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क्या DU में आरक्षण सिर्फ दिखावा है? समिति की रिपोर्ट ने खोली पोल          

समिति ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय में कुल 68 कॉलेज हैं, लेकिन SC और ST से जुड़े मामलों को देखने के लिए सिर्फ एक सेल है और उसमें भी स्टाफ बेहद कम है.

संसद की अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) कल्याण समिति ने दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं.

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले चार सालों यानी 2020-21 से 2024-25 के बीच विश्वविद्यालय में SC और ST वर्ग के शिक्षकों की भर्ती में काफी गड़बड़ियां और अनियमितताएं पाई गईं.

साथ ही, इन वर्गों के छात्रों का दाखिला भी तय किए गए आरक्षण के अनुपात से काफी कम रहा.

समिति ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय में कुल 68 कॉलेज हैं, लेकिन SC और ST से जुड़े मामलों को देखने के लिए सिर्फ एक सेल है और उसमें भी स्टाफ बेहद कम है.

आरक्षण से जुड़े नियमों के सही तरीके से पालन में भी कई खामियां सामने आईं.

समिति ने सुझाव दिया कि 1997 से लागू पोस्ट-आधारित आरक्षण सूची को दोबारा जांचा जाए और उसी आधार पर यह तय किया जाए कि कितने पद खाली हैं, और कितनी कमी (बैकलॉग) है, ताकि सही आंकड़े सामने आ सकें.

रिपोर्ट में दाखिले के आंकड़े भी दिए गए हैं.

स्नातक (ग्रेजुएट) स्तर पर SC छात्रों का प्रतिशत 2020-21 में 11.97 था, जो 2024-25 में 15.44 तक पहुंच गया, यानी 15% के आरक्षण लक्ष्य से थोड़ा ऊपर.

लेकिन ST छात्रों की स्थिति चिंताजनक रही. 2020-21 में उनका प्रतिशत 3.49 था, जो 2024-25 में सिर्फ 4.14 तक पहुंचा, जबकि आरक्षण का लक्ष्य 7.5% है.

स्नातकोत्तर (पोस्टग्रेजुएट) में भी यही स्थिति रही.

SC छात्रों का प्रतिशत 13.33 से बढ़कर 14.72 हुआ, लेकिन ST छात्रों का प्रतिशत 6.14 से घटकर 5.72 रह गया.

पीएचडी में SC छात्रों का प्रतिशत 15.2 और ST छात्रों का 6.8 रहा, जो कि तय कोटे से कम है.

समिति का कहना है कि आरक्षित वर्ग के छात्रों के लिए सीटें पूरी तरह भरने के लिए कट-ऑफ मार्क्स में काफी कमी की जानी चाहिए.

उनका मानना है कि कई बार कट-ऑफ देर से घोषित होने के कारण SC और ST वर्ग के छात्र कहीं और दाखिला ले लेते हैं, और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने का मौका गंवा देते हैं.

समिति ने यह भी सुझाव दिया कि हर कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर SC-ST से जुड़ी शिकायतों के लिए एक केंद्रीय समिति बनाई जाए, ताकि छात्रों की समस्याएं जल्दी सुलझाई जा सकें.

रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि कई आरक्षित शिक्षण पदों के लिए इंटरव्यू में “उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिला” या “कोई उम्मीदवार शॉर्टलिस्ट नहीं हुआ” जैसे कारण दिए जाते हैं, जिससे पद खाली रह जाते हैं.

इस पर समिति ने नाराजगी जताई और कहा कि इससे आरक्षण का असली उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता.

समिति को दौरे के दौरान छात्रों ने यह भी बताया कि कुछ कोर्स की फीस उनके लिए बहुत ज्यादा है और वे उसे वहन नहीं कर सकते.

इस पर समिति ने सरकार को सलाह दी कि अगर जरूरत हो, तो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के SC और ST छात्रों की पूरी ट्यूशन फीस और अन्य शुल्क माफ कर दिए जाएं, ताकि वे बिना आर्थिक बोझ के पढ़ाई पूरी कर सकें.

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