HomeAdivasi Dailyगुवाहाटी में जंगल ज़मीन पर असम सरकार का बड़ा सर्वे, आदिवासियों पर...

गुवाहाटी में जंगल ज़मीन पर असम सरकार का बड़ा सर्वे, आदिवासियों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने स्पष्ट किया है, कि यह सर्वे किसी धर्म या जाति के आधार पर नहीं, बल्कि इस बात पर हो रहा है कि कोई व्यक्ति या परिवार तीन पीढ़ियों से वहां रह रहा है या नहीं.

असम सरकार ने गुवाहाटी और उसके आसपास के जंगल क्षेत्रों में एक बड़ा सर्वे शुरू किया है.

यह सर्वे करीब 28,380 हेक्टेयर रिजर्व फॉरेस्ट (आरक्षित वन) ज़मीन पर हो रहा है.

जिसका मकसद ऐसे लोगों की पहचान करना है जो गैर-कानूनी रूप से जंगल की ज़मीन पर रह रहे हैं और जिनकी मौजूदगी  वन अधिकार अधिनियम, 2006 के नियमों के अनुसार वैध नहीं है.

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने स्पष्ट किया है, कि यह सर्वे किसी धर्म या जाति के आधार पर नहीं, बल्कि इस बात पर हो रहा है कि कोई व्यक्ति या परिवार तीन पीढ़ियों से वहां रह रहा है या नहीं.

यदि कोई आदिवासी परिवार इस शर्त पर खरा उतरता है, तो उसे ‘बसुंधरा योजना’ के तहत ज़मीन के वैध कागज़ दिए जाएंगे.

हालांकि, ज़मीन पर असली हकदार कौन है,  इसे लेकर आदिवासी समुदाय में   भय और असमंजस   फैला हुआ है.

कई आदिवासी परिवार जिनके पास दस्तावेज़ नहीं हैं,  उन्हें डर है कि उन्हें भी अवैध निवासी मान लिया जाएगा, भले ही वे पीढ़ियों से वहीं रह रहे हों.

इन परिवारों को अब कागज़ात साबित करने, पहचान पत्र दिखाने, और स्थानीय पंचायतों से प्रमाण जुटाने की चुनौती झेलनी पड़ रही है.

सर्वेक्षण के दौरान यह सामने आया है कि करीब 4,107 हेक्टेयर भूमि पर गैर-आदिवासी प्रवासी आबादी का कब्जा है, जिन्हें हाल के वर्षों में वहां बसाया गया है.

इन बस्तियों को निकासी के लिए चिन्हित किया जा सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया है कि  किसी को बिना नोटिस और कानून प्रक्रिया के नहीं हटाया जाएगा.

अब सवाल ये है कि क्या आदिवासी लोगों को सच में ज़मीन मिलेगी? सरकार ने वादा किया है कि जिनके पास तीन पीढ़ियों की उपस्थिति के प्रमाण होंगे, उन्हें ज़मीन दी जाएगी.

लेकिन आदिवासी संगठनों का कहना है कि बहुत से लोग दस्तावेज़ीकरण के अभाव में छूट सकते हैं, जिससे उनकी पीढ़ियों की मेहनत पर पानी फिर सकता है.

यह सर्वे फिलहाल केवल वन भूमि पर किया जा रहा है, राजस्व भूमि इसमें शामिल नहीं है.

सरकार का कहना है कि यह कदम गुवाहाटी की पारिस्थितिकी, जनसंख्या संतुलन और आदिवासी हक को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है.

पर ज़मीनी हकीकत यही है कि सच्चे आदिवासी परिवारों को भी अपने अस्तित्व के लिए प्रमाण देना पड़ रहा है, जो उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गया है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments