आंध्र प्रदेश का पार्वतीपुरम मन्यम ज़िला इन दिनों मलेरिया और वायरल बुखार जैसे रोगों से जूझ रहा है. यह एक आदिवासी बहुल ज़िला है.
गांवों से लेकर स्कूलों तक, हर जगह बीमारियों का असर देखा जा रहा है.
खासकर आदिवासी आश्रम स्कूलों के बच्चों में तेज़ बुखार और कमज़ोरी की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं. जांच के बाद कई बच्चों में मलेरिया की पुष्टि भी हुई है.
सरकारी अस्पतालों में हालत गंभीर
पहले से ही सीमित संसाधनों के साथ संचालित ज़िले के सरकारी अस्पताल, मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण और ज़्यादा दबाव में हैं.
सलूर एरिया सरकारी अस्पताल में तो हालत यह है कि दो से तीन मरीज एक ही बेड़ पर इलाज कराने को मजबूर हैं. इस वजह से संक्रमण का खतरा भी बढ़ रहा है.
हालांकि अस्पताल को 100-बेड तक अपग्रेड किया गया है, लेकिन नई इमारत का काम अभी पूरा नहीं हुआ है और वह र्माणाधीन है.
ऐसे में मरीजों का इलाज अभी भी पुरानी इमारत में ही चल रहा है. पुरानी बिल्डिंग में शौचालय, साफ-सफाई और अन्य सुविधाएं बेहद खराब स्थिति में हैं.
मानसून के साथ बढ़ी बीमारियों की रफ्तार
मानसून के चलते मच्छरों की संख्या बढ़ने से मलेरिया के मामले बढ़े हैं. वहीं गंदे पानी की वजह से दस्त (डायरिया) के मामले भी लगातार सामने आ रहे हैं.
सलूर अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर गोपाल राव ने बताया, “हम रोजाना करीब 300 बाहरी मरीजों को देख रहे हैं और 130 मरीज भर्ती हैं. ज़्यादातर मरीज बुखार, मलेरिया, दस्त, सांप या कुत्ते के काटने से पीड़ित हैं। एंटी रेबीज़ और एंटी स्नेक वेनम उपलब्ध हैं, पर सुविधा सीमित है.”
डॉ. राव का कहना है कि अगर नया भवन जल्दी पूरा हो जाए तो इलाज की स्थिति में काफी सुधार आ सकता है. अभी तो पुराने अस्पताल की स्थिति बेहद खराब है. साफ-सफाई भी एक बड़ी चुनौती है. उन्होंने प्रशासन से निर्माण कार्य को तेज़ करने की अपील की है.
Frontiers की मई 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी सिर्फ़ 8.6% है. लेकिन जिन राज्यों में आदिवासी समुदायों की बड़ी मौजूदगी है, जैसे ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और आंध्र प्रदेश, उन राज्यों की कुल जनसंख्या भारत की 43.32% के बराबर है. और पिछले साल इन्हीं राज्यों में 84.48% मलेरिया के मामले दर्ज किए गए हैं.
यह आंकड़ा दर्शाता है कि कैसे स्वास्थय सेवाओं की अनुपलब्धता और बुनियादी ढ़ांचे की कमी ने आदिवासियों को मलेरिया जैसी बीमारियों को सबसे बड़ा शिकार बना दिया है.
सरकार का समझना चाहिए कि सिर्फ आदिवासियों के लिए बजट बढ़ाना ही काफ़ी नहीं है, सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि आदिवासियो के लिए आवंटित बजट का पूर्ण और सही तरीके से उपयोग हो और उनके लिए बनाई गई योजनाएं ज़मीनी स्तर पर लागू हो.