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कीड़े भी भोजन हैं: बोडोलैंड में कई तरह के कीड़े खाए जाते हैं

भविष्य का भोजन या पारंपरिक पोषण? बोडोलैंड में कीड़ों को खाने की अनोखी परंपरा और उसका वैज्ञानिक आधार

अक्सर हम लोग यह मानते हैं कि चीन, वियतनाम या फिर पूर्वी एशिया के देशों में कीड़ों का खाया जाता है.

लेकिन हम शायद इसलिए ऐसा मानते हैं कि हम दुनिया को बहुत कम जानते या समझते हैं.

क्योंकि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई इलाकों में लोग सदियों से कीड़े खाते आ रहे हैं.

यहां यह बताना भी सही रहेगा कि पहले लोग कीड़े-मकोड़ों को अजीब या गंदा समझते थे, अब वही कीड़े भविष्य के खाने का एक अच्छा और टिकाऊ (पर्यावरण के लिए सही) विकल्प माने जा रहे हैं.

कीड़े खाने की इस परंपरा को एंटोमोफेगी (Entomophagy) कहा जाता है.

आज भी दुनिया में लगभग 2 अरब लोग अपनी डाइट में किसी न किसी रूप में कीड़े शामिल करते हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि कीड़े खाने में उतने ही फायदेमंद होते हैं जितना मांस.

इनमें करीब 16% से 20% तक प्रोटीन होता है, जो शरीर के लिए बहुत ज़रूरी है.

इसके अलावा इनमें वसा (Fat ) और कैलोरी (Calories) भी बहुत कम होती है. 100 ग्राम कीड़ों में 10% से भी कम फैट और 100 से कम कैलोरी होती है.

यही नहीं, कीड़ों में आयरन, जिंक और कैल्शियम जैसे ज़रूरी मिनरल्स भी पाए जाते हैं.

इसी वजह से वैज्ञानिक इन्हें “सुपरफूड” कहने लगे हैं.

कीड़े खाने का एक बड़ा फायदा ये भी है कि इन्हें पालने के लिए न तो ज़्यादा जमीन चाहिए, न ही बहुत सारा पानी.

साथ ही, कीड़े गाय-भैंस जैसे बड़े जानवरों की तरह पाचन के दौरान ज़्यादा गैस (Greenhouse Gas) नहीं छोड़ते, जो पर्यावरण में प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ाने वाली होती हैं.

इसलिए कीड़ों को खाना पर्यावरण के लिए ज़्यादा सुरक्षित माना जाता है.

इस वजह से दुनिया के कई बड़े और विकसित देशों मे, जैसे अमेरिका और यूरोप में भी अब कीड़ों से बने खाने की चीज़ों को रेस्टोरेंट्स में परोसी जा रही हैं.

असम के बोडोलैंड क्षेत्र में कीड़े खाने की परंपरा

भारत के असम राज्य के बोडोलैंड में भी कीड़े शौक से खाए जाते हैं. यहां सदियों से लोग तरह तरह के कीड़े खाते आए हैं.

उनका मानना है कि ये कीड़े स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पोषण से भरपूर होते हैं.

इस क्षेत्र में लगभग 25 प्रकार के खाने योग्य कीड़े पाए जाते हैं. इनमें मुख्य कीड़ों में शामिल हैं :-

  • चींटियाँ (Ants):  जो कि हरी रंग की चींटीयाँ होती है. इसे स्थानीय भाषा में (Khwjema) खैजोमा कहते हैं. इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है, और इसे भूनकर या उबालकर खाया जाता है.
  • झींगुर (Cricket): जिसे यहाँ (Khusangra) खुसांग्र कहा जाता है. झींगुरों को तला हुआ या भुना हुआ खाने में बहुत पसंद किया जाता है. इसे सब्जी या चावल के साथ भी खाया जाता है.
  • दीमक (Termites): इसे स्थानीय भाषा में (Wuri) वुरी कहा जाता है. दीमक को अक्सर भूनकर या पकाकर खाया जाता है. इसे कुछ लोग सूप या करी में भी इस्तेमाल करते हैं.
  •   टिड्डे (Grasshoppers): ये भी यहाँ की लोकप्रिय कीड़ों में से हैं, जिन्हें भून कर या तड़के में इस्तेमाल किया जाता है.
  •   पानी में रहने वाले कीड़े: जैसे कुछ खास जल कीड़े, जो स्थानीय लोग पकाकर खाते हैं.

संस्कृति और महत्व

बोडो समाज में कीड़ों को सिर्फ भोजन ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी प्राप्त है. ये उनकी पहचान और जीवनशैली का हिस्सा हैं.                                                 कीड़ों से बनी डिशेज़ त्योहारों और खास अवसरों पर भी बनाई जाती हैं, जिससे उनकी सांस्कृतिक विरासत बनी रहती है.                                                              यह परंपरा पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी दर्शाती है क्योंकि कीड़े पालना और खाना प्रकृति के अनुकूल और टिकाऊ तरीका है.

पोषण और स्वास्थ्य लाभ

कीड़ों में प्रोटीन, विटामिन, और मिनरल्स जैसे आयरन, जिंक और कैल्शियम भरपूर मात्रा में होते हैं.

यह कम वसा (Fat) वाला भोजन है जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है.

कीड़ों में कैलोरी भी कम होती है, जिससे यह वजन नियंत्रण (Fat Loss) में सहायक हो सकता है.

हर कीड़ा खाने लायक नहीं होता.

जब हम कीड़ों की बात करते हैं तो बहुत सारे तरह-तरह के कीड़े होते हैं, लेकिन सभी कीड़े इंसानों के लिए खाने योग्य या सुरक्षित नहीं होते.

कुछ कीड़े ज़हरीले (टॉक्सिक) होते हैं, कुछ में ऐसी चीजें होती हैं जो हमारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं.

इसलिए सिर्फ पारंपरिक और सुरक्षित माने गए कीड़ों को ही भोजन में शामिल करना चाहिए.

 कुछ कीड़े संक्रमण या बीमारियाँ फैला सकते हैं.

जैसे मक्खियाँ, काकॅरोच, और मच्छर कई तरह के बैक्टीरियां और वायरस अपने शरीर पर लेकर चलते हैं, जो लोगों को बीमार कर सकते हैं.

कॉकरोच (Cockroach) जैसे कीड़े अक्सर गंदगी में रहते हैं और उन्हें खाने योग्य नहीं माना जाता. हालांकि कुछ वैज्ञानिक रिसर्च में उन्हें प्रोटीन स्रोत के रूप में देखते हैं, लेकिन असल ज़िंदगी में लोग उन्हें नहीं खाते.

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