कर्नाटक सरकार (Karnataka Government) ने गुरुवार, 20 जून को नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय (DCRE) की 33 यूनिट को स्पेशल पुलिस स्टेशन के रूप में नामित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. इसने इन स्टेशनों पर कर्मचारियों के लिए 450 पदों को भी मंजूरी दी, जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों को संभालने के लिए समर्पित हैं.
कर्नाटक में अनुसूचित जाति (Scheduled Castes) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) के खिलाफ अत्याचार के करीब 2 हज़ार मामले सालाना दर्ज किए जाते हैं.
इस फैसले की घोषणा करते हुए कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एचके पाटिल (HK Patil) ने कहा कि दिसंबर 2022 के अंत तक इस अधिनियम के तहत 7,633 मामले दर्ज किए गए हैं लेकिन सिर्फ 1,723 मामलों का निपटारा किया गया है.
एचके पाटिल ने कहा, “अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज 1,363 मामलों में बरी हुए, जबकि सिर्फ 68 मामलों में सजा हुई, जो कि केवल 4 प्रतिशत है, यह देश में सबसे कम में से एक है.”
सरकार को उम्मीद है कि इन स्पेशल पुलिस स्टेशनों की स्थापना से बेहतरीन और गहन जांच होगी और वर्तमान में 4 फीसदी की कम सजा दर में सुधार होगा.
यह पहल कर्नाटक को बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और केरल जैसे अन्य राज्यों के साथ जोड़ती है. जिन्होंने पहले से ही एससी/एसटी अत्याचार के मामलों को संभालने के लिए स्पेशल पुलिस स्टेशन स्थापित किए हैं.
अपने 2023-24 के बजट में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई थी. कैबिनेट के फैसले से प्रत्येक जिले में एक पुलिस स्टेशन स्थापित होगा.
प्रत्येक स्टेशन की देखरेख पुलिस उपाधीक्षक (DySP) या सहायक पुलिस आयुक्त (ACP) रैंक के अधिकारी द्वारा की जाएगी. इस नई पहल से सरकारी खजाने पर सालाना लगभग 73 करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है.
एचके पाटिल ने कहा कि स्थानीय पुलिस, जो पहले से ही कानून और व्यवस्था, अपराध प्रबंधन, वीआईपी मूवमेंट, ट्रैफिक कंट्रोल और चुनाव ड्यूटी जैसी कई जिम्मेदारियों का बोझ उठा रही है, अक्सर निर्धारित 60 दिनों के भीतर जांच पूरी करने में विफल रहती है. इस देरी के कारण गवाहों के मुकरने की घटनाएं बढ़ गई हैं और इसके परिणामस्वरूप बरी होने की दर बहुत अधिक है.
पाटिल ने कहा, “अत्याचार जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर उचित ध्यान नहीं दिया जा सका, जिससे जांच के हर पहलू में भारी देरी हुई.”
उन्होंने कहा कि लेकिन अब समर्पित पुलिस स्टेशनों से समय पर जांच सुनिश्चित करके इन मुद्दों को हल करने की उम्मीद है.
उन्होंने कहा कि अब लोगों को परेशानी नहीं होगी क्योंकि अत्याचार के मामलों से संबंधित शिकायतें स्थानीय पुलिस में दर्ज की जा सकती हैं. एक बार मामला दर्ज होने के बाद इसे तुरंत संबंधित नागरिक अधिकार पुलिस स्टेशनों में ट्रांसफर कर दिया जाएगा.