मध्य प्रदेश के इंदौर में महाराजा यशवंतराव अस्पताल (एमवायएच) में नवजात बच्चियों की मौत का मामला तूल पकड़ता जा रहा है.
जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के कार्यकर्ता अपनी मांगों पर अडे हुए हैं. हालांकि फिलहाल इस आंदोलन को स्थगित कर दिया गया है.
28 सितंबर को जयस की तरफ से जन आंदोलन का आह्वाहन करने के बाद हज़ारों की संख्या में जन सैलाब उमड़ा था. जन आक्रोश इतना था कि जन समुदाय ने एम. वाय. अस्पताल से कलेक्टर ऑफिस तक अर्धनंग्न होकर रैली निकाली थी.
जयस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद लोकेश मुजाल्दा ने मैं भी भारत से हुई बातचीत में अभी तक कलेक्टर की तरफ से कोई संतुष्ट जवाब न मिलने की बात कही है.
उन्होंने बताया कि कलेक्टर ने 6 अक्टूबर तक का समय मांगा था, इसलिए आंदोलन को तब तक के लिए स्थगित कर दिया गया है.
उन्होंने कहा कि आंदोलन खत्म नहीं हुआ है, केवल स्थगित किया गया है.
याचिका दायर की गई
इस मामले में कानूनू कदम भी उठाए गए हैं. आदिवासी बच्ची के पिता देवराम (गाँव खेरखेड़ा, ज़िला धार) के नाम से अदालत में याचिका दायर की गई है.
इस याचिका में मध्य प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, आदिवासी कल्याण विभाग, महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन और सीईओ, महाराजा यशवंतराव अस्पताल के अधीक्षक और एचएलएल इंफ्रा टेक सर्विस लिमिटेड को जवाब देने के लिए पक्षकार (Respondant) बनाया गया है.
लोकेश मुजाल्दा ने बताया है कि अभी तक याचिका की सुनवाई के लिए कोई तारीख नहीं मिली है.
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस मामले में पहले ही स्वत: संज्ञान ले लिया था. इस पर लोकेश मुजाल्दा ने कहा कि हाई कोर्ट अपने स्तर पर काम कर रहा है. लेकिन हम भी अपनी तरफ से न्याय के लिए सभी प्रयास करेंगे.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ले चुका है स्वत: संज्ञान
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मध्य प्रदेश हाईकार्ट ने इसे स्वत: संज्ञान लिया. हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले में राज्य सरकार और अस्पताल प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई.
कोर्ट ने यह पूछा कि इतने गंभीर आरोपों के बावजूद एफआईआर (FIR) क्यों दर्ज नहीं हुई और अस्पताल प्रशासन ने यह कैसे ठहराया कि मौत चूहे के काटने से नहीं बल्कि जन्मजात जटिलताओं के कारण हुई.
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने इसे गंभीर लापरवाही का मामला माना है और राज्य सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत करने, अस्पताल भवन, नाली, बिजली आदि संरचनात्मक स्थिति की जानकारी देने और सुधार की विस्तृत योजना बनाने का आदेश दिया है.
साथ ही, कोर्ट ने इंदौर पुलिस कमिश्नर को यह बताने को कहा है कि आखिर क्यों अस्पताल में नवजातों की मौत के इन आरोपों पर एफआईआर FIR दर्ज नहीं की गई.
इस पूरे विवाद में अस्पताल प्रशासन ने कहा है कि बच्चियों की मृत्यु जन्मजात जटिलताओं से हुई थी, न कि चूहे के काटने से. लेकिन उच्च न्यायालय ने कहा है कि यह दलील स्वीकार करने से पहले सबूत, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अस्पताल प्रबंधन की जवाबदारी पर गहराई से समीक्षा होनी चाहिए.