झारखंड के हज़ारीबाग ज़िले में कुर्मी समुदाय ने शनिवार को रेल रोको आंदोलन की शुरुआत की.
हज़ारों की संख्या में पहुंचे कुर्मी समुदाय के लोगों ने पटरियों पर बैठकर विरोध प्रदर्शन किया. इसी वजह से सुबह 8 बजे के बाद से चरही रेलवे स्टेशन पर आवाजाही पूरी तरह बाधित है.
अचानक उमड़े इस हुजूम के कारण कई ट्रेन घंटों तक रास्ते में फँसी रही और इससे यात्रियों को भी बहुत असुविधा हुई. कई लोग गंतव्य तक समय पर नहीं पहुंच पाए.
रेलवे ने यात्रियों से धैर्य रखने और अपडेट के लिए आधिकारिक सूचना पर नज़र रखने की अपील की है.
विधायक तिवारी महतो के नेतृत्व में प्रदर्शन
इस आंदोलन का नेतृत्व मांडू के विधायक तिवारी महतो कर रहे हैं.
महिलाएं, युवा और बुजुर्ग बड़ी संख्या में शामिल हुए. सभी ने सरकार के खिलाफ नारे लगाए और कहा कि उनकी आवाज को लंबे समय से अनसुना किया जा रहा है.
विधायक महतो ने कहा कि जब तक राज्य और केंद्र सरकार उनकी मांगों पर ठोस आश्वासन नहीं देती, आंदोलन जारी रहेगा.
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने कदम नहीं उठाया तो विरोध और तेज़ होगा.
मुख्य मांगें
प्रदर्शनकारियों की दो प्रमुख मांगें हैं. पहली मांग ये है कि कुर्मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया जाए.
समुदाय की दूसरी मांग कुर्माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की है.
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वर्षों से उन्हें उपेक्षा झेलनी पड़ी है.
एक कुर्मी युवा ने कहा, “हमने पढ़ाई पूरी की लेकिन अच्छी नौकरियां नहीं मिल रहीं. हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए एसटी का दर्जा ज़रूरी है.”
सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम
रेलवे और प्रशासन ने हालात को संभालने के लिए भारी सुरक्षा बल तैनात किए हैं.
रेलवे ने अतिरिक्त कर्मचारियों को लगाया है ताकि किसी भी आपात स्थिति से निपटा जा सके.
पुलिस लगातार ड्रोन से स्टेशन की निगरानी कर रही है.
अधिकारियों ने बताया कि यह विरोध शांतिपूर्ण है लेकिन स्थिति पर पैनी नज़र रखी जा रही है.
कई राज्यों में असर
यह आंदोलन केवल झारखंड तक सीमित नहीं है. पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी कुर्मी संगठनों ने रेल रोको और सड़क जाम करने का ऐलान किया है.
पश्चिम बंगाल में राज्य अध्यक्ष राजेश महतो के नेतृत्व में पुरुलिया, बांकुरा, झाड़ग्राम और पश्चिम मेदिनीपुर जिलों में प्रदर्शन की योजना है.
पुराना संघर्ष, नई चेतावनी
कुर्मी समाज लंबे समय से एसटी दर्जे की मांग कर रहा है.
पहले भी कई बार यह मुद्दा विधानसभा और संसद में उठ चुका है. लेकिन अभी तक कोई ठोस फैसला नहीं लिया गया.
इस बार आंदोलनकारियों ने साफ कर दिया है कि अब वे पीछे नहीं हटेंगे. उनका कहना है कि यह केवल अधिकारों की लड़ाई नहीं बल्कि अगली पीढ़ी के भविष्य का सवाल है.
Image credit – Hindustan Times