीं दी जा रही है.
सिंह ने कहा, “हम राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि राज्य सरकार कानून और व्यवस्था के संबंध में अपनी शक्ति का पूरी तरह से उपयोग करे. निजी सदस्य संकल्प के रूप में, जिसे हम लोगों के हित में लाए हैं.”
उन्होंने कहा कि हमने वॉकआउट करने के साथ-साथ विधानसभा के शेष सत्र में भाग नहीं लेने का फैसला किया है.
विधानसभा सत्र 12 अगस्त को समाप्त होगा.
विधानसभा के बाहर मीडियाकर्मियों से बातचीत करते हुए इबोबी ने कहा, “15 महीने से अधिक समय से राज्य में संकट का कोई समाधान नहीं निकला है. इससे पहले हमने सरकार को नौ बैठकों को तीन या चार दिनों तक छोटा करने का सुझाव दिया था. इसके अलावा संकट को हल करने के लिए गहन चर्चा करने और साथ ही संकट में हस्तक्षेप करने के लिए भारत सरकार, विशेषकर प्रधानमंत्री से संपर्क करने के लिए एक ठोस समाधान निकाले जाने को लेकर सुझाव दिया था.”
सिंह ने आगे कहा कि हमने जो प्रस्ताव दिया था, सरकार ने उसे नहीं सुना. आज हमने प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगने के लिए अपने पांच निजी सदस्यों के प्रस्ताव पेश किए हैं.
उन्होंने कहा, “हम प्रधानमंत्री के पास जाना चाहते थे और उनकी मदद लेना चाहते थे लेकिन सरकार सुन नहीं रही है. यहां तक कि मणिपुर के लोग भी जानते हैं कि सरकार प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांग सकती है या नहीं. अभी उन्हें (लोगों को) ऐसा लगता है कि वे भी प्रधानमंत्री से मिलने का समय नहीं मांग सकते. इसीलिए हमने अपना निजी सदस्य प्रस्ताव पेश किया लेकिन अध्यक्ष ने इसे खारिज कर दिया. इसलिए शेष सत्र में भाग लेने की कोई जरूरत नहीं थी” उन्होंने कहा, ”केवल आज का वाकआउट ही नहीं, हम शेष सत्र का भी बहिष्कार करेंगे.”
पिछले साल मई से इंफाल घाटी स्थित मैतेई और पहाड़ी इलाके में रहने वाले कुकी समुदाय के बीच जातीय हिंसा जारी है. इस हिंसा में अब तक 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि इतने समय से सरकार किस दिशा में क्या काम कर रही हैं कि एक छोटे से राज्य में इतने लंबे वक्त से टकराव और हिंसा कायम है.
राज्य सरकार आधिकारिक रूप से यह स्वीकार करती है कि हालात अच्छे नहीं हैं…बावजूद इसके क्या उस कोई ठोस पहल करना जरूरी नहीं लगता या फिर उसके पास दूरदर्शिता का अभाव है. नहीं तो राज्य सरकार की तमाम एजंसियों, केंद्र सरकार के प्रयासों, सेना की दखल के बावजूद आज भी हिंसा का दौर जारी है, लोग बेघर हो रहे हैं तो इसकी क्या वजह हो सकती है?